रायपुर : छत्तीसगढ़ में BJP की नींव रखने वाले बड़ा आदिवासी चेहरा नंद कुमार साय ने BJP का दामन छोड़ दिया है. रविवार को BJP में अपने पद से इस्तीफा देने के बाद अब वरिष्ठ नेता नंद कुमार साय कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. नंदकुमार ने रायपुर स्थित राजीव भवन में कांग्रेस का हाथ थामा है. सीएम भूपेश ने नंदकुमार को कांग्रेस की सदस्यता दिलाई है. वहीं कांग्रेस पार्टी में उत्सव का माहौल है. नंदकुमार का राजीव भवन में ढोल-नगाड़ों के साथ स्वागत किया गया.
इस साल मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले नंद कुमार साय का कांग्रेस में शामिल होना BJP के लिए तगड़ा झटका है. इसका असर न सिर्फ छत्तीसगढ़ की राजनीति बल्कि मध्यप्रदेश की राजनीति में भी पड़ेगा.
छत्तीसगढ़ में रखी थी BJP की नींव
प्रदेश के बड़े आदिवासी नेता नंद कुमार साय ने मध्य प्रदेश से अलग होकर गठित हुए छत्तीसगढ़ में BJP की नींव रखी थी. राज्य गठन के बाद उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था. इस दौरान उन्होंने पार्टी नेताओं के साथ मिलकर जोगी सरकार के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन में पुलिस ने लाठीचार्ज किया था, जिसमें साय का पैर टूट गया था. इसके बाद BJP ने इस मुद्दे को भुनाया और जोगी सरकार के अत्याचार को मुद्दा बनाया. इसके बाद प्रदेश में BJP की सरकार बनी थी.
BJP की ओर से साय बड़े आदिवासी नेता थे. इसी वजह से उन्हें अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष भी बनाया गया था. जब भी BJP ने आदिवासियों का साधने का प्लान बनाया तब-तब साय हमेशा आगे रहे. उनके चेहरे पर ही BJP ने आदिवासी वर्ग का भरोसा जीता. साय ऐसे राजनेता हैं, जो हमेशा विवादों से दूर रहे हैं.
कांग्रेस को मिलेगा बड़ा फायदा
प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से 29 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं. इनमें से 27 सीटों पर कांग्रेस काबिज है, जबकि सिर्फ 2 सीटें ही BJP की झोली में हैं. इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासी समुदाय को साधने के लिए BJP ने पूरी तैयारियां कर ली थीं. बस्तर में 12 सीटें हैं. दरअसल, बस्तर में हो रहे हिंसा, आदिवासियों के धर्मांतरण और आरक्षण के मुद्दे को BJP ने जमकर उठाया. इसे लेकर कहीं न कहीं साफ हो रहा था कि BJP अपनी पैठ जमाने में सफल हो जाएगी, लेकिन अब पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं.
सरगुजा पर भी पड़ेगा असर
साय का असर सरगुजा की राजनीति पर भी पड़ेगा. वह सरगुजा से साल 2004 में सांसद रहे. इससे पहले साय 1989 और 1996 में रायगढ़ लोकसभा सीट से सांसद चुने गए हैं. वर्तमान में सरगुजा संभाग की 14 विधानसभा सीट में से एक पर भी BJP के विधायक नहीं हैं.
MP चुनाव में भी पड़ेगा असर
साय का BJP को छोड़कर कांग्रेस में जाना न सिर्फ छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव बल्कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव पर भी गहरा असर दिखाएगा. दरअसल, साय तीन साल तक अविभाजित मध्य प्रदेश के BJP प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं. साल 2006 में छत्तीसगढ़ के गठन से पहले वह मध्य प्रदेश की राजनीति में काफी सक्रिय रहे हैं. यहां तक की PM नरेंद्र मोदी के भी वह करीबी बताए जाते हैं. अब ऐसे में देखना होगा कि साय का असर एमपी की राजनीति में कितना गहरा छाप छोड़ती है.