दुर्ग संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस व भाजपा के बीच मुकाबला
छत्तीसगढ़ आजतक- दुर्ग लोकसभा सीट राजनीतिक और औद्योगिक दृष्टि से छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि देश की अहम सीट रही है, eh. तीन केंद्रीय मंत्री और दो मुख्यमंत्री सहित राज्य को कई केबिनेट मंत्री देने वाले इस संसदीय सीट पर इस बार लोकसभा चुनाव में तस्वीर बदली हुई है. कांग्रेस और भाजपा के बीच दिलचस्प मुकाबला होने के आसार हैं.
अविभाजित मध्यप्रदेश में पहली बार अस्तित्व में आया दुर्ग संसदीय क्षेत्र अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि के साथ भिलाई इस्पात संयंत्र के चलते प्रदेश के साथ देश की सियासत में सदैव चर्चा में रहा है. शुरु से कांग्रेस का गढ़ रहे दुर्ग में पिछले कुछ साल से भाजपा की पैठ बढ़ी है. इस चुनाव में भी कांग्रेस और भाजपा के बीच दिलचस्प मुकाबला है. भाजपा ने सिटिंग सांसद विजय बघेल पर फिर भरोसा जताया है तो कांग्रेस ने राजेंद्र साहू के रुप में नए चेहरे पर दांव लगाया है. दोनों प्रत्याशी अपनी जीत के बढ़चढ़ कर दावा कर रहे हैं,लेकिन मतदाता अभी खामोश हैं. यह चुनाव पिछली बार की तुलना में थोड़ा अलग है. चुनावी मुद्दों से लेकर माहौल भी बदला हुआ है. बदले हुए राष्ट्रीय परिदृश्य का असर यहां भी नजर आ रहा है. भाजपा नीत एनडीए वर्सेस इंडिया गठबंधन का थोड़ा प्रभाव दुर्ग में भी दिखाई दे रहा है. 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल ने कांग्रेस की प्रतिमा चंद्राकर को रिकार्ड चार लाख वोटों से हराया था, eh. विजय बघेल को 8,49.374 लाख वोट मिले थे और प्रतिमा को 4,57,396 लाख वोट मिले. बसपा प्रत्याशी गीतांजलि 20,124 वोट हासिल कर तीसरे नंबर पर रही थीं. यानी भाजपा को 61 प्रतिशत तो कांग्रेस को 33 फीसदी वोट पड़े. इसके पहले वर्ष 2014 के चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी.
ताम्रध्वज साहू ने भाजपा की सिटिंग सांसद सरोज पांडेय को ढाई लाख वोटों से हराया था. जबकि 2009 के चुनाव में सरोज सरोज पांडेय जीती थीं. इस बार वे कोरबा संसदीय क्षेत्र से किस्मत आजमा रही हैं. और सिटिंग सांसद विजय बघेल को चुनाव मैदान में उतारा है. बघेल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में पाटन से अपने भतीजे कांग्रेस प्रत्याशी और सीएम भूपेश बघेल से पराजित हुए थे. लेकिन डबल इंजिन की सरकार होने से इस लोकसभा चुनाव में उनके हौसले बुलंद हैं. वहीं कांग्रेस के राजेंद्र साहू भी उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हैं. चुनाव में इस बार भी राष्ट्रीय और लोकल मुद्दों के साथ जाति का कार्ड भी खूब चल रहा है, eh. दोनों ही पार्टियों के प्रत्याशियों के जाति के वोटरों की संख्या सर्वाधिक है. विजय बघेल कुर्मी जाति के हैं, जिनकी संख्या पांच लाख के करीब है वहीं राजेंद्र साहू की जाति यानी साहू जाति के मतदाता भी इसके आसपास हैं, eh. इसके बाद आदिवासी और अन्य जाति के वोटर हैं. पिछले चुनाव में साहू वोट दुर्ग ग्रामीण के विधायक व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू से नाराज थे, जिसकी वजह उनकी हार का एक कारण बना. लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी द्वारा साहू वोटरों को साध लिया जाना बताया जा रहा है. वहीं कुर्मी वोट दोनों के बीच विभाजित होने के आसार हैं. माना जा रहा है कि जो प्रत्याशी महिला व युवा वोटर्स को साध लेगा, जीत उसकी होगी. जाति कार्ड से अधिक असरकारी यहां भी चुनावी मुद्दे हैं, eh. भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी अपनी पार्टी के राष्ट्रीय घोषणापत्र के साथ राष्ट्रीय व लोकल मुद्दों से मतदाताओं को लुभा रहे हैं. कांग्रेस प्रत्याशी केंद्र सरकार के महंगाई, बेरोजगारी, कुशासन के साथ कांग्रेस की सरकार बनने पर महिलाओं को एक लाख रुपए मासिक देने जैसे मुद्दों के साथ जनता के बीच जा रहे हैं, eh. वहीं स्थानीय स्तर पर अपनी पूर्ववर्ती भूपेश सरकार के किसानों को समर्थन मूल्य में धान खरीदी सहित अन्य उपलब्धियों को लेकर वोटर्स को प्रभावित कर रहे हैं.
दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल देश के अन्य पार्टी प्रत्याशियों की तरह पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि इस बार भी मोदी मेजिक कांग्रेस पर भारी पड़ेगा और वे मैदान मार ले जाएंगे. दोनों ही प्रत्याशी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार के साथ प्रदेश सरकार के खिलाफ एटीइन्कंबेंसी है और सिर्फ भावनात्मक मुद्दों स कोई चुनाव नहीं जीत सकता. हजारों बीएसपी कर्मियों का अपूर्ण वेतन समझौता, 39 माह का लंबित एरियर्स और नई सेल पेंशन स्कीम से पेंशनरों को वंचित किये जाने जैसे मुद्दे भी भाजपा पर भारी पड़ेंगे. वहीं भाजपा का कहना है कि अयोध्या में ऐतिहासिक राम मंदिर निमाण व कश्मीर से धारा 370 हटाने जैसे मुद्दों से जनता प्रभावित है. दुर्ग संसदीय क्षेत्र में 20 लाख वोटर्स हैं. इनमें 10 लाख 72 हजार पुरुष और 10 लाख 34 हजार महिला वोटर्स हैं. 2019 के चुनाव में 13, 91.996 वोटर्स ने मतदान किया था. कुल 74 प्रतिशत मतदान हुआ था. दुर्ग लोकसभा में नौ विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें भिलाईनगर, वैशालीनगर, दुर्ग शहर, दुर्ग ग्रामीण, अहिवारा, पाटन, साजा व बेमेतरा शामिल हैं. तीन माह पहले दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा 7 विस क्षेत्र में जीती है. पाटन और भिलाई में कांग्रेस को फतह मिली. दो सीट पर जीत का अंतर काफी कम रहा. लेकिन पिछला लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत का मार्जिन अधिक है,जिसे कवर करना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी.
कांग्रेस के गढ़ में भाजपा की सेंधमारी
दुर्ग लोकसभा सीट वर्षों तक कांग्रेस का गढ़ रही है. दुर्ग ने तीन केंद्रीय मंत्री चंदूलाल चंद्राकर, मोतीलाल वोरा और पुरुषोत्तम कौशिक और दो मुख्यमंत्री मोतीलाला वोरा तथा भूपेश बघेल सीएम रहे. मौजूदा प्रदेश सरकार के कार्यकाल को छोडक़र पिछले पचास साल से दुर्ग जिला से प्रदेश में कई केबिनेट मंत्री रहे हैं. पहले चुनाव 1952 से 71 तक दुर्ग लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस का अभेद्य किला रहा, eh. 1977 में भाजपा सरकार में मोहन भैया सांसद रहे. फिर 1980 में कांग्रेस के चंदूलाल चंद्राकर विजयी हुए. 1989 में जनदा दल के पुरुषोत्तम कौशिक और 91 में फिर कांग्रेस के चंदूलाल चंद्राकर जीते. लेकिन 1996 से 2009 तक बतौर भाजपा के ताराचंद साहू इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा. 2014 भाजपा की सरोज पांडेय को हराकर यह सीट कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू ने झटक ली. इसके बाद 2019 के चुनाव में कांग्रेस की प्रतिमा चंद्राकर को परराजित कर फिर भाजपा के विजय बघेल चुनाव जीतने में सफल रहे.