ईडी और आईटी के छापे के बाद कंपनियों से मिला करोड़ों का चुनावी चंदा
कठघरे में भाजपा
छत्तीसगढ़ आजतक- ऐन लोकसभा चुनाव के पूर्व भारत के भागय विधाता माने जाने वाले राजनीतिक दलों के भ्रष्टाचार के एक बड़े मामले से देश की सियासत गरमाई हुई है. बड़ी कंपनियों से करोड़ों का चुनावी चंदा लेने के इस भ्रष्टाचार को भारत में सदी का सबसे बड़ा घोटाला बताया जा रहा है. देश-दुनिया को हिला देने वाले इलेक्टोरल बांड को लेकर अब सबसे ज्यादा कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष को भ्रष्ट करार देने वाली सत्तारुढ़ भाजपा सरकार कठघरे में है. इस मसले में पार्टी की भूमिका को लेकर कई सुलगते सवाल खड़े किए जा रहे हैं. राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए जारी होने वाले इलेक्टोरल बांड को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है.
देश में सेवा से बेलगाम लूट और अराजकता में तब्दील होती जा रही राजनीति में किस तरह राजनीतिक दल और सत्तासीन पार्टियां अपनी सात पुश्तों को आर्थिक सेहतमंद बनाने के लिए काली कमाई में जुटे हुई हैं, इलेक्टोरल बांड इसका सबसे बड़ा और शर्मनाक उदाहरण है.
देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार के क्षेत्र में इलेक्टोरल बांड के महाघोटाले के उजागर होने से हड़कंप मचा हुआ है. इसे दुनिया का सदी का सबसे बड़ा घोटाला बताया जा रहा है. बांड ने धनकुबेरों से चंदा लेने वाले बहुतेरे राजनीतिक दलों के साथ नैतिकता का डंका पीटते रहने वाले सत्तासीन भाजपा के भी मोदी मैजिक की हवा निकाल दी है. भाजपा को सबसे ज्यादा 5272 करोड़ रुपए यानी 58 फीसदी चुनावी चंदा मिला. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण सहित कई लोगों की जनहित याचिका पर सर्वोच्च अदालत की लताड़ और खुलासे के बाद के सर्वाधिक बेनकाब हुई भाजपा की इलेक्टोरल बांड के जरिए बड़ी कंपनियों से चंदा बटोरने का तारीका शातिराना ही नहीं वरन अवैधानिक भी है. बड़ी कार्पोेरट कंपनियों से चंदाखोरी के लिए पहले ईडी जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों का चाबुक लहराया गया फिर करोड़ों की वसूली के एवज में सरकार ने उन्हें कई गुना अधिक रुपए के ठेके दिए.
मोदी सरकार ने चंदे के बाद दिये बड़े ठेके
खुद के अलावा अन्य सभी राजनीतिक दलों को भ्रष्ट बताने वाली भाजपा ने सत्ता के पावर गेम का फायदा उठाते हुए बड़ा खेला किया है. सुप्रीम कोर्ट की फटकार पर स्टेट बैंक द्वारा इलेक्टोरल बांड के मामले में कोर्ट में प्रस्तुत इसकी डिटेल के मुताबिक राजनीतिक दलों में सर्वाधिक बांड के मार्फत चंदा भाजपा को मिला है. दूसरे नंबर पर कांग्रेस है. बड़ी ही चतुराई से भाजपा ने बड़ी बड़ी कंपनियों से चंदा लेने ईडी, आईटी और सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों का किसी हथियार की तरह इस्तेमाल किया. इसका खुलासा ब्रिटेन के अखबार रायटर ने किया है. रिपोर्ट के अनुसार भाजपा को बाकी पार्टियों की तुलना में 55 प्रतिशत इलेक्टोरल बांड से चंदा मिला है. चंदा देने वालों में कई नामीगिरामी कंपनियां शामिल हैं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रूडेन फंड से जो पैसे मिले वह भाजपा के अचानक तेजी से बढ़ गए. पैंतीस बिलियन रुपए के आसपास भाजपा को मिले. रिपोर्ट बताती है कि कई कार्पोरेट कंपनियों ने जांच एजेंसियों के छापे के बाद यानी दबाव में या ठेके