
कमीशनखोरी में लिप्त तंत्र, क्यों है लाचार?
भिलाई- धान का कटोरा कहलाने वाले छत्तीसगढ़ में धान मुख्य फसल न होकर चुनावी फसल में तब्दील हो चुका है. पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में आ चुका चावल उद्योग सरकारी नीतियों, कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार की वजह से कराह रहा है. धान के खेल में राजनीति और सरकार दोनों बदले हैं, नहीं बदली है तो किसानों और इस उद्योग से जुड़े लोगों की तकदीर.
राज्य में चुनावी लाभ के लिए धान पर जब से समर्थन मूल्य बढ़ाकर वोट बटोरने का नया फार्मूला लागू हुआ है, तब से धान के उत्पादन में दो गुना की आश्चर्यजनक वृद्धि हो गई है. साथ ही ज्यादा समर्थन मूल्य का लालच में दो बार सत्ता परिवर्तन हो चुका है लेकिन राजनीति की चपेट में आकर चावल उद्योग अंतिम सांसें गिन रहा है.
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री दिवंगत अजीत जोगी कहा करते थे कि धान का किसान धनवान नहीं हो सकता, यह बात किसान पर भले ही सही बैठती हो लेकिन धान के दाम पर छत्तीसगढ़ सरकार और अफसरशाही करोड़ों अरबों का भ्रष्टाचार कर धनवान होने के शब्द को सिद्ध कर रही है.
विगत विधानसभा चुनावों में धान के समर्थन मूल्य को 3100 रूपये प्रति क्विंटल तक बढ़ा देने का दावा कर सत्ता में वापस आई भाजपा सरकार चावल उद्योग को संभाल पाने में अभी तक तो बुरी तरह असफल सिद्ध हुई है. सरकार की नीतियों और बेलगाम अफसरशाही ने इस उद्योग की कमर तोड़ कर रख दी है. हालात कितने बेकाबू हैं कि वर्ष 2024-25 में सरकार द्वारा संग्रहीत 14924709.52 (एक सौ उनचास लाख चौबीस हजार सात सौ नौ) टन धान की मात्रा में से अब सिर्फ 10159186.69 (एक सौ एक लाख उनसाठ हजार एक सौ छियासी) टन धान ही राईस मिलर को दिया जा सका है. शासन का 3696284.69 (छत्तीस लाख छियानवे हजार दो सौ चौरासी) टन संग्रहण केंद्रों में तथा 1069238.16 (दस लाख उनहत्तर हजार दो सौ अड़तीस) टन धान उपार्जन केंद्रों में धूप सेंक रहा है.
राइस मिलर्स को जितना धान दिया गया है उस मान से लगभग 67 लाख टन चावल बनता है, लेकिन अभी तक मात्र 16 लाख 30 हजार 112 टन चावल ही उपार्जित किया जा सका है जिसमें भी अधिकतर मात्रा फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा उपार्जित की गई है, बाकी धान राज्य की राइस मिलों में पड़ा है. सरकार उससे बने चावल को इसलिए नहीं दे पा रही है क्योंकि उसके पास कस्टम मिलिंग की राशि का भुगतान करने को पैसा नहीं है न ही चावल को रख पाने लायक जगह है.
हालात कितने बिगड़े हुई है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2023-24 में सरकार ने कुल 144 लाख 92 हजार 123 टन धान का संग्रहण किया था, उसमें से भी 2 लाख 55 हजार 102 टन धान आज भी संग्रहण केंद्रों में पड़े-पड़े सड़ गया है और सरकार अपनी नकामी छिपाने इस सड़े हुए धान को उठाने हेतु राइस मिलर पर प्रशासनिक दबाव बना रही है.
कमीशनखोरी का आलम यह है कि पूर्ववर्ती सरकार में जिस कमीशन पर धान की कस्टम मिलिंग होती थी उसे बढ़ाकर डेढ़ गुना कर दिया गया है, साथ ही कस्टम मिलिंग चार्ज को 120 रूपये प्रति क्विंटल से घटाकर 80 रूपये कर दिया गया है. यह कार्रवाई राइस मिलर्स पर दूबर के दू अषाढ़ जैसी पड़ रही है. सरकारी नीतियों से कच्चे राइस मिलर्स ने जो धान उठा रखा है वह उनकी मिलों में गोदाम पर कब्जे जैसा है उसे न तो वे बेच सकते है न ही उसकी मिलिंग कर सकते है.
