
चिकित्सा शिक्षा विभाग ने जारी किया मीडिया प्रबंधन के लिए प्रोटोकॉल, PCC चीफ और पूर्व स्वास्थय मंत्री सिंहदेव ने पोस्ट कर कसा तंज
रायपुर- चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ शासन के अंतर्गत संचालित समस्त शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय संबंद्ध चिकित्सालयों में मीडिया प्रबंधन के लिए प्रोटोकॉल आदेश जारी किया है. इस आदेश में ये कहा गया है कि मेडिकल कॉलेज में मीडियाकर्मियों को कवरेज से पूर्व जनसंपर्क विभाग से अनुमति लेनी होगी. इतना ही नहीं राज्य शासन के चिकित्सा शिक्षा विभाग ने राज्य के किसी भी मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों में रोगियों की फोटो-वीडियो लेने पर प्रतिबंध लगा दिया है. आदेश के मुताबिक जब तक रोगी या उसके कानूनी अभिभावक लिखित रूप से सहमति नहीं देंगे, तब तक अनुमति नहीं मिलेगी. जारी आदेश के मुताबिक मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों में मीडिया प्रबंधन के लिए प्रोटोकॉल निर्धारित करने का हवाला दिया है.
https://x.com/DeepakBaijINC/status/1935036424698626118
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को उखाड़ने की तैयारी: दीपक बैज
शासकीय अस्पतालों में मीडिया कवरेज के लिए जारी प्रोटोकॉल को लेकर पीसीसी चीफ दीपक बैज ने पोस्ट कर तंज कसते हुए कहा कि मोदी की गारंटी – मीडिया पर पाबंदी.. मुख्यमंत्री जी, यह कैसी तानाशाही है? मेकाहारा अस्पताल में पत्रकारों के साथ हुई बदसलूकी कम थी जो अब इसपर कानून बना दिया गया? ऐसा घृणित आदेश हिटलरशाही मानसिकता से ही पैदा हो सकता है. जहां आपके स्वास्थ्य मंत्री केवल कमीशन में सफल और सेवा में विफल हो चुके हैं, उनके विभाग का यह आदेश प्रदेश याद रखेगा. जहां लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को उखाड़ने की तैयारी है और मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर बड़े प्रश्न खड़े कर दिए गए हैं. यही है आपका सुशासन का मॉडल?
https://x.com/TS_SinghDeo/status/1935215764727910705
उजागर करने और उन पर सवाल करने से मीडिया को नहीं रोका जा सकता: टीएस सिंहदेव
पूर्व स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने अपने सोशल मीडिया X में पोस्ट कर कहा कि भाजपा सरकार ने प्रदेश में मनमानी की सारी सीमाएं पार कर, अब मीडिया पर शिकंजा कसने की शर्मनाक कोशिश शुरू कर दी है. गोपनीयता और प्रोटोकॉल के नाम पर: – अस्पतालों में मीडिया के प्रवेश पर रोक, – हर रिपोर्ट के लिए पूर्व लिखित अनुमति अनिवार्य, – और कवरेज कब, कैसे और कितनी हो, ये भी अब सरकार या अस्पताल प्रशासन तय करेगा. गोपनीयता ऑपरेशन थिएटर में हो सकती है, अपराध पीड़ितों और उनके परिजनों की हो सकती है – मगर जनता से जुड़े मुद्दों पर नहीं. उन्हें उजागर करने और उन पर सवाल करने से मीडिया को नहीं रोका जा सकता. मीडिया का प्रथम दायित्व जनता के प्रति है, और उसे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में बाधित करना संवैधानिक अधिकारों का हनन है. जहाँ मरीज़ की निजता की सुरक्षा प्राथमिकता है, वहीं अगर मरीज़ स्वयं कुछ साझा करना चाहते हैं, तो उस पर पाबंदी लगाना न केवल अलोकतांत्रिक है, बल्कि इससे व्यवस्था और प्रबंधन में आवश्यक सुधार की संभावना भी बाधित होती है. यदि कोई मीडिया संस्थान भ्रामक या तथ्यहीन खबर प्रकाशित करता है, तो वर्तमान क़ानूनों में उसके लिए पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं. इसलिए मीडिया पर पूर्व प्रतिबंध लगाना नाजायज़ और नागरिक अधिकारों के खिलाफ़ है. सही तथ्य सामने आने से नहीं रोके जा सकते, क्योंकि आमजन को जानकारी मिले या न मिले, मरीज़ को तो मालूम होता है कि इलाज किस स्तर का हो रहा है. शासन और प्रशासन द्वारा मीडिया पर अनुचित प्रतिबंध लगाना न तो बेहतर चिकित्सा व्यवस्था की दिशा में सहायक होगा, न मरीज़ों के हित में, और न ही संवैधानिक लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने वाला कदम होगा. जानकारी मिली है कि भाजपा के संगठन प्रभारी आज एक महत्वपूर्ण बैठक ले रहे हैं – उन्हें इस विषय पर भी चर्चा करनी चाहिए कि मीडिया पर बैन लगाकर जनता के अधिकारों का दमन न हो. सरकारी संस्थानों को जनसेवा का माध्यम बने रहने दीजिए – उन्हें सत्ता की आलोचना से बचाने वाली ढाल मत बनाइए. पत्रकारों की कलम और कैमरा डर के आगे नहीं झुकेंगे. जनता जानकारी चाहती है – और यह उनका अधिकार है.
जारी आदेश-