
हमारे सुसंस्कृत समाज को आखिर किसकी नजर लग गई !
छत्तीसगढ़ आजतक- भारत जैसे सुसंस्कृत और उच्च आदर्शों वाले देश में आखिर किसकी नजर लग गई है? आये दिन ऐसी-ऐसी घटनाएं सुनने और देखने को मिल रही हैं कि सहसा विश्वास नहीं होता कि हम एक ऐसे देश के नागरिक हैं जिसे राम की मर्यादा और सीता की सतीत्व की कसौटी पर कस कर तपाया गया हो! पहले तो यह सुनने में था कि कोई पुरूष अपनी पत्नी पर हिंसाचार करता है और प्रताड़ित करता है. बाद में यह बढ़ कर इस रूप में परिवर्तित हुआ कि हिंसक पुरूष अपनी पत्नी की हत्याएं तक करने लगा. लेकिन अब मामला और संगीन होते दिखाई दे रहा है!
हालिया, इंदौर के ट्रांसपोर्ट कारोबारी राजा रघुवंशी की हत्या उसकी ही नवव्याहता द्वारा किए जाने की बाद जिस तरीके से सामने आ रही है उसने सभ्य समाज के माथे पर बल ला दिया है. यह हैरतअंगेज है कि जिस स्त्री ने समाजिक रीति-रिवाज से और स्वविवेक से जिस पुरूष के हाथों अपनी मांग का सिंदूर सजाया उसे अपने ही हाथों पोंछ दिया! सुहागरात के दिन की गई पति की इस निर्मम हत्या ने समाज शास्त्रियों के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. यह इसलिए भी है कि यह मामला केवल राजा रघुवंशी तक ही सीमित नहीं हैं, देश के अनेक हिस्सों से इस प्रकार की खबरें आ रही हैं कि स्त्रियां हिंसक हो रही हैं और अपने पतियों से तलाक से आगे जाकर बदला लेने के नियत इस प्रकार बलवती हो रही है कि अब वे हत्याओं पर उतारू हैं.
आश्चर्य तो ये है कि पति या प्रेमी की हत्या करने वाली स्त्रियों के चेहरों पर कोई अपराध बोध या पछतावा भी दिखाई नहीं देता! इस ओर कानूनविदों को भी सोचने और समझने की जरूरत है क्योंकि देखा जाए तो अपराध के इस मनोविज्ञान के पीछे बदलावों का वो क्रम है जो बीते कुछ वर्षों से समाज में सुनियोजित तरीके से लागू किए जा रहे थे, जिनमें बड़े और महत्वपूर्ण बदलाव न्यायालयों के माध्यम से किए गए. अवैध संबंध बनाने को कानूनी अनुमति मिलना भी इसका एक कारण बताया जाता है. सनद रहे कि वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 497 को असंवैधानिक ठहरा दिया जिसके अंतर्गत विवाहित स्त्री का पति के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाना अर्थात एडल्ट्री गैरकानूनी था. कानून में महिला को नहीं बल्कि उस पुरुष को दंडित किया जाता था, जिसने अवैध संबंध बनाए, इटली में रहने वाले भारतीय मूल के ईसाई जोसेफ शाइन ने अपने वकील के माध्यम से याचिका डालकर धारा 497 को चुनौती दी. सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने इसके आधार पर धारा 497 को पूरी तरह समाप्त कर दिया. हालांकि एडल्टरी को तलाक के लिए आधार के रूप में बनाए रखा. सर्वोच्च न्यायालय के इस एक निर्णय के बाद तो मानो फ्लर्ट गेट ही खुल गया. अदालतों ने ऐसे-ऐसे निर्णय सुनाने आरंभ किए जो भारतीय समाज के लिए कल्पना से भी परे थे.
और तो और पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यहां तक कह दिया कि कोई महिला अपनी पति की हत्या कर दे तो वो भी उसकी पेंशन की हकदार होगी. इसके साथ ही दिल्ली-पटना सहित अनेक उच्च न्यायालयों ने निर्णय लिया कि कोई महिला यदि कभी कभार अवैध संबंध बनाती है तो उसके आधार पर पति तलाक नहीं मांग सकता लेकिन उसे पत्नी को गुजारा भत्ता देना पड़ेगा. मध्यप्रदेश के हाईकोर्ट ने एक कदम आगे बढ़कर कहा कि कोई महिला चाहे अपने पति के साथ क्रूरता या कभी कभार अन्य पुरूषों के साथ रिश्ते बनाए तो वह अपराध नहीं है. इस प्रकार हम देखें तो इन निर्णयों से अपराधिक मानसिकता तेजी के साथ पसरती है और उच्चश्रृखंलता एवं मनमानापन बढ़ता जाता है. आज यही सब कानून ब्लैकमेलिंग के हथियार बने हुए हैं. इस ओर कानून और समाज के नुमाइंदों को देखने की जरूरत है, साथ ही साथ संसद भी अपने जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकता. भारतीय समाज में स्त्रियों का पतन संयोग मात्र नहीं है. भारत कमजोर हो इसके लिए भारतीय परिवार व्यवस्था को तोड़ना जरूरी था यह काम बिना महिलाओं को भ्रष्ट,चरित्रहीन और नशेड़ी बनाए संभव नहीं था. आज चिंता है कि जिन-जिन लोगों पर इसे रोकने का दायित्व था वो न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका खामोश बनी बैठी है!
