वोटकटवा साबित होगी गोंड़वाना पार्टी
छत्तीसगढ़ आजतक- औद्योगिक नगरी कोरबा में गर्मी अपने पूरे शबाब पर है और पारा 42 डिग्री पार जाने को बेताब है. लेकिन इससे भी अधिक सरगर्म सियासी माहौल है. लोकसभा चुनाव में इस हाईप्रोफाइल सीट पर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश की निगाहें लगी हुई हैं. चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला है. दोनों ही प्रत्याशी जमीनी मुद्दों से परे जुमलेबाजी और आरोप प्रत्यारोप करते हुए अपनी जीत के दावे कर रहे हैं लेकिन मतदाता खामोश हैं.
प्रदेश की सबसे बड़ी हाट सीट कोरबा में इस बार चुनावी परिदृश्य बदला हुआ है. कांग्रेस से सिटिंग सांसद ज्योत्सना महंत चुनाव मैदान में हैं तो भाजपा ने भी राज्यसभा सदस्य रहीं सरोज पांडे को अपना प्रत्याशी बनाया है. इसके चलते मुकाबला दिलचस्प हो चला है . सरोज जहां भाजपा की राष्ट्रीय कद्दावर नेता हैं और पूर्व में दुर्ग की सांसद रह चुकी हैं. ज्योत्सना भी बड़ी नेता हैं और क्षेत्र की सांसद रहने के साथ पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्गज कांग्रेस नेता चरणदास महंत की पत्नी हैं. बदले हुए सियासी समीकरण के बीच दोनों ही प्रत्याशी पूरे संसदीय क्षेत्र में धुआंधार चुनाव प्रचार करते हुए अपने चुनावी घोषणा पत्रों और वादों के साथ मतदाताओं को रिझा रहे हैं. स्थानीय बनाम बाहरी का भी मुद्दा गरमाया हुआ है. भाजपा प्रत्याशी को केंद्र सरकार की उपलब्धियों और मोदी मेजिक पर भरोसा है तो कांग्रेस उम्मीदवार सरोज को पैराशूट प्रत्याशी और खुद को कोरबा की बेटी बता रही हैं. अब चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो चार जून को नतीजे के बाद ही पता चलेगा. लेकिन दोनों प्रत्याशियों के बीच टक्कर कांटे की बताई जा रही है, eh. कोरबा लोकसभा क्षेत्र पर एकबारगी नजर डालें तो यह सीट परिसीमन के बाद 2008 में अस्तित्व में आई . इसके पहले यह संसदीय क्षेत्र चांपा जांजगीर में आता था. 1984 में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम यहां से चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था.
कोरबा लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 16 लाख 18 हजार 437 है. यह पिछले चुनाव से करीब एक लाख ज्यादा है. यहां 8 विधानसभा क्षेत्र हैं. परिसीमन के बाद अब तक तीन बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं . हर बार मतदाताओं ने पार्टी और सांसद बदला है. वर्ष 2019 में हुए प्रथम चुनाव में कांग्रेस के चरणदास महंत ने भाजपा प्रत्याशी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को पराजित किया था. इसके बाद 2014 के चुनाव में चरणदास महंत भाजपा प्रत्याशी बंशीलाल (परसराम) महतो से 6 हजार वोट से हारे. लेकिन 2019 के चुनाव में कांग्रेस की ज्योत्सना ने भाजपा के ज्योतिनंदन दुबे को पच्चीस हजार मतों से शिकस्त देकर यह सीट फिर कांग्रेस के खाते में डाल दी. इस बार बदले हुए चुनावी परिदृश्य में कहने को तो 27 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस की ज्योत्सना महंत और भाजपा की सरोज पांडेय के बीच ही दिखाई दे रहा है. हालांकि गोड़वाना गणतंत्र पार्टी ने भी अपना प्रत्याशी खड़ा किया है लेकिन उनका प्रभाव मारवाही जैसे कुछ सीमित क्षेत्र तक ही है. चुनावी प्रेक्षकों