मिलने के प्रलोभन में चंदे दिए. कोविड वैक्सीन बनाने वाली सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया कंपनी ने करोड़ों रुपए का भाजपा को चंदा दिया. एक अगस्त 2022, दो अगस्त 22, व 17 अगस्त 2022 को यह चेक भुनाए गए. इसमें भाजपा 18 अगस्त 2022 को 52 करोड़ रुपए 502.25 करोड़ चंदे चंदा दिया गया. सीरम इंस्टीट्यूट कंपनी 18 अगस्त को 52 करोड़ का चंदा देती है और बाईस अगस्त को उसकी प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात होती है औैर इसके बाद इस कंपनी को भारत में सरकारी कंपनी के होते हुए कोविड की वैक्सीन बनाने का ठेका मिलता है. इसके बाद कंपनी का बिजनेस थोड़ा बहुत नहीं बल्कि 80 प्रतिशत बढ़ जाता है. सरकार हर व्यक्ति को दो दो डोज लगाना अनिवार्य कर देती है. भारतीय एयरटेल ने भी दो बार भाजपा को करोड़ों का चंदा दिया. इसी तरह फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज कंपनी ने सौ करोड़ रुपए का चंदा दिया. इस कंपनी ने कुल 1 हजार 200 इलेक्टोरल बांड खरीदे. टांप 30 सबसे बड़ी कंपनियों में 14 ऐसी कंपनियां हैं, जिनके ठिकानों पर ईडी की या सीबीआई की या फिर किसी और सेंट्रल एजेंसी की रेड पड़ी. रेड पडऩे के बाद इन्होंने इलेक्टोरल बांड खरीदा. फ्यूचर एंड गेमिंग कंपनी पर ईडी की रेड में 408 करोड़ जब्त किए गए थे.
लाटरी किंग से भी खुलवाई लाटरी
काला धन विदेश से स्वदेश लाने का वादा कर सत्ता हथियाने वाले भाजपा सुप्रीमो मोदी ने चुनावी चंदे के लिए गरीबों के खून पसीने की कमाई लूटने वाले लाटरी किंग से भी परहेज करने की नैतिकता नहीं दिखाई. एक हजार दो सौ आठ करोड़ के चुनावी बांड खरीदने वाली कंपनी सेंटियागो मार्टिन है, जो लाटरी किंग के नाम से कुख्यात है. सिक्किम से लेकर कई राज्यों में लाटरी का काला धंधा करती है, जिस पर कई आरोप हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीता रमण ने सेंटियागो मार्टिन के बेटे के साथ मंंझा साझा करते हुए उसे भाजपा का दुपट्टा पहनाते हुए तस्वीर खिंचवाई थी. यह कंपनी भाजपा को एक हजार दो सौ आठ करोड़ देती है. सबसे ज्यादा चुनावी चंदा देने वाली दूसरी बड़ी कंपनी मेघा इंजीयिरिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर है. इनके ऊपर भी अक्टूबर 2019 में इनकम टैक्स की रेड पड़ी और इसके बाद इसने 821 करोड़ के बांड खरीदे. इसी तरह मार्च 2020 में हल्दी एनर्जी लिमिटेड कंपनी पर सीबीआई की रेड पडऩे के बाद 370 करोड़ के इलेक्टोरल बांड खरीद भाजपा को चंदा दिया. वेदांता लिमिटेड अगस्त 2022 में ईडी की रेड पड़ी थी, जिसके बाद इस कंपनी ने375.65 करोड़ का इलेक्टोरल बांड खरीदा. इसी तरह कोविड काल में मरीजों से एक्स्ट्रा पैसे वसूलने के आरोप का सामना करने वाले यशोदा सुपर स्पेशिलिटी आफ हास्पिटल ने दिसंबर 20 में इनकम टैक्स की रेड पडऩे के बाद 162 करोड़ का इलेक्टोरल बांड खरीदा था. सवाल है कि भला एक हास्पिटल को बांड खरीदने की क्या जरुरत आ पड़ी. डीएलएफ कमर्शियल डेवलेपर्स लिमिटेड को लेकर राबर्ड वाड्रा को कटघरे में खड़ा करने वाली खुद भाजपा ने इस कंपनी पर जनवरी 19 में सीबीआई और नवंबर 2023 में ईडी की रेड पडऩे के बाद कंपनी से 130 करोड़ के इलेक्टोरल बांड खरीदवाकर चुनावी चंदा वसूला. जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड पर भी अप्रेल 2019 में ईडी की रेड पडऩे के बाद कंपनी ने 130 करोड़ के इलेक्टोरल बांड खरीदे थे.
