
छत्तीसगढ़ आजतक ब्यूरो-
महासमुन्द के विधायक विनोद सेवन चन्द्राकर तीखे तेवरों के साथ ही अपनी सूझबूझ के लिए भी जाने जाते हैं. उनके पास अपने विधानसभा क्षेत्र में होने वाली एक एक गतिविधि की खबर होती है. अपने निर्वाचन क्षेत्र में हुए और हो रहे एक-एक काम की जानकारी उनकी उंगलियों पर होती है. काम करने का उनका स्टाइल किसी भी प्रबंधन संस्थान के लिए दिलचस्पी का विषय हो सकता है. छत्तीसगढ़ आजतक ने इस विषय पर उनसे चर्चा की तो कई रोचक जानकारियां निकल कर सामने आईं.
सवाल – अपने निर्वाचन क्षेत्र से आपका सतत् सम्पर्क बना रहता है. राज्य के इस सीमावर्ती जिले के चप्पे-चप्पे की खबर आप कैसे रख पाते हैं?
जवाब– इच्छा हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता. हम 21 वीं सदी में जी रहे हैं. हमारे पास सभी कार्यों के लिए बेशुमार टूल्स हैं. आपको सिर्फ उनका उपयोग सीखना होता है. इन टूल्स को अपनी जरूरत के हिसाब से तैयार करवाना होता है और सारी जानकारी आपकी मुट्ठी में होती है. हमने अपने क्षेत्र के लोगों से सम्पर्क कायम करने के लिए एक ऐप बनवाया है. इसपर खर्च की गई राशि का एक-एक पैसा वसूल हो गया है. ऐप के जरिए हम अपने विधानसभा क्षेत्र के लगभग 2 लाख लोगों से सीधे जुड़े हुए हैं जो एक-एक बात की जानकारी हमसे साझा कर सकते हैं. वे समस्याएं साझा करते हैं, कार्य प्रगति की सूचना देते हैं, जरूरत के बारे में बताते हैं और हम कोशिश करते हैं कि उन्हें हल किया जा सके.
सवाल– मगर क्या सिर्फ ऐप से ही लोगों से जुड़े रहा जा सकता है? व्यक्तिगत सम्पर्क का भी अपना महत्व होता है.
जवाब – हमने विधायक बनने के बाद अपनी दिनचर्या को री-डिजाइन किया है. सुबह की दिनचर्या से फारिग होने के बाद हम शहरी क्षेत्र के लोगों के बीच पहुंचते हैं. 10 से 10.30 बजे तक हम दफ्तर लौट आते हैं. लोग अपनी जरूरतों को लेकर यहां भी पहुंच सकते हैं. प्रतिदिन दोपहर को हम निकलते हैं. लक्ष्य कम से कम दो गांवों का दौरा करना होता है. हमने नियम बना रखा है कि कोई भी सरकारी काम बिना भूमिपूजन और लोकार्पण के पूरा नहीं होगा. इससे हमें कार्य प्रारंभ और निष्पादन से सीधे जुड़ने का मौका मिल जाता है. इस दौरान लोगों से प्रत्यक्ष मुलाकात भी होती है. ऐप के माध्यम से हम 24 घंटा सम्पूर्ण विधानसभा क्षेत्र के सभी लोगों को उपलब्ध रहते हैं. क्षेत्र में कुल 210 गांव हैं जिनमें से कम से कम 3 से 4 बार तो सभी गांव का दौरा हो चुका है.
सवाल– आपकी सरकार के चार साल पूरा होने को हैं. इस दौरान आपकी उपलब्धि क्या रही?
जवाब – यह एक अच्छा सवाल है. उपलब्धियाँ वास्तविकता के धरातल पर दिखाई देनी चाहिए. सरकार ने हमारे क्षेत्र को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दो बड़ी सौगातें दी हैं. यहां 100 एकड़ जमीन पर मेडिकल कॉलेज बनकर तैयार है. इसका सेटअप भी स्वीकृत हो गया है. इस मेडिकल कॉलेज में कामकाज गति पकड़ने के बाद अंचल के लोगों को एक अच्छा अस्पताल स्थानीय तौर पर उपलब्ध हो जाएगा. अब तक उन्हें हर बात के लिए रायपुर की दौड़ लगानी पड़ती थी.
