राजनीति में पावर गेम
दिवंगत नेता गोविंद सारंग को अपना राजनीतिक गुरू मानने वाले बृजमोहन अग्रवाल को इस बात का कोई मलाल नहीं है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला. वे कहते हैं, “गुरुजी कहते थे, समय से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता. इसलिए केवल अपने कर्मों पर ध्यान दो. अपनी जनता की सेवा करो. जो जब मिलना होगा, मिल
जाएगा. राजनीति का पावर सेन्टर बदलता रहता है, महाभारत काल भी इसका प्रमाण है.”
तीन दशकों से भी लंबी राजनीतिक पारी खेल चुके बृजमोहन अग्रवाल वक्त की कसौटी पर खरा उतरे हैं. सत्ता किसी भी पार्टी की हो, न तो उनकी लोकप्रियता पर कोई आंच आती है और न ही मुलाकातियों की संख्या में कोई कमी आती है. बल्कि समय के साथ यह संख्या लगातार बढ़ी है. स्कूल कालेज के दिनों से लेकर आज तक,जो भी उनसे एक बार जुड़ा, हमेशा के लिए जुड़ गया. लोगों को उनमें अटूट आस्था है और यही बात उन्हें सही मायने में जननेता साबित करती है. 1990 में पहली बार चुनाव जीतकर मध्यप्रदेश विधानसभा पहुंचने वाले बृजमोहन का बतौर विधायक यह सातवां कार्यकाल है. सरकार किसी की भी हो,लोग अपनी समस्या को लेकर आज भी पहुंचते पहले उनके ही पास हैं. सुबह से लेकर देर रात तक उनके निवास पर लोगों का मेला सा लगा रहता है.
विपक्ष में होने पर कैसा लगता है
इस सवाल पर बृजमोहन कहते हैं – “हम तो पैदा ही विपक्ष की राजनीति से हुए हैं. विद्यार्थी परिषद से हमारे संघर्ष का दौर शुरू हुआ. 12 साल तक विपक्ष में रहने के बाद ही सत्ता सुख मिला था. पर हमने काम कभी रुकने नहीं दिया. संबंधों से, नियम कानून से, अधिकारियों पर दबाव बनाकर, जहां जैसी जरूरत पड़ी हमने अपने जनाधार का प्रयोग किया और विकास के पहिए को थमने नहीं दिया.
» भूपेन्द्र वर्मा-
एक अनौपचारिक मुलाकात में इस दिग्गज नेता ने कहा – लोग संबंधों की कीमत नहीं समझते. वे नहीं समझते कि सत्ता और पद आते जाते रहते हैं पर संबंध हमेशा के लिए जुड़ते हैं. इक्का-दुक्का मामलों को छोड़ दिया जाए तो आज भी स्कूल के सहपाठी, कालेज की छात्र राजनीति के समय के लोग हों या नए राजनैतिक कार्यकर्ता – जिनसे एक बार संबंध जुड़ गए, वो हमेशा के लिए जुड़ गए. इनमें भाजपाई भी हैं और कांग्रेस भी. यही वजह है कि सरकार किसी की भी रहे, रायपुर के विकास को अनवरत जारी रखने में इन्हें कभी कोई दिक्कत नहीं आई. इसमें सबका सहयोग है और इसे कभी भूलना नहीं चाहिए.
नई पीढ़ी के नेताओं के साथ अपने जीवन का अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि जब भी मौका मिलता है, उससे सीखने और हमेशा जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास करना चाहिए. 1990 में जब वे पहली बार विधायक बने तो सुन्दरलाल पटवा की अगुवाई में सरकार बनी. उन्हें सबसे कम उम्र में राज्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला. इस कार्यकाल का उपयोग उन्होंने जनाकांक्षाओं पर खरा उतरने के लिए किया. लोगों के सम्पर्क में रहे और उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप काम करते रहे. यही वजह है कि रायपुर में बूढ़ापारा तालाब का सौन्दर्याकरण, आंबेडकर अस्पताल का निर्माण, तेलघानी नाका में ओव्हरब्रिज का निर्माण और सड़कों पर हैलोजन लाइट लगाने जैसे बड़े-बड़े काम हो पाए. इसके बाद सरकारें बदलती रहीं पर रायपुर के विकास में कभी कोई बाधा नहीं आई.
रायपुर दक्षिण के विधायक बृजमोहन अग्रवाल कहते हैं कि राजनीतिक नेतृत्व को हमेशा सभी के लिए समान दृष्टि रखनी चाहिए. किसान हों या कृषि मजदुर, गरीब हो या मध्यम वर्ग का कर्मचारी, कारोबारी हो या उद्योगपति, सबके प्रति समान आदर का भाव रखना चाहिए. अधिकांश लोगों की समस्याएं बहुत छोटी होती है जिनका हल तत्काल किया जा सकता है. बस इच्छाशक्ति होनी चाहिए. ऐसे लोगों की सहायता करना ही राजधर्म है.
तीन दशकों की राजनीति में
इन लोगों से ऐसे संबंध जुड़े हैं कि सभी परिवार के सदस्य जैसे लगते हैं. रायपुर के विकास पर एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “रायपुर केवल राजधानी नही है. यह चिकित्साधानी और व्यापारधानी भी है. पूरे प्रदेश के लोग अपनी जरूरतों के लिए यहां पहुंचते हैं. इसमें पश्चिम ओड़िशा के लोग भी शामिल हैं. इसलिए यातायात और चिकित्सा व्यवस्था पर निरंतर काम करना होता है. जब आबादी का घनत्व बढ़ता तो और भी समस्याएं पैदा होती हैं. यह एक सतत् प्रक्रिया है, जिससे आपको हमेशा जूझते रहना पड़ता है.”
वर्तमान सरकार के कामकाज पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि भूपेश जमीन से जुड़े नेता हैं. उनकी योजनाएं अच्छी हैं पर इनका परिणाम हासिल करने के लिए जिस तरह की कार्ययोजना चाहिए, वह कहीं दिखाई नहीं देती. इस सरकार के पास पैसे नहीं हैं. एक्सप्रेस वे का काम रुका है. पांच ओव्हरब्रिज-अंडरब्रिज रुके हैं. विपक्ष में होने के नाते हम बार-बार सरकार को पत्र लिख रहे हैं, सुझाव दे रहे हैं.
भाजपा की पंद्रह साल तक राज करने के बाद सत्ता से विदाई के मसले पर वे कहते हैं कि यह राजनीति का एक स्वाभाविक नियम है. जब आप लंबे समय तक सत्ता में रहते हैं तो कुछ लोग आपके इर्द-गिर्द घेरा डाल देते हैं. ये न केवल आपको विभिन्न मसलों पर गुमराह करते हैं बल्कि जनता और आपके बीच एक दीवार खड़ी कर देते हैं. आप जनाकांक्षाओं से दूर हो जाते हैं और जनता आपसे कट जाती है. आपकी आंखें तब खुलती हैं जब पराजय का स्वाद चखने को मिलता है. सभी राजनीतिक दलों को इससे सबक लेने की जरूरत है.
सबसे बड़ी उपलब्धि बृजमोहन का मानना है कि उनकी सभी उपलब्धियां जनता की हैं. हर आयु के लोगों का प्यार और स्नेह और आशीर्वाद उन्हें ताकत देता है. आज नेता और अधिकारी भी उनकी बातों को गंभीरता से लेते हैं यही उनकी सबसे बड़ी कमाई है.