कई दिग्गज कर चुके हैं इस सीट का प्रतिनिधित्व
आपातकाल के बाद से होती रही है यहां उथलपुथल
साजा विधायक पर बिफरा समाज, सिखाएगा सबक
छत्तीसगढ़ आजतक- दुर्ग लोकसभा सीट पर इस बार साहू मतदाता चुनाव का रुख बदल सकते है. लोकसभा की इस सीट पर तीसरे चरण में 7 मई, 2024 को मतदान होना है. भाजपा ने यहां से अपने सिटिंग एमपी विजय बघेल को ही दोबारा मौका दिया है जबकि कांग्रेस ने इस बार पैंतरा बदलते हुए राजेन्द्र साहू को अपना प्रत्याशी बनाया है. इस सीट पर साहू मतदाताओं का अच्छा खासा प्रभाव है. इस बार साहू समाज कुछ मुद्दों पर बंटा हुआ नजर आ रहा है जिसका असर चुनाव पर पड़ सकता है.
दुर्ग लोकसभा सीट पहले कुर्मियों का गढ़ रहा है. यहां से चंदूलाल चंद्राकर चार बार चुनाव जीत चुके हैं. वासुदेव चन्द्राकर को यहां राजनीति का चाणक्य कहा जाता रहा है. पर आपातकाल के बाद से कांग्रेस का वह तिलिस्म टूट सा गया. जनता पार्टी, जनता दल, भाजपा और कांग्रेस के बीच यह सीट आती जाती रही. 1996 के बाद से ताराचंद साहू लगातार चार बार इस सीट से चुनाव जीते और साहू मतदाताओं को एकजुट करने का काम किया. कांग्रेस के खेमे में तब तक ताम्रध्वज साहू का नाम उभरने लगा था. ताराचंद साहू ने बाद में भाजपा छोड़कर अपनी क्षेत्रीय पार्टी बना ली. इसके अलावा दुर्ग से अपने राजनीतिक जीवन का शुभारंभ करने वाले मोतीलाल वोरा न केवल कई बार विधायक रहे बल्कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने. उन्होंने लंबे समय तक केन्द्र में अखिल भारतीय कांग्रेस के कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाली.
इस बार एक बार फिर साहू मतदाता एकजुट हो गए हैं. ताराचंद साहू के निधन के बाद कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू ही समाज का मजबूत प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. 2014 में उन्होंने यह सीट भाजपा की सरोज पांडे से छीन ली. इसके बाद विधानसभा चुनाव जीतकर वे भूपेश बघेल सरकार में मंत्री बन गए. भाजपा के विजय बघेल ने 2019 का लोकसभा चुनाव जीत लिया.
पर इस बार खेल बदल गया है. जातीय समीकरण को भुनाकर दुर्ग संसदीय क्षेत्र को जिस भाजपा ने अपना गढ़ बना लिया था अब उसका फार्मूला कांग्रेस ने अपना लिया है. कांग्रेस ने इस बार यहां राजेन्द्र साहू को चुनाव मैदान में उतारा है. वे जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के पूर्व अध्यक्ष हैं. भाजपा ने अपने सिटिंग एंमपी विजय बघेल पर ही दोबारा भरोसा किया है. विजय बघेल पिछले लोकसभा चुनाव में रिकार्ड मतों से जीत दर्ज की थी. हालांकि, हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें पाटन में हार का सामना करना पड़ा.
एक समय था जब साहू समाज का झुकाव भाजपा की ओर माना जाता था. ताराचंद साहू की लगातार जीत को इसी से जोड़कर देखा जाता था. उनके पार्टी छोड़ने के बाद सरोज पाण्डेय को यहां से चुनाव लड़ाया गया. उस समय सरोज का राजनीतिक सूरज दमक रहा था. उस समय वे दुर्ग महापौर और वैशालीनगर विधायक के रूप में भाजपा का प्रतिनिधित्व कर रही थीं. वह त्रिकोणीय मुकाबला था. भाजपा से बागी हो चुके ताराचंद अपनी नई पार्टी के साथ मैदान में थे. इसके कारण यह चुनाव बेहद संघर्षपूर्ण हो गया था. पर इसके बाद 2014 का लोकसभा चुनाव ताम्रध्वज साहू ने जीत लिया. इसके साथ ही यह साफ हो गया कि साहू समाज अपने ही बीच के प्रत्याशी का साथ देता है. इसमें पार्टी आड़े नहीं आती.
