
जंगल में आक्रोश की दौड़ी लहर
ग्रामीणों ने सुरक्षा बलों पर लगाया गंभीर आरोप
मारे गए सहायक रसोईयां का परिवार सड़क पर कौन करेगा न्याय?
छत्तीसगढ़ आजतक- छत्तीसगढ़ के घनघोर जंगलों में सुरक्षाबलों और नक्सलियों में लगातार मुठभेड़ की खबरें सुर्खियों में आ रही हैं. सुरक्षा बलों के लोग कांकेर से लेकर बीजापुर सुदूर अबूझमाड़ तक नक्सलियों का सफाया करने में लगे हैं. इन सबके बीच सुरक्षाबल और पुलिस के लोगों पर जंगल में निवासरत लोगों और ग्रामीणों पर हिंसा, अत्याचार और गलत रूप से फंसाने के आरोप लग रहे हैं. और तो और सरकारी महकमे के साथ मिलकर काम करने वाले भोले-भाले लोगों को भी नक्सली बताकर मारा-पीटा जा रहा है यहां तक की हत्याएं भी हो रही हैं.
अभी बहुत दिन नहीं बीते और घनघोर नक्सली क्षेत्र बीजापुर में नक्सल विरोधी अभियान में मारे गए कथित नक्सली महेश कोड़ियाम को लेकर सवाल पर सवाल उठने लगे हैं! बताया जा रहा है कि एक सीधे-साधे सरकारी स्कूल में रसोइयां सहायक के रूप में पदस्थ महेश कोड़ियाम को पुलिस के लोग गांव से उठाकर ले गए और उसे इतना प्रताड़ित किया कि उसकी मौत हो गई. हालांकि पुलिस के अधिकारी उसे एक लाख रूपये का ईनामी नक्सली बता रहे हैं.
लेकिन मृतक का रिकार्ड देखें और ग्रामीणों से बात करें तो यह संदेह पुख्ता होता है कि महेश कोड़ियाम वास्तव में सरकार का सहयोगी था. वह सरकारी स्कूल में छोटे-छोटे बच्चों को खाना बनाकर खिलाता था और सरकार के मध्यान भोजन को सफल बनाने वाला एक सहायक था.फिर उसकी हत्या क्यों की गई? यदि वह वाकई में माओवादी था तो उसे रसोईयां पद पर रखा ही क्यों गया? क्या यह गंभीर नहीं कि आपने एक लाख ईनामी माओवादी को रसोईयां बना दिया? नहीं तो यह तो और भी गंभीर है कि एक सीधे-साधे रसोइयां को दिखावे के लिए आपने मार गिराया?
क्या सच है यह तो आने वाले समय और जांच की परिस्थितियां बताएंगी लेकिन ऐसे वक्त में जबकि देश के गृहमंत्री अमित शाह छत्तीसगढ़ के दौरे पर पहुंचे हैं तो यह जवाब सुरक्षाबलों और पुलिस के लोगों को देना ही पड़ेगा की आखिर मारे गए कथित नक्सली महेश कोड़ियाम की सच्चाई है क्या?
पर्दे के पीछे की हकीकत है क्या?
ज्ञात हो कि नक्सल विरोधी अभियान के तहत बीजापुर जिले में पिछले 4 से 7 जून के बीच सुरक्षाबलों और नक्सलियों में बड़ी मुठभेड़ हुई थी जिसमें मारे गए सात नक्सलियों में स्कूल रसोइयां महेश कोडियाम भी था. पुलिस ने मृतक रसोइयां कोडियाम को माओवादियों की राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र समिति का सदस्य बताया और यह भी बताया कि उस पर एक लाख रुपये का इनाम घोषित था.
वह उसकी पहचान फरसेगढ़ थाना क्षेत्र के ग्राम इरपागुट्टा निवासी के रूप की गई थी. पुलिस ने जो जानकारी सार्वजनिक की उसकी मुताबिक मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों में माओवादियों की केंद्रीय समिति के सदस्य नरसिंह चालम उर्फ सुधाकर (40 लाख रुपये का ईनामी) और तेलंगाना राज्य समिति के विशेष क्षेत्रीय समिति के सदस्य भास्कर उर्फ मैलारापु अडेलु (45 लाख रुपये का ईनामी) शामिल थे. रसोईयां महेश कोडियाम को माओवादियों की राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र समिति का सदस्य बताया गया, जिस पर एक लाख रुपये का इनाम था. बीजापुर पुलिस ने बयान जारी कर कहा कि कोडियाम इरपागुट्टा के प्राथमिक विद्यालय में रसोइया सहायक था और स्कूल प्रबंधन समिति द्वारा नियुक्त किया गया था. उसे मार्च 2025 तक पारिश्रमिक मिल रहा था.
मामले में पेंच इसलिए भी है कि आईजी से लेकर पुलिस के आला अफसरान इस मामले में जांच की बात स्वीकार कर रहे हैं. पुलिस के मुताबिक कोडियाम के वरिष्ठ माओवादी नेताओं सुधाकर और भास्कर के साथ संबंधों की परिस्थितियों की जांच की जा रही है. मामले की गहन, निष्पक्ष और पेशेवर जांच जारी है. इससे स्पष्ट होता है कि कहीं न कहीं बात फंसी हुई है और रसोईयां महेश कोड़ियाम की मौत को लेकर पुलिस पशोपेश में फंसी हुई है.
