
साहित्यकार जीवन यदु, रवि श्रीवास्तव, नंदकिशोर तिवारी और ललित मिश्रा देंगे व्याख्यान
रायपुर- छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद अंतर्गत साहित्य अकादमी के तत्वाधान में पंडित सुंदरलाल शर्मा स्मृति प्रसंग का आयोजन किया जा रहा है. यह आयोजन संस्कृति विभाग परिषद स्थित सभाकक्ष में 21 दिसम्बर को शाम 5.30 बजे आयोजित किया जाएगा. छत्तीसगढ़ के सुविख्यात कवि, साहित्यकार, जन जागरण और सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, नाट्यकला, मूर्तिकला व चित्रकला में पारंगत विद्वान पं. सुंदरलाल शर्मा के योगदान के संबंध में व्याख्यान का आयोजन किया गया है.
छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त ने बताया कि संस्कृति विभाग के सभागार में आयोजित होने वाले इस सांध्यकालीन कार्यक्रम में प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार व व्यंग्यकार रवि श्रीवास्तव, जाने-माने कवि जीवन यदु व पं. सुंदरलाल शर्मा के परिवार की चौथी पीढ़ी के साहित्यकार ललित मिश्रा पं. सुंदरलाल के प्रेरकीय कृतित्व व जीवन प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए व्याख्यान देंगे. कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार व चिंतक नंद किशोर तिवारी करेंगे.
छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त ने बताया कि ‘छत्तीसगढ़ का गांधी’ कहे जाने वाले बहुमुखी प्रतिभा के धनी पं. सुंदर लाल शर्मा का बहुमूल्य साहित्यिक पक्ष भी था. एक तरफ वह लगातार सामाजिक व आजादी के आंदोलन में सक्रिय रहे तो दूसरी तरफ एक साधक की भांति रचनाकर्म में लीन रहे.
सुविख्यात साहित्यकार पंडित सुंदरलाल शर्मा प्रहलाद चरित्र, करुणा-पचिसी व सतनामी-भजन-माला जैसे ग्रंथों के रचयिता हैं. उनकी छत्तीसगढ़ी-दीन-लीला छत्तीसगढ़ का प्रथम लोकप्रिय प्रबंध काव्य ग्रंथ है. उन्होंने लगभग 18 ग्रन्थ लिखे, जिनमें चार नाटक, दो उपन्यास तथा शेष काव्य रचनाएं हैं. वे कुरीतियों को मिटाने के लिए शिक्षा के प्रचार-प्रसार को आवश्यक समझते थे. उन्होंने हिंदी भाषा के साथ छत्तीसगढ़ी भाषा को भी महत्व दिया.
छत्तीसगढ़ में उन्होनें सामाजिक चेतना का स्वर घर-घर पहुंचाने में अविस्मरणीय कार्य किया. पंडित सुंदर लाल शर्मा राष्ट्रीय कृषक आंदोलन, मद्यनिषेध, आदिवासी आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहे. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में व्याप्त रुढ़िवादिता, अंधविश्वास, अस्पृश्यता तथा कुरीतियों को दूर करने के लिए सुंदर लाल शर्मा ने काफी प्रयास किया. उनके कार्य की प्रशंसा मुक्त कंठ से करते हुए, महात्मा गांधी ने पंडित सुंदर लाल शर्मा को गुरु माना था.