राजेन्द्र को मिलेगा साहू समाज का साथ
इस बार ताम्रध्वज भले ही स्वयं इस अखाड़े में नहीं उतरे हैं पर उनका प्रत्यक्ष परोक्ष सहयोग राजेन्द्र साहू को मिलेगा. ताम्रध्वज जहां समाज पर अच्छी पकड़ रखते हैं वहीं जिला केन्द्रीय बैंक से जुड़ा होने के कारण राजेन्द्र साहू की सभी वर्गों के मतदाताओं पर अच्छी पकड़ है. साहू समाज की स्वीकार्यता का लाभ भी उन्हें मिल सकता है. इसके अलावा दबी जुबान से समाज में एक और मुद्दा छाया हुआ है. यह मुद्दा है साजा विधायक ईश्वर साहू का. ईश्वर साहू एक साधारण नागरिक थे जिन्हें एक घटना ने सुर्खियों में ला दिया. उनके पुत्र की हत्या कर दी गई. इस घटना ने साम्प्रदायिक रूप धारण कर लिया. भाजपा ने ईश्वर को टिकट दे दिया कुछ तो सहानुभूति और कुछ साम्प्रदायिक आक्रोश के कारण वे यहां से चुनाव जीत गए. पर चुनाव जीतते ही उनके सुर बदल गए. उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहना शुरू कर दिया कि उनके दु:ख के समय में समाज ने साथ नहीं दिया. भाजपा ने ही उनके दु:ख को समझा और सहारा दिया. आज उनके पुत्र के मामले की सीबीआई जांच हो रही है. साहू समाज को उसका यह वक्तव्य अखर गया है. सवाल उठाए जा रहे हैं कि पुत्र की हत्या की घटना को वो और कितना भुनाएंगे. उनके इस बड़बोलेपन से साहू समाज खफा है और उसे सबक सिखाने के लिए वो एकजुट होकर राजेन्द्र के पक्ष में मतदान कर सकते हैं.
भाजपा को इस बात का भी नुकसान
भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है दुर्ग विधायक और साजा विधायक को लेकर लोगों की नाराजगी. भिलाई और पाटन विधानसभा तो पहले ही भाजपा हार चुकी है. दुर्ग विधायक आज तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में नाकाम रहे हैं. यहां तक कि लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि इससे तो अरुण वोरा ही ठीक थे. कम से कम लोगों के बीच उनका उठना बैठना तो था. बघेल को लेकर नाराजगी की और वजह यह है कि उनका पूरा कार्यकाल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कोसने में ही बीत गया. सीएम और सांसद के बीच की यह तनातनी को लेकर समाज को मायूसी ही हुई. समाज को इस बात की खुशी थी कि उनके समाज से एक मुख्यमंत्री और एक सांसद बन गया है. पर थोड़े ही दिनों में उनका भ्रम टूट गया. किसी भी कार्यक्रम में इन दोनों नेताओं ने एक साथ शिरकत नहीं की. एक को बुलाओ को दूसरा गायब.
कितना मजबूत है साहू समाज?
वर्ष 2009 के लोकसभा क्षेत्र में 14 लाख 98 हजार 937 मतदाता थे. इनमें सर्वाधिक 3 लाख 29 हजार 768 साहू समाज के थे. पिछली बार मतदाताओं की संख्या 17 लाख 55 हजार से अधिक थी. इसमें साहू समाज के मतदाताओं की संख्या 3 लाख 75 हजार से अधिक थी. इस बार दुर्ग के 14 लाख 8 हजार 376 और बेमेतरा जिले के 6 लाख 37 हजार 378 मतदाताओं को मिलाकर 20 लाख 45 हजार 754 मतदाता है. इनमें 4 लाख 75 हजार से ज्यादा अर्थात लगभग एक चौथाई साहू हैं.
दुर्ग लोकसभा का निर्वाचन इतिहास
1952 में अस्तित्व में आया दुर्ग लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र पहले कांग्रेस का ही गढ़ था. यहां से कांग्रेस के क्रमशः वासुदेव किरोलीकर, मोहनलाल बाकलीवाल, विश्वनाथ तामस्कर, चन्दूलाल चन्द्राकर, जैसे नेताओं ने जीत दर्ज. 1977 में पहली बार जनता पार्टी के मोहन जैन ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली. पर 1980 एवं 84 में चंदूलाल चंद्राकर पुनः यहां से सांसद बने. 1989 में यह सीट जनता दल के खाते में चली गई और पुरुषोत्तम कौशिक सांसद बने. 1991 में पुनः चंदूलाल चंद्राकर ने यह सीट जीत ली. 1996, 1998, 1999 एवं 2004 के चुनाव में भाजपा के ताराचंद साहू ने जीत ली. 2009 में इस सीट पर भाजपा की सरोज पांडे ने जीत दर्ज की. 2014 के चुनाव में एक बार फिर यह सीट कांग्रेस के पास चली गई जब ताम्रध्वज साहू ने भाजपा प्रत्याशी को परास्त कर दिया. 2019 में यह सीट एक बार फिर भाजपा के खाते में चली गई और विजय बघेल यहां के सांसद बन गए.