चंदा देने के बदले मिले बड़े प्रोजेक्ट
इलेक्टोरल बांड केंद्र की भाजपा सरकार का बड़ा चक्रव्यूह था कि जिसमें कई बड़ी कंपनियां चुनावी चंदा देने के लिए मजबूर हो गईं. पहले तो इन्हें सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स के छापे के छापे मारकर भयादोहन से चंदे के लिए इलेक्टोरल बांड खरीदने मजबूर किया गया फिर चंदे के एवज इन्हें मोदी सरकार ने इन्हें देश में बड़े बड़े प्रोजेक्ट के ठेके दिए. इससे इन कंपनियों को चंदे की राशि से कई गुना अधिक लाभ और मुनाफा हुआ. इलेक्टोरल बांड खरीदने वाली टांप 30 कंपनियों की यही कहानी है. बताते हैं कि कुछ कंपनियों तो इलेक्टोरल बांड खरीदवाने के लिए ही सरकार ने बनवाईं. इस हाथ दो तो उस हाथ लो की तर्ज पर सौदा करते हुए कई कंपनियों को धड़ाधड़ ठेके दिए गए. यानी सबका साथ सबका विकास. पिछले साल उत्तराखंड में टनल में फंसे मजदूरों को निकालने का ठेका लेने वाली रेड मिनर की कंपनी नवयुग कंस्ट्रक्शन ने अप्रेल 19 में तीस करोड़, अक्टूबर 19 में 15 करोड़ और अक्टूबर 22 में दस करोड़ यानी कुल 45 करोड़ का इलेक्टोरल बांड खरीदा. इसके बदले में इसे करोड़ों का टनल ठेका मिला था. मुख्यमंत्री के एटीएम होने और तेलंगाना के कलेश्वरम प्रोजेक्ट में घोटाले का आरोप झेल रही मेघा इंजीनियरिंग लिमिटेड 12 मई 2023 को थाड़े औैर बोरीवली मुंबई के बीच सडक़ बनाने का करोड़ों का ठेका सरकार ने दिया. इस प्रोजेक्ट में इस कंपनी ने एलएंडटी और लार्स एंडुबो जैसी बड़ी कंपनी को हराया. मेघा इंजीयिरिंग को 12 मई 2023 को 140 करोड़ के इलेक्टोरल बांड के चंदे के एवज में चौदह हजार चार सौ करोड़ के प्रोजेक्ट का ठेका दिया गया. इसी तरह एसएल माइनिंग को 12 अप्रेल 2019 से 4 अक्टूबर 21 तक 190 करोड़ इलेक्टोरल बांड खरीदकर भाजपा को चुनावी चंदा देने के बदले में इसे 17 जनवरी 23 को 27 हजार 656 करोड़ का का ठेका मिला. इनके अलावा 11 जुलाई 23 को 25 करोड़ से अधिक का इलेक्टोरल बांड खरीदने वाले वेदांता को 14 मार्च 24 को गुजरात में सेमी कंडक्टर प्रोजेक्ट लगाने की अनुमति मिल गई है तो बांड के रुप में भाजपा को चंदा देने वाले वंडर सीमेंट को भी मेघा इंजीनिरिंग की तर्ज पर मात्र दो महीने बाद नए प्रोजेक्ट का ठेका मिल गया है. छह जनवरी 24 को नया प्रोजेक्ट हासिल करने वाली हींडर सीमेंट कंपनी नवंबर 23 में दस करोड़ का इलेक्टोरल बांड खरीदा था. इसी तरह दिसंबर 21 में 170 करोड़ का ठेका प्राप्त करने वाली बीजी सर्विस ने भी इसके कुछ माह पूर्व बड़ी मात्रा में बांड खरीदे. पंद्रह करोड़ के बांड खरीदने वाले जीनस पावर को 126 करोड़ के प्रोजेक्ट का ठेका सरकार ने दिया.
