
डॉ. सुरेश तिवारी
कल-कल ध्वनी से निनादित,ऊँचाईयों से सीधे नीचे गिरते जलप्रवाह को प्रपात के रूप में निहारना इतना मनोहारी होता है कि प्रपात दर्शन किसी मौसम विशेष के मोहताज नहीं होता, तब भी प्रपात दर्शन का आनंद वर्षाकाल के बाद ही अधिक मिलता है, जगदलपुर से कोंटा मार्ग में 29वें किलोमीटर पर दाहिनी ओर एक मार्ग कटता है, जहां से आगे बढ़नें पर बस्तर को एक और रमणिक स्थल के दर्शन होते है. बस्तर के सबसे खूबसूरत प्रपात समूहों का सरताज-तीरथगढ़ जलप्रपात, कांगेर नदी अपनी सहायक नदीयों या कुछ मुनगा बहार जैसे छोटे नालों के मिल जाने से अपने अस्तित्व में वृद्धि कर पूरे वर्ष भर सूखे बिना ही जल प्रवाहित करती है. बस्तर की अधिकांश नदियां, नाले बरसाती होती हैं, जो सामान्यत: ग्रीष्मकाल में सूख जाते है. किंतु कांगेर नाला ग्रीष्मकाल में अपनी क्षीण कटि के साथ प्रवाहित होती है. इस खूबसूरत जलप्रपात के अस्तित्व के रक्षा हेतु सदा संघर्षरत् नजर आता है इसीलिए ही भीषण ग्रीष्म में भी तीरथगढ़ जलप्रपात में पतली जल धाराएं ऊँचे शिलाखंडो से प्रवाहित होती है, तो लगता है मानो विगलित रजत प्रवाह अनोखी चमक के साथ प्रकृति द्वारा ही बिखेर दी गई हो या सृष्टि रचयिता की तूलिका के रूपहला रंग लुढ़का कर प्रवाहमान हो गया हो. वर्षाकाल के अतिशय जलपूरित तीरथगढ़ जलप्रपात अपनी पूरी चौड़ाई में तथा अन्य कई छोटी- बड़ी जलधाराओं द्वारा प्रपात निर्माण के कारण जलप्रपात के समूह के रूप में परिलक्षित होता है, जबकि शुभ्र जल प्रवाह के दर्शन अक्टूबर के बाद ही हो पाते है.
जहां अन्य जलप्रपात किसी चट्टानी भाग में निश्चित गहराई में गिरकर एक प्रपात का निर्माण करता हैं, वहीं तीरथगढ़ जलप्रपात दो प्रमुख जलप्रपातों में तथा क्रमश: अलग-अलग प्रपातों का अस्तित्व किए दो खंडो का निर्माण करता है. सबसे ऊपरी मैदानी भाग में जहां सीधे सपाट रूप में कांगेर नदी का प्रवाह है, लगभग 200 मीटर चौड़ा तथा जलप्रपात के ऊपरी भाग में जलाशय की भांति जलभंडार होने के कारण, पहाड़ी नदी होने के बाद भी नदी का उद्दाम प्रवाह पर अंकुश लगता है, लगातार 110 फीट के चट्टानी कटावों मे जलराशि अधोप्रवाहित हो खूबसूरत जलप्रपात बनाता है. चट्टानों के अनोखे कटाव के कारण जलप्रवाह की बलखाती धाराओं को देखना अद्वितीय है. नीचे जाकर यह जलराशि एक छोटे कुडं के रूप में एकत्रित होकर लगभग सवा सौ फीट की ऊँचाई से पुन: सीधे प्रवाह बनाता है, तथा पुन: नीचे दूसरा जलकुंड का रूप लेकर जलराशि को संतुलित धारा के साथ आगे प्रवाहित होने में सहायक सिद्व होता है लगभग सौ फीट के प्रवाह के पश्चात् पुन: जलधाराएं कहीं 5 से 10 मीटर तो कही एक-एक या दो-दो फीट की सीढ़ीदार कटाव से छोटी-छोटी अनेक जलप्रपातों की शक्ल में बहता चला जाता है. अगले 100 फीट तक यही छोटी-छोटी चट्टानी कटावों के कारण अनेक जलप्रपातों के निर्माण के फलस्वरूप तीरथगढ़ जलप्रपात को प्रपात समूह भी कहा जाता है. यहां दो प्रमुख बड़े जलप्रपात तथा दो चरणों में प्रपात निर्माण के फलस्वरूप इस प्रपात की कुल ऊँचाई 300 फीट से अधिक हो जाती है. ऊपरी हिस्से के प्रथम जलप्रपात खंड में,जलकुंड के दूसरी ओर जो बड़ा जलप्रपात बाँई ओर बनता है, उसी के सम्मुख एक पहाड़ी टेकरी-सा बना हुआ है. जिस पर चार शिवालय निर्मित कर शिवलिंग की स्थापना की गई है वहाँ तुलसी चौरा तथा नदी व अन्य मूर्तियाँ प्रतिस्थापित है. इसकी दाहिनी ओर एक अन्य मौसमी वर्षाकालीन खूबसूरत जलप्रपात बनता है, जिसका आनंद सिर्फ पावस ऋतु में लिया जा सकता है. अन्य ऋतुओं में यह सूख जाता है सैकड़ों फीट की गहराई तक उतरने के लिए जलप्रपात के दाहिने किनारे में अब पक्की सीढ़ियों का निर्माण करा दिया गया है. यही निगम के द्वारा चेतना केंद्र के रूप में विश्रामगृह का भी निर्माण किया गया है. सीढ़ियों के बीच-बीच में चबूतरें बने हुए हैं, जो सीधे ऊंचे चढ़ने या नीचे उतरने के बीच कुछ क्षणों के विश्राम के साथ-साथ ऊँचाईयों से जलप्रपात की खूबसूरती को निहारनें तथा कैमरे में मनोहारी छवि को कैद करने में भी सहायक होते है.