के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस तो शहरी इलाके में भाजपा मजबूत नजर आ रही है . अब तक कांग्रेस और भाजपा में हर बार 28 प्रतिशत हार का अंतर रहता है. पूरे कोरबा लोकसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण पर नजर डालें तो खास कोरबा शहर और आसपास के क्षेत्रों में औद्योगिक इलाका होने के कारण स्थानीय के साथ बाहर के राज्यों के लोग भी निवासरत हैं. उत्तरप्रदेश और बिहार के लोगों की तादाद भी दस से 12 प्रतिशत के बीच बताई जाती है. भाजपा प्रत्याशी सरोज पांडेय को यहां से चुनाव लड़ाने के पीछे एक वजह यह भी बताई जाती है. अन्य विधानसभा क्षेत्रों में सबसे ज्यादा आदिवासी फिर ओबीसी वर्ग के लोग हैं. इन पर कांग्रेस व भाजपा दोनों की नजर है. चार जिलों में गोड़वाना पार्टी और छत्तीसगढ़ जोगी कांग्रेस का प्रभाव है. चार माह पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में 8 विधानसभा क्षेत्रों में से 6 सीटों पर भाजपा जीती थी. कांग्रेस एकमात्र सीट रामपुर में जीती. वहीं पालीतानाखार सीट पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का कब्जा रहा. आठों विधानसभा में भाजपा को 68 हजार वोट की लीड मिली थी. संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस और भाजपा दोनों यह सोचकर चिंतित हैं कि अपने जनाधार वाले कुछ विधानसभा क्षेत्रों में आखिर गोड़वाना पार्टी का प्रत्याशी किस के वोट काटेगा . जोगी कांग्रेस और गोंड़वाना पार्टी के वोट शेयर पर नजर डालें तो गोंड़वाना पार्टी को 1 लाख 30 हजार और जोगी कांग्रेस को आठों विधानसभा क्षेत्रों में 65 हजार वोट मिले थे.
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मरवाही,भरतपुर और सोनहत विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा नंबर वन, जोगी कांग्रेस नंबर 2 और कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही थी. लेकिन इस दौरान पेंड्रा गौरेला भरतपुर जिला में जोगी कांग्रेस की पूरी जिला बाडी का ही भाजपा में विलय हो चुका हैं और कई बड़े नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं. इससे इस पार्टी व क्षेत्र के वोटों को भाजपा इस लोकसभा चुनाव में अपने हिस्से में मानकर चल रही है. पार्टी कोरबा के यूपी बिहार के निवासियों के वोट को फिक्स डिपाजिट होने का दावा कर रही है. लेकिन अन्य जिलों व आदिवासी बहुल क्षेत्रों में महंत का खासा प्रभाव बताया जा रहा है, जिससे कांग्रेस भी इस बेल्ट में अपनी पकड़ बता रही है. फिर विधानसभा से अलग लोकसभा चुनाव का समीकरण है. चुनावी मुद्दे भी अलग हैं और जोगी कांग्रेस भी निष्क्रिय हो चुकी है, खुद पार्टी सुप्रीमो अमित जोगी राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा कर चुके हैं. इस चुनाव में कांग्रेस के सामने पिछले 25 हजार वोटों के अंतर को पाटने औैर भाजपा की चुनौती महंत के प्रभाव वाले क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत कर बढ़त बनाने की है. इसी बीच वोटर्स भले ही मौन हैं लेकिन वे यह तय कर चुके महसूस होते हैं कि इस बार किसे वोट देना है, eh. बहरहाल यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव में जनता जनार्दन अपने क्षेत्र के जमीनी विकास के लिए भाजपा और कांग्रेस के किस प्रत्याशी पर भरोसा जताती है.