अंबानी की कंपनी ने दिए 410 करोड़
इलेक्टोरल बांड खरीदकर भाजपा को चंदा देने वाली कापोर्रेट कंपनियों में अंबानी ग्रुप भी शामिल हैं. जिसके बारे में गोदी मीडिया प्रचारित कर रहा है कि चंदा देने वालों में अंबानी- अडानी शामिल नहीं हैं. कई कंपनियां तो ऐसी हैं,जिन्हें इलेक्टोरल बांड से चंदा देने के लिए ही 2022 में बनाया गया. तुरंत बांड खरीदती हैं और इसके बाद इन पर जांच एजेंसियों की कोई कार्रवाई नहीं होती. क्यूडब्ल्यूआई के नामक कंपनी रिलायंस ग्रुप यानी अंबानी की है, जिसकी सप्लाई चेन ने 410 करोड़ रुपए के बांड 2019 में खरीदे हैं. यानी हिमाचल और बाकी राज्यों में हुए चुनाव के ठीक पहले. भाजपा को चंदा देने वाली क्यूडब्ल्यूआई के सप्लाई चेन रिलायंस जिओ की प्रापर्टी है. इसी तरह करोड़ों के बांड खरीदने वाली कानपुर में रजिस्टर्ड यूपी पावर ट्रांमिशन कंपनी को भी कई प्रोजेक्ट सरकार से मिले हैं. भाजपा को चुनावी चंदा देने वाली भारत की ही बड़ी कंपनियां नही हैं बल्कि पाकिस्तान के अडानी के नाम से प्रसिद्ध हब पावर कंपनी भी है, जिसकी ब्लूचिस्तान, सिंदौर और पाकिस्तान कश्मीर ( आजाद कश्मीर ) में कई फैक्ट्रियां हैं. कंपनियों के अलावा मोनिका, सिंगल, कुसुम मारोटी व प्रीति मारोटी जैसे लोगों ने व्यक्तिगत रुप से भी इलेक्टोरल बांड खरीदी जिसके बाद उन्हें सरकार से ठेके मिले और उनकी आय भी भारी इजाफा हुआ. ऐसी कई कंपनियां हैं, जिनसे सुनियोजित तरीके से इलेक्टोरल बांड के जरिए भाजपा ने करोड़ों का चुनावी चंदा लिया. पहले जांच एजेंसियों से इन्हें अपने संजाल में लिया गया, फिर बांड खरीदवाने के बाद उन्हें कई गुना अधिक राशि के बड़े बड़े ठेके देकर कृतार्थ किया गया.