इन सीढ़ियों का निर्माण जलप्रपात की प्रथम एवं द्वितीय खंड तक निर्मित हैं. पहले-दूसरे खंड की ओर का एक अन्य मार्ग सवा सौ फीट की गहराई प्राकृतिक चट्टानीं खतरनाक सीढ़ीनुमा चट्टानों से उतरना पड़ता था, और यदि पाँव जरा भी फिसला या नजर की चूक हुई कि कई फीट गहरी खाई मानव अस्तित्व को अपनी गोद में समेटने हेतु सदा तत्पर नजर आती थी. इस खूबसूरत जलप्रपात की दूसरे निचले खंड का दर्शन जहां मन में अनोखा रोमांच पैदा करता है, वहीं भय और सिहरन भी दिल में जगा जाता है. इसके बाद भी जब तक निचले हिस्से या प्रपात की तलहटी तक न उतरा जाए, इस जलप्रपात का पर्यटन अधुरा रह जाता है. इसी दूसरे खंड के एक कोने से सबसे ऊपरी जलप्रपात को भी देखा जा सकता है. इस तरह सौ-सौ फीट से भी अधिक दो जलप्रपातों को एक के ऊपर एक देखना मानव प्रकृति ने आधुनिक वास्तुविदों द्वारा एकाधिक खंड के विशाल अट्टालिकाओं की भाँति बहुमंजिली जलप्रपात का ही निर्माण कर दिया हो. सचमुच बेहद अनोखा तथा रोमांचक अनुभव देता है. इस तरह इस जलप्रपात को निहारना किसी भी पर्यटक के मन को अपनी छवि पाश में निबद्ध कर लेने में पूर्ण सक्षम प्रतीत होता है. वहीं दूसरी ओर कल-कल, छल-छल के नाद के साथ कई छोटी जलप्रपातों के समूह का दर्शन कराती कांगेर नदी पुन: एकांगी हो गहरे बीहड़ भाग में दूर जाकर ओझल हो जाती है. इन्हीं बीहड़ में सीता तट पर गढ़ अवशेष के रूप में जीर्ण-शीर्ण प्राचीरो के भी दर्शन होते हैं, जो पूर्व में हुए किसी निर्माण का भी संकेत देते हैं. ऊपरी जलप्रपात को निहारने के बाद दाएँ-बाएँ दोनो ओर के सीधे सपाट चट्टानों को देखना भी भयोत्पादि तथा लोमहर्षक है. इन चट्टानों में कई जगह मधुमक्खियों के बड़े-बड़े छत्ते लटके हुए है. किनारे तक तरूवल्लारियाँ हरीतिमा लिए सौंदर्य में निरालापन भी देती है इन तरू शाखाओं में यदा-कदा रामदूत कपि सेना के भी दर्शन होते है.
तीरथगढ़ जलप्रपात को पास से देखना जितना रोमांचक, लोमहर्षक व अनूठा आनंद प्रदान करने वाला है, उतना ही खतरनाक भी है इसमें अनेक छोटी-बड़ी दुर्घटनाएं हो चुकी है. इसलिए अतिरिक्त सावधानी बरतने की भी आवश्यकता होती है. बच्चों को सदा अपने साथ एवं अपनी देख-रेख में रखकर यहां पर्यटन का आनंद लेना उचित है.
तीरथगढ़ जलप्रपात के दो किमी. पश्चिम में तीरथगढ़ नाम की बस्ती है. जलप्रपात के ऊपर भी एक शिवालय निर्मित है, तथा यह स्थान अब तीर्थस्थली के रूप में प्रसिद्धि पा रहा है. हर वर्ष यहां महाशिवरात्रि के समय त्रिदिवसीय मेला लगता है. जहां तीर्थयात्री अपनी मन्नतें पूरी करने आते हैं. कुछ लोग बच्चों का मुंडन संस्कार, तो कुछ लोग यहां पिण्डदान या पितर तर्पण भी करवाते हैं. इसके अलावा विप्र समुदाय द्वारा अलग-अलग समूहों में सत्यनारायण कथा वाचन व पूजन करना ईश्वरीय विश्वास को और पुख्ता कर मन में आस्तिकता को भर देता है तथा कुम्भ पर्व का सा एहसास मन में जागृत कराता है. साथ ही “तीरथगढ़” के अपने नाम को भी सार्थक करता है. तीरथगढ़ जलप्रपात का नामकरण पास बसे बस्ती के तीरथगढ़ नाम होने के कारण प्रसिद्ध हुआ माना जाता है.