इस घटना में उस क्षेत्र के यूट्यूब चैनल बस्तर टॉकीज ने जो समाचार उजागर किया उसे देखें और सुनें तो महेश कोड़ियाम की पत्नी और भाइयों ने कहा कि वह व्यक्ति माओवादी नहीं था. स्थानीय निवासी इरमा वेला ने इस चैनल को बताया कि कोड़ियाम गांव के सरकारी स्कूल में सिर्फ रसोइया और चपरासी था. कुडियम के एक भाई के अनुसार, मुठभेड़ के दिन वह अपने मवेशियों को चराने गया था. परिवार ने बैंक पासबुक की तस्वीरें भी साझा कीं, जिसमें कुडियम को सरकार से पारिश्रमिक प्राप्त करने के कथित लेनदेन का विवरण है. कुडियम की पत्नी सुमित्रा ने अपने पति, जो परिवार के एकमात्र कमाने वाले थे, की अब मृत्यु हो चुकी है, तथा उन्हें अकेले ही अपने सात बच्चों का पालन-पोषण करने की चिंता है.
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कसा तंज
इस मामले में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री का बयान देखने और सोचने-समझने लायक है. अपने सोशल हैंडल पर उन्होंने जो लिखा है वह कम महत्वपूर्ण नहीं है! इसके कई-कई अर्थ निकलते हैं. भूपेश बघेल ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को लेकर भी चुट्की ली है. उन्होंने लिखा है, “ये क्या किया सरकार? अपने ही मुलाजिम को नक्सली बताकर मार दिया? या फिर आप नक्सली को तनख़्वाह देते रहे? कल परसों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जी यहां रहें तो उन्हें सच बताइएगा विष्णुदेव साय जी”
देखें तो पूर्व मुख्यमंत्री का यह लिखना सरकार पर कितनी करारी चोट है. उन्होंने मृतक महेश कोड़ियाम को अगर सरकारी मुलाजिम बताया है तो तय है कि इसमें कोई न कोई गहरा रहस्य छिपा हुआ है और फिर भूपेश ही क्यों? इरपागुट्टा गांव के निवासी और परिवार के सदस्य चीख-चीखकर कह रहे हैं कि महेश कोड़ियाम माओवादी नहीं था. न ही उसका नक्सलियों से संबंध थे. कोड़ियाम एक साल से भी अधिक समय से सरकारी स्कूल में रसोईयां का काम करता था. जबकि पुलिस का मानना है कि कोड़ियाम भी उन सात माओवादियों में शामिल था.
पुलिस का दावा झूठ या सच?
अब सवाल है कि सरकारी महकमें में रसोईयां का काम करने वाले कथित नक्सली कोड़ियाम को लेकर पुलिस का दावा झूठ अथवा सच? इस सच्चाई का पर्दाफास करेगा कौन? विशेषज्ञ कहते हैं कि एजेंसी तो सरकार की होगी तो जांच रिपोर्ट क्या वाकई निष्पक्ष होगी? सनद रहे कि पुलिस के लोग गोल-मोल रूप से जवाब दे रहे हैं. एक ओर तो वे मानते है कि कोड़ियाम एक सरकारी स्कूल में रसोईयां था तो दूसरी ओर पलटकर यह भी कहते है कि वह एक माओवादी था.
इस मामले में बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी ने जो आधिकारिक वक्तव्य दिया उसमें कहा गया है कि जांच कार्यवाही के दौरान, यह पुष्टि हुई कि महेश कोडियम राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र प्रभाग में सक्रिय प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) संगठन का एक पार्टी सदस्य था, और उसके प्रतिबंधित समूह के साथ स्पष्ट संबंध थे. यह भी पता चला है कि महेश कोडियम इरपागुट्टा गांव के प्राथमिक विद्यालय में रसोइया सहायक के रूप में काम कर रहा था. उसकी नियुक्ति गांव की स्कूल प्रबंधन समिति द्वारा की गई थी, और उसे मार्च 2025 तक इस भूमिका के लिए पारिश्रमिक दिया जा रहा था. जिन परिस्थितियों में महेश कोडियम केंद्रीय समिति के सदस्य गौतम और राज्य समिति के सदस्य भास्कर जैसे वरिष्ठ माओवादी नेताओं के संपर्क में आया, वे वर्तमान में जांच के दायरे में हैं. मामले के सभी पहलुओं की गहन, निष्पक्ष और पेशेवर जांच की जा रही है.
कलेक्टर ने तलब की रिपोर्ट
इस मामले में बस्तर कलेक्टर संबित मिश्रा ने मीडिया को जो जानकारी दी उसके मुताबिक ऐसी नियुक्तियां तदर्थ आधार पर की जाती हैं और प्रक्रिया विकेंद्रीकृत होती है. कलेक्टर मिश्रा ने कहा कि स्कूल प्रबंधन समितियां ही उन्हें नियुक्त करती हैं और पुलिस सत्यापन नहीं कराया जाता. हमने इस मामले में ब्लॉक शिक्षा अधिकारी से रिपोर्ट मांगी गई है. बस्तर जिलाधीश का यह कहना ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं न कहीं जांच के नाम पर इस मामले को उलझाए रखने की कोशिश हो रही है कारण कि मृतक महेश कोड़ियाम की पत्नि विधवा हो गई है और सात बच्चे भी अनाथ हो गए है और पूरा का पूरा परिवार बेसहारा हो गया है ऐसे में क्या सरकार की संवेदनशीलता यही है कि एक रसोईयां का हश्र इस रूप में हो कि उसे जांच में केवल उलझा कर रखा जाए? इसीलिए विपक्षीय कांग्रेस सरकार पर लगातार संवेदनहीन होने का आरोप लगा रही है. 23 जून सोमवार को राजधानी पहुंचे कांग्रेस सचिव सचिन पायलेट ने सरकार को चुनौती पेश की और कहा है कि सबको विश्वास में लेकर नक्सल उन्मूलन का प्रयास करना चाहिए. इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी सचिन पायलेट के साथ मौजूद थे.