सरकार ने अपने लाभ और नाकामी छिपाने के लिए राज्य में आठ सदस्यीय समन्वय समिति बनाई है जिसमें भाजपा समर्थित राइस मिलरों को रखा गया है. यह समिति समन्वय का काम भले ही न कर पा रही हो भ्रष्टाचार का समन्वय अवश्य करती दिख रही है.
राज्य में कमीशनखोरी के कारण ही वर्ष 2023-24 का जो धान राइस मिलर्स को दिया गया था उसमें से लगभग पचास हजार टन धान का चावल मिलरों ने आज तक शासन को नहीं लौटाया है जबकि उनकी रियायत के लिए चावल जमा करने की अंतिम तारीख पांच बार बढ़ाई जा चुकी है. कानून को ऐसे राइस मिलर्स का न केवल भुगतान रोकना चाहिए था, बल्कि उन पर धान की चोरी करने तथा अमानत से खयानत करने का मामला भी दर्ज करना था, लेकिन हो उल्टा रहा है. ऐसे राइस मिलर्स का भुगतान भी हुआ है और न उनसे चावल मिला है, न उनकी बैंक गारंटी जब्त हुई है. इसके अलावा नये सीजन के धान की कस्टम मिलिंग का एग्रीमेंट भी कर लिया गया है.
इसी तरह के धान की मात्रा का भौतिक परीक्षण करने के नाम पर जिला प्रशासन एवं बैंक अधिकारी और दर्जनों राइस मिलर पर दबाव बनाकर हजारों का वारा-न्यारा कर देते हैं. भौतिक परीक्षण केवल खानापूर्ति के लिए हो रहा है.
राज्य में डबल इंजन की सरकार बनने के बाद मिलर्स ने यह सोचा था कि शासन की कस्टम मिलिंग का चावल एक तिहाई जमा करने पर उनके द्वारा मंथली कंट्रोल के नाम पर की जाने वाली उगाही बंद हो जाएगी. लेकिन यहां पर भी उल्टा हो गया है. भ्रष्टाचार मिटाने का दावा करने वाली केंद्र सरकार की यह एजेंसी चावल पास करने का लगभग सात हजार रूपये प्रति लाट के हिसाब से कमीशनखोरी कर रही है. पिछली सरकार के दौरान यह दर 5700 रूपये प्रति लाट हुआ करती थी.
कस्टम मिलिंग की दरों में 40 रूपये प्रति क्विंटल की कटौती पिछले साल खरीदे गए धान की सड़ी हुई किस्म को उठाने की बाध्यता मार्केटिंग फेडरेशन द्वारा एग्रीमेंट के लिए, लिए जाने वाले कमीशन में डेढ़ गुना की बढ़ोत्तरी तथा एफसीआई की बढ़ी हुई कमीशनखोरी के बाद हुई चावल को न लेने और दिए हुए चावल की मिलिंग राशि का भुगतान न मिलने की वजह से राज्य में शराब के बाद सबसे बड़े उद्योग का दिवाला निकला जा रहा है. कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इस सीजन के बाद राज्य में लगभग तीस प्रतिशत राइस मिले बंद हो जाएं.
सुशासन और विकास का दावा करने वाली सरकार ने पिछली सरकार के दौरान केंद्रीय एजेंसियों के जरिए राज्य में चावल घोटाला होने का आरोप लगाकर अनेक छापे डलवाए थे और बहुत से अधिकारियों और व्यापारियों को आरोपी भी बनाया था लेकिन सरकार बदलते ही जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है क्योंकि समय चक्र बदल गया है और अब उसी घोटाले में वर्तमान सिस्टम भी लिप्त हो गया है. स्पष्ट है कि राजनैतिक नेतृत्व में ईमानदारी का अभाव है, इसीलिए कमीशनखोरी न केवल जिंदा है बल्कि कमीशन की दर भी बढ़ गई है. केंद्र सरकार के वित्तीय सहयोग से की जा रही धान खरीदी में व्याप्त भ्रष्टाचार केवल अकेला नहीं है. केंद्र की ही भारत माला सड़क परियोजना में भी जमीन मुआवजा भुगतान का मामला भी जांच के घेरे में है. इसी तरह अमृत जल मिशन एवं तमाम परियोजनाएं भी जिस तरह कमीशनखोरी का शिकार होकर दम तोड़ती दिख रही हैं उससे तो यही कहा जा सकता है कि घर में आग लग रही घर के ही चिराग से. डबल इंजन सरकार से आगे बढ़कर चार इंजन सरकार में कमीशन की वृद्धि भी हो जाना वर्तमान में आश्चर्य का विषय नहीं रह गया है.