
रायपुर- अंधेरे समय में खुद की तलाश करने के नाम मुक्तिबोध है. जैसा अंधेरा मुक्तिबोध के जमाने में था, आज उससे कहीं ज्यादा गहरा है. ऐसे में मुक्तिबोध रोशनी दिखाते हैं, यह बात कवि एवं विचारक लाल्टू ने पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कला भवन में आयोजित दो दिवसीय ‘मुक्तिबोध प्रसंग’ के आयोजन के पहले दिन उद्घाटन सत्र के दौरान कही. उन्होंने मुक्तिबोध के भाषा संबंधी विचारों को व्यक्त करते हुए मुक्तिबोध के लेख ‘अंग्रेजी जूते में हिंदी फिट करने वाले भाषाई रहनुमा’ को पढ़ते हुए वर्तमान भाषाई संकट पर बात रखी. अलग-अलग सत्रों व विभिन्न विषयों पर केन्द्रित दो दिवसीय ‘मुक्तिबोध प्रसंग’ का आयोजन छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी और पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है.
वरिष्ठ आलोचक जय प्रकाश ने मुक्तिबोध के जीवन प्रसंग से जुड़े आत्मीय संस्मरणों को सुनाते हुए, विचर निर्माण की यात्रा से अवगत कराया. उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध की कविता और जीवन में एकरूपता दिखती है. वह संघर्ष के कवि हैं. विचारधारा की प्रासंगिकता मुक्तिबोध को मुक्तिबोध बनाते हैं. इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रदीप मुक्तिबोध ने कहा कि मुक्तिबोध ने शिक्षा और इतिहास को लेकर बात की. आज संवैधानिक संस्थायें खतरे में हैं यह हम आज के समय में देख रहे हैं और उन्होंने बहुत पहले कहा था कि अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने ही होंगे.
मुक्तिबोध की कविताओं पर केन्द्रित ‘आवेग-त्वरित-काल-यात्री’ विमर्श सत्र के दौरान कवि मिथलेश शरण चौबे ने कहा कि मुक्तिबोध साहित्य और समाज को लेकर चलते हैं. मुक्तिबोध साहित्य एवं समाज के सीधे संवाद के हिमायती हैं. उनकी कवायद रही है कि साहित्य और कलायें राजनीति के अंदर की चेष्टायें नहीं हैं, बल्कि राजनीति के समानांतर चलने वाली चेष्टा है. मुक्तिबोध राजनीति की केन्द्रता को हटाकर आम जनमानस को स्थापित करते हैं. इसकी पहली सीढ़ी है मनुष्य निर्माण. सत्य का अन्वेषण करते हुए मुक्तिबोध सत्य की सार्थकता को व्यक्त करते हैं.
इसी सत्र में आलोचक मृत्युंजय कहते हैं कि मुक्तिबोध की कविताओं में मैं की आलोचना है. वे आत्मसंघर्ष की बात विस्तार रूप में करते हैं. उनके पास भविष्य का नक्शा व समय की समीक्षा है.
कवि गोष्ठी का आयोजन
आखिरी सत्र ‘कविता समय’ में कवियों द्वारा अपनी कविताओं का पाठ किया गया, जिसमें लाल्टू ने उद्धरण में मुक्तिबोध, स्वाद, स्वर्ण युग, जुड़ो, जानना, नवल शुक्ल ने यह लोकतंत्र हमारा है, छूटना, मैं प्रतिदिन हूं, विजय सिंह ने डोकरी फूलों की, पथिक तारक ने नदी यहां से बंधेगी, बांध,पिता के साथ-साथ, भास्कर चौधरी ने यह बैल बूढ़ा, इच्छा, अम्मा के हिस्से का दुःख, काली लड़की, उसने कहा आदि कवितायें सुनाई. बसंत त्रिपाठी ने इस सदी को, 47 साल, घर और पड़ोस कविता पढ़ी, मिथलेश शरण चौबे ने मरना नहीं था, अमरता के गल्प को ठेलना था, अंदर, निःशब्द, मृत्युंजय ने गुरु दिवस, मांजना के साथ ही आखिर में प्रफुल्ल शिलेदार ने कविताएं पढ़ी. विभिन्न सत्रों में कार्यक्रम का संचालन क्रमश: राजकुमार सोनी, कामिनी और भुवाल सिंह ठाकुर ने किया.
30 नवम्बर के कार्यक्रम
छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ईश्वर सिंह ने बताया कि 8 नवम्बर को रविशंकर विश्वविद्यालय के कला भवन में मुक्तिबोध प्रसंग अंतर्गत सुबह 11 बजे विमर्श सत्र- ‘मुक्तिबोध और मुक्तिबोध: गजानन माधव और शरच्चंद्र माधव’, वक्ता- श्रीपाद भालचंद्र जोशी, प्रदीप मुक्तिबोध, प्रफुल्ल शिलेदार अपने विचार व्यक्त करेंगे. इस सत्र की अध्यक्षता- दिवाकर मुक्तिबोध द्वारा की जाएगी. दोपहर 2 बजे कविता समय, शून्य व अन्य कविताओं का मंचन होगा. इसके साथ ही विभाष उपाध्याय, सूत्रधार नाट्य समूह, भिलाई द्वारा प्रस्तुति दी जाएगी. दोपहर 2.30 बजे विमर्श सत्र: ‘अंधेरे में रोशनी मुक्तिबोध’ वक्ता– बसंत त्रिपाठी, पंकज श्रीवास्तव, कामिनी और भुवाल सिंह ठाकुर अपने विचार व्यक्त करेंगे. इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. मधुलता बारा द्वारा की जाएगी.