आज महिलाओं द्वारा पतियों की हत्या का मामला लगातार सुर्खियों में है. और दूर कहां जाएं, हमारे छत्तीसगढ़ में ही यह सामाजिक विकृति बड़ी तेजी के साथ पांव पसार रही है! अभी बहुत दिन नहीं हुए जब पेंड्रा रोड के सेशन कोर्ट ने एक आरोपित महिला और उसके ब्वायफ्रैंड को पति की हत्या का दोषी पाया और दोनों को उम्र कैद की सजा से न केवल दंडित किया बल्कि पांच सौ का जुर्माना लगाकर यह संदेश भी दिया कि इस प्रकार की जघन्य हत्याएं किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है.
इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के ही कोरिया जिले में एक महिला ने अपने पति को मौत के घाट उतारवा दिया था. यह घटना भी सुर्खियों में रही. यह इतनी जघन्य थी कि इसमें डेढ़ लाख रूपये की सुपारी देकर हत्यारों को मध्यप्रदेश से बुलाया गया था. इस मामले में यह जानकारी आई की आरोपित महिला अपने पति की हरकतों से परेशान थी. इसी से आजिज आकर उसने बेटे के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा और नशे की गोली खिलाकर उसे बेहोश किया और भाड़े के हत्यारों ने गला काटकर उसकी हत्या कर दी. तिल्दा नेवरा से इसी प्रकार से जो सूचना आई उससे पूरा छत्तीसगढ़ हिल गया जिसमें थाना तिल्दा नेवरा में ग्राम बेमता गड़रिया नाला के पास ग्राम सांकरा निवासी लक्ष्मण उर्फ राजू भट्ट लहूलुहान मृत अवस्था में मिला. पुलिस तहकीकात में मृतक लक्षमण उर्फ राजू भट्ट की हत्या की घटना को उसकी पत्नी कुसुम शर्मा एवं उसके बेटे के साथ ही उमाशंकर शर्मा तथा मुकेश शर्मा के साथ योजना बनाकर हत्या की घटना को अंजाम देना स्वीकार किया.
इस प्रकार की अनेकानेक घटनाएं हैं जो हमारे सुगठित सामाजिक ढांचे की बुनियाद को हिला रही है. यदि ऐसा ही रहा तो चिंता है कि सदियों से स्थापित हमारा सुंदर सामाजिक ढांचा भरभरा कर गिर न जाए क्योंकि छत्तीसगढ़ की परंपराएं सामाजिक ढांचा भारत की आत्मा को मजबूत करते हैं.
यह देखकर सिहरन होती है कि भिलाई-दुर्ग से लेकर राजधानी रायपुर,न्यायधानी बिलासपुर,संस्कारधानी राजनांदगांव तक महिलाओं को लेकर कोई संजीदगी नहीं है. यहां के होटलों-बारों और हुक्का बारों में कॉलेज छात्र-छात्राओं का निर्वाध प्रवेश और नशे का बढ़ता प्रचलन बताता है कि कहीं न कहीं हमारी युवा पीढ़ी को गर्त में ढकेला जा रहा है. यह कौन कर रहा है? इसे खोजने और समझने की जरूरत है.
यदि ध्यान न दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब राजा रघुवंशी,लालजी नायक और अशोक जैसे अन्यान्य लोग चीख-चीख कर न्याय की दुहाई देंगे और बेकसूर और निरीह लोग साजिश और षड्यंत्र के शिकार हो मारे जाएंगे. इस देश की सुसंस्कृत व्यवस्था में यह कतई स्वीकार्य नहीं कि परिवारों में हिंसाचार हो. यह देश ऋषि और महर्षियों का देश है. यहां स्त्री हो या पुरूष दोनों एक गाड़ी के दो पहिए हैं जिनके ऊपर परिवार, कुटुंब, समाज, प्रदेश और देश को बनाने का गुरूत्तरदायित्व है. इसके बिना हम समरस समाज की कल्पना भला कर कैसे सकते हैं?