जानिए क्या है इलेक्टोरल बांड
इलेक्टोरल बांड के जरिए राजनीतिक दलों को चुनावी चंदा दिए जाने की योजना पहली बार केंद्र की भाजपा सरकार के केबिनेट मंत्री अरुण जेटली ही लेकर आए थे. चुनावी बांड के जरिए सियासी पार्टियों को चंदा दिया जाता है. इसकी व्यवस्था पहली बार वित्त मंत्री ने 2017-18 के केंद्रीय बजट में की थी. 29 जनवरी 18 में इलेक्टोरल बांड स्कीम लाई गई. इसके तहत स्टेट बैंक आफ इंडिया की चुनिंदा शाखा से देश का कोई भी व्यक्ति या कंपनी एक हजार , 10 हजार, एक लाख औैर एक करोड़ रुपए के गुणांक में बांड्स खरीदकर अपनी पसंदीदा पार्टी के दाने दे सकता है. इसमें शर्त यह थी कि इसे उन्ही अकाउंड्स के जरिए खरीदा जा सकती था, जिनमें केवाईसी की जानकारी पूरी हो. बांड खरीदने के 15 दिन के अंदर इसका उपयोग जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के सेक्शन 29 ए के तहत रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों को दान देने के लिए करना होता था. हालांकि उन्हीं राजनीतिक दलों को चंदा दिया जा सकता है, जिनसे से सबसे ताजा लोकसभा या विधानसभा चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो. पंद्रह दिन में बांड को नहीं भुनाने की स्थिति में राशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा हो जाने का नियम था.
सुलगते सवालों से पार्टियां कठघरे में
चुनावी बांड को लेकर चंदाखोर पार्टियां कठघरें हैं. इनमें प्रमुख रुप से सर्वाधिक चंदा लेने और सत्ता में होने के कारण इलेक्टोरल बांड खरीदने वाली कंपनियों पर इसके लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिए दबाव डालने और बतौर प्रलोभन ठेके देने के लिए भाजपा सरकार मुख्य रुप से सडक़ से संसद और कोर्ट तक टार्गेट में है. राजनीतिक दलों को नकद चेक के जरिए चंदा देने वालों का ब्यौरा देना होता है, लेकिन बांड के जरिए देने वाले का नाम और पता देने की जरुरत नही होती है. बांड को सुप्रीम कोर्ट में बतौर याचिका चुनौती देने वाले वरिष्ठ अधिवक्ताओं और अन्य संगठनों का तर्क है कि बांड नागरिकों के जाने के मूल अधिकार का उल्लंघन करता है. पार्टियों को चंदा देने में पारदर्शिता को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. एसोसिशन फार डेमोक्रेटिक रिफाम्र्स ( एडीआर ) के मुताबिक इसमें बांड के खरीदार या भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है. स्वात्वि की कोई जानकारी दर्ज नहीं की जाती है. इसमें धारक यानी राजनीतिक दल को इसका मालिक माना जाता है. चुनावी बांड नागरिकों को कोई विवरण नहीं देते लेकिन सरकार हमेशा सीबीआई से डेटा की मांग करके दानकर्ता की जानकारी प्राप्त कर सकती है. एडीआर ने कहा है कि निर्वाचन आयोग ने कहा था कि चुनावी बांड के जरिए किसी राजनीतिक दल द्वारा प्राप्त किसी भी दान को रिपोर्टिंग के दायरे से बाहर कर दिया गया है. तर्क यह भी दिया गया है कि भले ही बांड के जरिए पार्टियों को चंदा देने वाले के बारे में चुनाव आयोग को पता ना हो पर यह पूरी तरह से गोपनीय भी नहीं था. क्योंकि एसबीआई के पास इस बात का पूरा रिकार्ड होता है कि बांड किसने खरीदा और किस पार्टी को दान में दिया. विपक्ष की पार्टियों का तर्क है कि सत्ताधारी पार्टी भाजपा बड़ी आसानी से यह जानकारी जुटा सकती है और फिर इसका इस्तेमाल दान देने वालों को प्रभावित कर सकती है. बांड को लेकर सूचना के अधिकार से जुड़ा प्रश्न भी दागा गया है. इलेक्टोरल बांड लाते समय कहा गया था कि इसका उद्देश्य पार्टियों को मिलने वाले चंदे में काले धन के लेन देन को खत्म करना है. अटार्नी जनरल आर वेंकट रमणी ने इसका समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा भी था कि यह स्कीम राजनीतिक दलों के लिए दिए जाने वाले चंदों में वाइट मनी के इस्तेमाल को बढ़ावा देती है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की बांड की एसबीआई को फटकार के बाड चुनाव पूर्व पेश की गई डिटेल में चंदा देने वाली कंपनियों की ब्लैकमनी की बू आ रही है. इस मामले वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट के सामने हलफनामे में चुनाव अयोग ने भी कहा था कि सरकार द्वारा कई प्रमुख कानूनों में संशोधनों से ऐसी शेल कंपनियों के खुल जाने की संभावना बढ़ जाएगी, जिन्हें सिर्फ राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के इललौते मकसद से बनाया जाएगा. बांड की फंडिंग में पारदर्शिता खत्म देंगे औैर इनका इस्तेमाल भारतीय राजनीति को प्रभावित करने के लिए विदेशी कारर्पोरेट शक्तियों को आमंत्रण देने जैसा होगा. इसी तरह भारतीय रिजर्व बैंक ने भी कई बार चेतावनी दी थी कि इलेक्टोरल बांड का इस्तेमाल काले धन के प्रसार, मनी लांड्रिंग और सीमा जालसाजी को बढ़ाने के लिए हो सकता है. जनहित याचिका पर हालिया सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में खुलासे से यह आशंकाएं सच साबित हुईं.