महासमुन्द एक कृषि प्रधान जिला है. हमने यहां के विद्यार्थियों को कृषि के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया है. यहां एक कृषि महाविद्यालय भी प्रारंभ किया गया है. इससे न केवल विद्यार्थियों को कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान करने का अवसर मिलेगा बल्कि इसका लाभ यहां के किसानों को भी प्रत्यक्ष तौर पर मिलेगा. इसका लाभ आने वाले वर्षों में दिखाई देगा.
सवाल– सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरुवा, घुरवा, बारी योजना को यहां कैसा प्रतिसाद मिल रहा है?
जवाब – यह कृषि के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी योजना है. इससे न केवल गांव-गांव में मवेशियों का महत्व बढ़ा है बल्कि लोग गोठानों की ओर आकर्षित होने लगे हैं. कोई भी परिवर्तन एकाएक नहीं होता. इसमें थोड़ा समय तो लग रहा है पर प्रगति उम्मीद जगाती है. नरवा योजना से भूजल स्तर में सुधार हुआ है. लोगों का कृषि के प्रति रुझान बढ़ा है. रकबा भी बढ़ रहा है और उत्पादन भी खेती किसानी के प्रति रूझान बढ़ने का एक और कारण है कि अब किसानों का हाथ खाली नहीं है. भाजपा की सरकार कभी बोनस देती थी कभी नहीं इससे किसान संसय में जीते थे. भूपेश सरकार ने इस परिपाटी को बदला है. किसान को किस्तों में ही सही पर बोनस का भुगतान लगातार किया जा रहा है. पहले जहो तीजा पोरा मनाने के लिए डर लगता था, अब हाथ में पैसा होने और समय पर पैसा मिलने की उम्मीद ने त्यौहारों मे रंग भर दिया हैं. पहले ऐसा था कि जून के बाद दावाली आने तक हाथ खाली होते थे अब कम से कम त्यौहार मनाने के लिए तो पैसा मिल जाता है माना कि छोटी – छोटी किस्ते किसी समस्या का हल नहीं पर इससे ग्रामीण जीवन में संतुष्टि तो बढ़ी है.
सवाल– महासमुंद में रेलवे ओवरब्रिज का काम काफी समय से रुका हुआ है. यह कब तक पूरा होगा?
जवाब – महासमुंद-तुमगांव रेलवे ओवर ब्रिज निर्माण कार्य में अब किसी प्रकार की बाधा या भूमि अवरोध शेष नहीं है. आरओबी के लिए प्रशासन ने ठेकेदार को ग्राउंड क्लियरेंस दे दिया है. इस मामले में एक व्यक्ति ने हाईकोर्ट से स्टे ले लिया था जिसे खारिज कर दिया गया है. अभी बारिश के कारण काम रुका हुआ है. जल्द ही इसका निर्माण कार्य पूरा कर लिया जाएगा.
सवाल – कहा जा रहा है कि नए जिले बनने से भ्रष्टाचार के नए केन्द्र खुलेंगे. इसपर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
जवाब – भ्रष्टाचार एक बेहद दिलचस्प विषय है. यह विषय चाणक्य के समय में भी था और आज तक बना हुआ है. यह आगे भी ऐसा ही चलता रहेगा. यह चोर और सिपाही के तू डाल-डाल मैं पात-पात की कहावत को चरितार्थ करती है. हम केवल इसपर अंकुश लगाने की कोशिश कर सकते हैं. इसके लिए केन्द्र से लेकर राज्य तक कई एजेंसियां हैं. पर शिष्टाचार बन चुके भ्रष्टाचार को पूरी तरह रोकना संभव नहीं है. चंदा-चकारी की संस्कृति ने भी इस समस्या को बढ़ाया है.
सवाल – विधायकों ने अपना वेतन बढ़ा लिया. इसे लेकर कर्मचारी यूनियनों में बड़ा आक्रोश है. आप क्या कहना चाहेंगे?
जवाब – विधायकों के वेतन भत्ते में जो बढ़ोत्तरी हुई है, उससे लोगों को तकलीफ इसलिए हो रही है कि उन्हें विधायकों के खर्चों का अंदाजा नहीं है. जो भी रकम आती है उसके आने से पहले ही वह खर्च हो चुकी होती है. लोग शादियों में, दुर्गोत्सव में बुलाते हैं. उन्हें उम्मीद होती है कि विधायक कुछ न कुछ देंगे. बेटियों की शादी में 500 रुपए से कम देते नहीं बनता. कहीं कहीं तो राशि हजारों में पहुंच जाती है. इसके अलावा फुटबाल, क्रिकेट, तीज मिलन जैसे समारोह में भी विधायक को कुछ न कुछ देना ही पड़ता है. हालत यह है कि चुनाव लड़ने के लिए जो 40 लाख का कर्ज मैंने लिया था, उसकी किस्तें आज तक पटा रहा हूँ.
