
लोग सरकारी नौकरी की तरफ भाग रहे हैं
सरकारी और निजी क्षेत्रों में सिर्फ 20-30 प्रतिशत लोगों को ही रोजगार मिल सकता है
मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने वाली नीति बननी चाहिए
नई दिल्ली- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने नागपुर में विजयदशमी के मौके पर अपने संबोधन में कहा कि जो काम मातृ शक्ति कर सकती है वह सब काम पुरुष नहीं कर सकते, इतनी उनकी शक्ति है और इसलिए उनको इस प्रकार प्रबुद्ध, सशक्त बनाना, उनका सशक्तिकरण करना और उनको काम करने की स्वतंत्रता देना और कार्यों में बराबरी की सहभागिता देना अहम है.
भागवत ने कहा कि हमें महिलाओं को सशक्त बनाना पड़ेगा क्योंकि उनके बिना समाज प्रगति नहीं कर सकता. संघ प्रमुख ने आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक स्वतंत्रता पर भी जोर दिया और कहा कि सामाजिक विषमताएं हमें मिटानी होंगी.
उन्होंने कहा, ‘संविधान के कारण राजनीतिक तथा आर्थिक समता का पथ प्रशस्त हुआ हैं परंतु सामाजिक समता को लाये बिना वास्तविक व टिकाऊ परिवर्तन नहीं आयेगा, ऐसी चेतावनी पूज्य डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने हम सबको दी थी.
उन्होंने कहा कि विश्व में हमारी विश्वसनीयता बढ़ रही है. जिस तरह हमने श्रीलंका की मदद की और यूक्रेन-रूस युद्ध के समय अपनी भूमिका निभाई, इससे पता चलता है कि हमारी बात सुनी जा रही है. उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षा क्षेत्र में हम अधिकारिक स्वावलंबी होते चले जा रहे हैं.
अपवाद न बन कर रह जाए
सरसंघचालक ने कहा कि अभी पिछले दिनों उदयपुर (राजस्थान) में एक अत्यंत ही जघन्य एवं दिल दहला देने वाली घटना हुई थी . सारा समाज स्तब्ध रह गया. अधिकांश समाज दु:खी एवं आक्रोशित था. ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो यह सुनिश्चित करना होगा.

उन्होंने कहा, ‘उदयपुर घटना के बाद मुस्लिम समाज से भी कुछ प्रमुख व्यक्तियों ने अपना निषेध प्रगट किया. यह निषेध अपवाद बन कर ना रह जाए अपितु अधिकांश मुस्लिम समाज का यह स्वभाव बनना चाहिए. हिंदू समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसी घटना घटने पर हिंदू पर आरोप लगे तो भी मुखरता से विरोध और निषेध प्रगट करता है.’
बता दें कि कुछ दिनों पहले मोहन भागवत ने मुस्लिम समाज के कई प्रबुद्ध व्यक्तियों से मुलाकात की थी.
भागवत ने कहा, ‘ऐसी बैठकें होती रहेंगी. यह कोई नई बात नहीं है. यह गुरुजी के समय शुरू हुईं थीं.’ उन्होंने कहा, ‘हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को लेकर हर तरफ चर्चा हो रही है. कई लोग इस पर सहमत हैं लेकिन उन्हें हिंदू शब्द से परहेज है और वो इसकी बजाए कोई और शब्द इस्तेमाल करना चाहते हैं. हमें इससे कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन इस अवधारणा को लेकर हम अपनी स्पष्टता के लिए हिंदू शब्द का इस्तेमाल करते रहेंगे.
उद्यमिता पर जोर देना जरूरी
भागवत ने कहा कि लोग सरकारी नौकरी की तरफ भाग रहे हैं. सरकारी और निजी क्षेत्रों में सिर्फ 20-30 प्रतिशत लोगों को ही रोजगार मिल सकता है. उन्होंने कहा, ‘उद्यमिता पर जोर दिया जाना चाहिए. लोगों को अपना काम करना होगा. अगर समाज मिलकर नहीं करेगा तो सरकार कितना रोजगार बढ़ा सकती है. सरकार पर भी नजर रखनी है लेकिन समाज अपना दायित्व नहीं निभाता तो काम नहीं होगा. परिवर्तन वहां से होना चाहिए.
मातृभाषा पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, ‘जब तक हम खुद से प्रयास नहीं करेंगे तब तक मातृभाषा आगे नहीं बढ़ पाएगी. मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने वाली नीति बननी चाहिए यह अत्यंत उचित विचार है, और नयी शिक्षा नीति के तहत उस ओर शासन और प्रशासन पर्याप्त ध्यान भी दे रहा है.
नयी शिक्षा नीति के कारण छात्र एक अच्छा मनुष्य बने, उसमें देशभक्ति की भावना जगे, वह सुसंस्कृत नागरिक बने यह सभी चाहते हैं
जनसंख्या संतुलन की अनदेखी नहीं की जा सकती भागवत ने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों में स्वार्थ व द्वेष के आधार पर दूरियां और दुश्मनी बनाने का काम स्वतंत्र भारत में भी चल रहा है. उनके बहकावे में न फसते हुए उनकी भाषा, पंथ, प्रांत, नीति कोई भी हो, उनके प्रति निर्मोही होकर निर्भयतापूर्वक उनका निषेध व प्रतिकार करना चाहिए.
जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ पांथिक आधार पर जनसंख्या संतुलन भी महत्व का विषय है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. ‘जब-जब किसी देश में जनसांख्यिकी असंतुलन होता है तब-तब उस देश की भौगोलिक सीमाओं में भी परिवर्तन आता है. जन्मदर में असमानता के साथ-साथ लोभ, लालच, जबरदस्ती से चलने वाला मतांतरण व देश में हुई घुसपैठ भी बड़े कारण है. जनसंख्या नीति सारी बातों का समग्र व एकात्म विचार करके बने, सभी पर समान रूप से लागू हो, लोकप्रबोधन द्वारा इसके पूर्ण पालन की मानसिकता बनानी होगी. तभी जनसंख्या नियंत्रण के नियम परिणाम ला सकेंगे.’
गौरतलब है कि संघ ने अपने समूचे इतिहास में पहली बार किसी महिला को विजयदशमी के मौके पर मुख्य अतिथि बनाया है. इस बार पद्मश्री संतोष यादव संघ के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुई हैं. उन्होंने इस मौके पर कहा, ‘पूरे भारत ही नहीं, पूरे विश्व के मानव समाज को मैं अनुरोध करना चाहती हूं कि वो आये और संघ के कार्यकलापों को देखे. यह शोभनीय है, एवं प्रेरित करने वाला है.
कृष्ण मुरारी-