याचिका में सरकार को घेरा
सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका में बहुविवादित इलेक्टोरल बांड योजना पर कई सवाल उठाए गए हैं. सर्वाधिक घेरे में मोदी सरकार है. बांड योजना को दो आधारों पर सुप्रीम कोर्ट में कानूनी चुनौती दी गई है. सबसे पहले यह तर्क दिया गया है कि इस योजना के परिणामस्वरुप भारत में राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता का पूर्ण अभाव हो गया है. इससे चुनाव आयोग और नागरिकों को राजनीतिक योगदान और पार्टियों की आय के स्रोत के बारे में अहम जानकारी देने तक पहुंचने से रोका जा रहा है. दूसरा प्रश्न यह उठाया गया है कि इस योजना को धन विधेयक के रुप में पारित करना, जिससे संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा को दरकिनार किया जा सके, असंवैधानिक है. शक्तियों के सिद्धांत और नागरिकों के सूचना के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है. जनहित याचिका 2017 में शुरु की गई थी, वित्त मंत्रालय ने जनवरी 18 में औैर कानून मंत्रालय ने 18 में अपनी प्रतिक्रिया दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने एसोसिएशन फार डेमोटक्रटिक रिफार्म औैर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) द्वारा दायर याचिकाओं के संग्रह पर विचार किया गया, जो भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम में किए गए संशोधनों की वैधता का विरोध करते हैं. 2016-17 के वित्त अधिनियम के माध्यम से लोक अधनियम, आयकर अधिनियम , कंपनी अधिनियम और विदेशी योगदान विनिमय अधिनियम संशोधनो ने चुनावी बांड के उपयोग को सक्षम किया था. सरकार के इस फैसले के खिलाफ अपनी याचिका में सीपीआईएम के नेता सीताराम येचुरी ने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक बताते हुए रद्द किए जाने की मांग की थी. लोकसभा चुनाव 2024 में इलेक्टोरल बांड की पारदर्शिता और इसे लेकर केंद्र की मोदी सरकार की संदिगध भूमिका को लेकर याचिकाकर्ताओं के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 6 मार्च में एसबीआई से इलेक्टोरल बांड यानी पार्टियों को चंदा देने वालों की डिटेल मांगा गया. पहले तो एसबीआई द्वारा बांड के मिलान करने का हवाला देते हुए लोकसभा चुनाव के बाद तीस जून तक देने की बात कह टालमटोल किया जाता रहा लेकिन कोर्ट के फटकार लगाने पर निर्धारित अवधि में चंदा देने वालों की पूरी सूची पेश करने मजबूर होना पड़ा. इसमें भाजपा सहित सभी चंदाखोर पार्टियों के साथ इलोक्टोरल बांट खरीदने वालों के भी नाम उजागर हो गए. लेकिन अभी भी इस महाघोटाले को लेकर बहुत कुछ खालासा होने का याचिकाकर्ताओं को इंतजार है. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता तो इसे सीधे घूसखोरी का मामला बताते हैं तो अंजलि भारद्वाज कहती है कि इलेक्टोरल बांड में कोई पारदर्शिता नहीं है. खुद सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है.