आठों विधानसभाओं पर फोकस
कोरबा लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस और भाजपा दोनों की नजर क्षेत्र की आठों विधानसभा सीटों के वोटर्स पर है. इसके लिए दोनों पार्टियों के प्रत्याशी शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में जोरशोर से प्रचार कर चुनावी वादों से मतदाताओं को प्रभावित करने में जुटे हैं. यहां कोरबा-चांपा जांजगीर जिला में कोरबा, रामपुर, घटघोरा पाली तानाखार 4 विधानसभा क्षेत्र हैं, eh. वहीं गौरेला पेंड्रा मरवाही जिला (जीपीएम) जिला में एक विधासभा सीट मरवाही की है. इसके अलावा मनेंद्रगढ़ जिला ( एमसीडी) में मनेंद्रगढ़, भरतपुर और सोनहत विधानसभा क्षेत्र आता हैं. जबकि कोरिया जिला में एकमात्र विधानसभा क्षेत्र बैकुंठपुर विस सीट है. इनमें भाजपा व कांग्रेस दोनों का प्रभाव है. लेकिन विस चुनाव में 6 सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा जबकि एक, एक सीट पर कांग्रेस व जोगी कांग्रेस को जीत मिली थी. मौजूदा लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस जनसंपर्क, रैली और स्टार प्रचारकों की चुनावी सभाओं से भी अपनी जीत माहौल बना रही है. सीएम विष्णुदेव साय की कई सभाओं के साथ मोदी की सभा कोरबा और अमित शाह की सभा कठघोरा में हो चुकी है वहीं प्रियंका गांधी, सचिन पायलट, चरणदास महंत और पूर्व सीएम भूपेश बघेल की सभा भी हो चुकी है.
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स्थानीय बनाम बाहरी की जंग
चुनाव में बाजी मारने के लिए कांग्रेस प्रत्याशी ज्योत्सना और भाजपा उम्मीदवार सरोज ने पार्टी के लश्कर के साथ अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. अब आखिरी खंदक की लड़ाई चल रही है. दोनों ही अपनी पार्टी के घोषणापत्रों और स्टार प्रचारकों के बूते अपने पक्ष में माहौल बनाने में लगे हैं. लेकिन चुनाव से जनता के असल मुद्दे गायब हैं. दोनों प्रत्याशी जुमलों, नारों और आरोप प्रत्यारोप से वोटर्स को बरगलाने लगे हुए हैं. कांग्रेस प्रत्याशी ज्योत्सना जहां भाजपा प्रत्याशी सरोज को पैराशूट और बाहरी प्रत्याशी बता खुद को कोरबा की बेटी बता रही हैं तो वहीं भाजपा कांग्रेस प्रत्याशी ज्योत्सना को भोपाल प्रवासी बता खुद को छत्तीसगढ़ की बेटी बता रही हैं. सांसद के प्रति एंटी इंकबेंसी होने और कोरबा में चुनाव पूर्व तथा बाद 5 साल से लापता सांसद के पोस्टर भी लगाए गए. भाजपा कांग्रेस सरकार के डीएमएफ फंड के 600 करोड़ कमीशनखोरी वाले 20 हजार करोड़ के घोटाले और कोल स्कैम जैसे भष्टाचार के आरोप भी लगा खुद को दूध का धुला साबित करने में लगी है. पार्टी केंद्र सरकार की दस साल की उपलब्धि, महतारी वंदन योजना, मोदी लहर, अयोध्या में राम मंदिर बनाने और 31 सौ रुपए में किसानों की धान खरीदी जैसे मुद्दों से वोटर्स को लुभा रही है. वहीं स्थानीय मुद्दों में विधानसभावार घोषणापत्र जारी किया है. इनमें प्रदूषण, रोड, रेलवे कनेक्टिविटी, रामपुर व मनेंद्रगढ़ सहित सभी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सडक़ में सुधार और नए लघु तथा नए कुटीर उद्योगों से रोजगार सृजन और कोरबा बालको में एल्यूमिनियम पार्क बनाने आदि शामिल हैं. इसी तरह कांग्रेस भी लोकतंत्र, संविधान और आरक्षण बचाने, एक लाख रुपए गरीब महिलाओं को सालान देने, लाखों खाली पदों को भरने जैसे राष्ट्रीय मुद्दों व अपने घोषणापत्रों के साथ पक्ष में माहौल बनाने में जुटी है. पार्टी कार्यकर्ता पूरे क्षेत्र में डोर डू डोर जाकर महिलाओं को एक लाख रुपए सालाना देने फार्म भी भरवा रहे हैं .