कुछ किंवदंतियों के अनुसार तीर्थराज तथा चिंगराज नाम के दो भाई थे. वन-सौन्दर्य से मोहित होकर दोनों ने बस्तर के इस क्षेत्र में अपनी राजधानी बनवायी. चिंगराज ने चिंगीतराई नामक गांव बसाया तथा भव्य मंदिर का निर्माण करवाया, जो 11 वीं शताब्दी का माना जाता है. यह तीरथगढ़ से 7 किमी. दूर स्थित है. वहीं तीर्थराज ने तीरथगढ़ जलप्रपात के निचले हिस्से में अपना गढ़ बनवाया तथा ऊपरी हिस्से में गांव बसाया जो तीरथगढ़ गांव के रूप में अभी भी आबाद है. जलप्रपात के निचले हिस्से में नदी की कल-कल करती जलधाराएं टेढ़े-मेढ़े रास्तों के रूप में चट्टानों तथा हरी-भरी वादियों में गुम होती चली जाती है, जो सड़क के पास चौड़े रूप में पुनः दिखाई पड़ती है. इसी नदी के किनारे अभी भी भग्नावशेष तथा दीवारों के अवशेष दिखाई पड़ते हैं, जो लगभग पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं.
खनिज संपदा की दृष्टि से तोकापाल परिक्षेत्र में किम्बरलाईट की चट्टानें चिन्हित की गई है, यह किम्बरलाईट बेल्ट तीरथगढ़ तक फैला हुआ है. किम्बरलाईट की चट्टानों में हीरा पाया जाता है.
तीरथगढ़ जलप्रपात को सम्यक रूप से एक ही दृश्य में देखना हो तो इसकी रमणीयता या खूबसूरती का एहसास ही अलग है और इसके लिए सबसे निचले हिस्से तक उतर कर काफी दूर जाना पड़ता है. तथापि शिवालय निर्मित टेकरी के कारण एक हिस्सा ओट में चल देता है. वन विभाग द्वारा जलप्रपात के ऊपरी हिस्से में बनाया जा रहा प्रेक्षण कक्ष इस खूबसूरती को लिए चांद में दाग जैसा ही होगा. जैसे – आगरा के विश्वप्रसिद्ध ताजमहल के पीछे दूरदर्शन का ऊंचा टावर अब चित्रांकन के समय पर्यटकों को साल भर नजर आता है.
पर्यटक तीरथगढ़ जलप्रपात के सौन्दर्य के साथ-साथ इसी भ्रमण में ही कांगेर धारा, कोटमसर, दंडक, कैलाश, अरण्यक गुफाओं के दर्शन का लाभ भी ले सकते हैं. पहाड़ी एवं निर्जन क्षेत्रों में पर्यटन स्थल होने के कारण स्वयं के वाहन से यात्रा श्रेयष्कर है, साथ ही भोजन व जलपान व्यवस्था साथ लेकर चलना सुविधाजनक होगा. जगदलपुर से 35-40 किमी. की परिधि में होने के कारण यहां एक घंटे की यात्रा से पहुँच जा सकता है.
तीरथगढ़ जलप्रपात पूर्वाभिमुखी होने के कारण प्रातःकालीन रवि रश्मि से आलोकित हो, रुपहले निर्मल रूप में कल-कल निनादित अधो-प्रवाहित जलराशि को पुर्वान्ह में निहारना तथा चित्रांकन के लिए श्रेष्ठ समय होता है. यहां की खूबसूरती अक्टूबर से फरवरी तक अपने शबाब पर रहती है, और पर्यटन के लिए यही सबसे अच्छा काल माना जाता है तथा वर्षा काल में पर्वतीय सरिता के जलप्रवाह को घोर गर्जन के साथ देखना भी अपने में अनोखा रोमांच भरता है.
पहुँच मार्ग
राजधानी रायपुर से जगदलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग में 340 किमी. जिला मुख्यालय जगदलपुर से 39 किमी. दक्षिण पश्चिम दिशा में कांगेर नदी के बहाव से निर्मित यह जलप्रपात छ. ग. आने वाले पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है.
अन्य दर्शनीय स्थल
चित्रकोट जलप्रपात, कोटमसर गुफा, तामड़ा घूमर, चित्रधारा, कैलाश गुफा, कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान, तिरिया वन क्षेत्र, कोसा रटेडा जलाशय, बारसूर, दंतेश्वरी मैय्या
आवासीय सुविधा
चित्रकोट में शासकीय विश्रामगृह तथा जगदलपुर में उच्च एवं मध्यम स्तरीय हॉटल, लॉज एवं प्रशासनिक गेस्ट हाउस उपलब्ध है. जलप्रपात के पास लॉग हट की भी सुविधा उपलब्ध है.