खोजी पत्रकार ने बांड का बजाया बैंड
पहले पहल खोजी पत्रकार पूनम अग्रवाल ने 2018 में इलेक्टरोल बांड की सीक्रेसी का खुलासा किया. बांड को 2024 के चुनाव तक छिपाकर रखने में एसबीआई और मोदी सरकार की बड़ी भूमिका होने के आरोप लगाए जा रहे हैं. सवाल किया जा रहा है आखिर जब बांड घूसखोरी नहीं है तो फिर इसे सीक्रेट क्यों रखा जा रहा है. क्या यूं ही एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में कह दिया कि 22 हजार बांड के मिलान में वक्त लगेगा, हम 30 जून के बाद ही डोनरों की लिस्ट पेश कर पाएंगे. बहरहाल पत्रकार पूनम ने इसकी सीक्रेसी को उजागर कर दिया और इसी के बाद हडक़ंप मचना शुरु हुआ. जनता को सच बताने पूनम ने एसबीआई की पार्लियामेंट ब्रांच से एक एक हजार को दो इलेक्टोरल बांड खरीदे. सभी बांड की वेलिडिटी 15 दिन की होती है, इसके बाद खरीदार को पैसे नहीं मिलेंगे. बांड में डोनर का नाम भी नहीं होता, जो सीक्रेट सीरियल नंबर होता है जो, दिखाई नहीं देता. यानी डोनर का नाम गुप्त रहता है,जिसे मनचाही राशि का खरीदकर वह अपनी पसंदीदा राजनीतिक पार्टी को देता है. पूनम ने बांड पेपर को फारेंसिक लेब में जांच करवाया तो इसमें एमाउंट के ऊपर एक छुपा हुआ सीक्रेट सीरियल नंबर होने का पता चला. लेकिन
अल्ट्रावायलेट होने के कारण बांड की सीक्रेट सीरियल नंबर यूवीआर टार्च की रोशनी में ही दिखाई देता है. यूवीआर से जब देखा तो वाइट कलर का सीक्रेट नंब दिखाई दिया. यानी सीधा पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है. जब आप इस इलेक्टोरल बांड को लेकर एसबीआई जाएंगे तो बैंक चेक की तरह जैनुइन पता करने सीरियल नंबर चेककर साफ्टवेयर में फिट करेगा कि इसे किसको अलाट किया गया है. फिर वह आपके बताए राजनीतिक दल का नाम लिख देंगे.
इलेक्टोरल बांड
चुनावी निगरानी संस्था एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफम्र्स (एडीआर ) के मुताबिक वर्ष 2016-17 और 2021-22 के बीच पांच साल में कुल सात राष्ट्रीय दलों और 24 क्षेत्रीय पार्टियों को चुनावी बांड से कुल 9,188 करोड़ रुपए मिले. इस 9,119 करोड़ में से अकेले भारतीय जनता पार्टी की हिस्सेदारी 5272 करोड़ रुपए थी. यानी कुल इलेक्टोरल बांड के जरिए दिए गए चंदे का करीब 58 प्रतिशत हिस्सा भाजपा को मिला. इस अवधि में कांग्रेस को इलेक्टोरल बांड से 952 करोड़ रुपए मिले. जबकि तृड़मूल कांग्रेस को 767 करोड़ रुपए मिले. वित्त वर्ष 2017-18 और 21-22 के बीच राष्ट्रीय पार्टियों को बांड के जरिए मिलने वाले चंदे से 743 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई . वहीं दूसरी ओर इसी अवधि में राष्ट्रीय दलों को मिलने वाला कार्पोरेट चंदा केवल 48 फीसदी बढ़ा.