सवाल – छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री के पक्ष में इन दिनों जबरदस्त माहौल है. उनकी सरलता और हाजिर जवाबी लोगों को खूब गुदगुदा रही है. क्या अगला चुनाव जीतने के लिए यह काफी होगा? भाजपा ने तो अभी से कमर कस ली है.
जवाब – भूपेश सरकार ने जो काम शुरू किया है उसे अंजाम तक पहुंचने में अभी वक्त है. मेरी व्यक्तिगत राय है कि सुधी जनता इस बात को जानती है. इसलिए भूपेश सरकार को वह एक मौका और अवश्य देगी. आज किसी भी व्यापारी, उद्योगपति से पूछो तो वो कहते हैं हम खुश हैं. हम भूमिहीन कृषि मजदूर को 7000 रु दे रहे हैं. यदि एक गांव में 200 लोगों को भी दे रहे है तो 14 लाख रुपये गांव पहुंच रहा है. गांव में जो कर्जा लेते हैं उनका अगर 30 हजार का भी कर्जा माफ होता है तो एक साल में 3 करोड़ रुपए कर्जा माफ हो गया. 10000 रु. बोनस पिछले 4 साल से मिल रहा है. एक हजार एकड़ वाले गांव में चार करोड़ तो बोनस का ही पैसा पहुँच गया. इस हिसाब से 4 साल में 7 करोड़ आ गया गांव में. किसान के हाथ में पैसा होगा तो वह शहर भी जाएगा और इसे खर्च भी करेगा. इससे व्यापार में भी बरकत आएगी. यह एक पूरा चक्र है जिसकी शुरुआत अब गांव से हो रही है.
खेती किसानी के प्रति रुझान बढ़ने का एक और कारण है कि अब किसानों के हाथ खाली नहीं हैं. भाजपा की सरकार कभी बोनस देती थी कभी नहीं. इससे किसान संशय में जीते थे. भूपेश सरकार ने इस परिपाटी को बदला है. किसान को किस्तों में ही सही पर बोनस का भुगतान लगातार किया जा रहा है. पहले जहां तीजा-पोरा मनाने के लिए भी डर लगता था, अब हाथ में पैसा होने और समय पर पैसा मिलने की उम्मीद ने त्यौहारों में रंग भर दिया है.
कृषि के प्रति लोगों के बढ़ते रुझान का ही प्रमाण है कि आज 99% गांव में भर्री भाठा नहीं बचे. सबको खेत बना लिया गया है. धान का रकबा भी बढ़ गया है. 2018 में 17 लाख पंजीकृत किसान थे आज 26 लाख पंजीकृत किसान हो गये हैं. पहले 22 लाख हेक्टेयर में खेती किसानी होती थी आज 30 लाख हेक्टेयर हो गया है. इस साल और बढ़ गया होगा. कर्जा लेकर खेती करने पर अंकुश लगा है. किसान और मजदूर दोनों खुश है. 10 लाख किसानों का बढ़ जाना कोई छोटी बात नहीं है. पिछली सरकार के दौरान किसान जमीन बेचकर पलायन कर रहे थे. इसी तरह पहले तेंदुपत्ता 2500 सौ रुपये मानक बोरा था आज 4 हजार रुपये हो गया है. आज के समय में अनेक परिवार एक लाख रुपए महीना तक कमा ले रहे हैं.
बिजली के बिल में छूट मिल रही है. एक मध्यमवर्गीय परिवार 400 यूनिट बिजली जला लेता है. ढाई साल से मुफ़्त राशन दे रहे हैं. 35 किलो चावल तो मिलता ही है परिवार बड़ा होने पर इसमें 10-15 किलो की वृद्धि भी कर दी जाती है. मध्यमवर्गीय परिवार के अधिकतर लोगो का खेत गांव में होता है लेकिन शहर में रहकर खेती करते है. गांव का पैसा शहर में आ रहा है. किसान जमाखोरी नहीं कर रहा. धान बेचकर किसान सबसे पहले अपने सारे कर्जों से मुक्त होते हैं फिर जो पैसा बच जाता है उसको घर लेकर जाते हैं. पहले तीजा-पोरा, दिवाली में उधारी में किसान कपड़ा लेते थे. उनकी यह मजबूरी खत्म हो चुकी है.