
हाइटेक में “पर्थीज” का इलाज, 10 लाख में होते हैं सिर्फ 4 मामले
भिलाई- हाइटेक सुपरस्पेशालिस्ट हॉस्पिटल में “पर्थीज डिसीज” से ग्रस्त एक 11 वर्षीय बालक का इलाज किया गया. यह रोग 10 लाख लोगों में केवल 4 लोगों में पाया जाता है. इस अत्यंत विरल स्थिति में जांघ की हड्डी के ऊपर का हिस्सा (फीमरल नेक) सूखने लगता है और साकेट से बाहर की ओर निकल आता है. इसके कारण रोगी को असहनीय पीड़ा होती है. उसका चलना फिरना या हिलना डुलना तक बंद हो जाता है.
अस्थि रोग एवं प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ दीपक सिन्हा ने बताया कि यह एक अत्यन्त विरल स्थिति थी. इसके विषय में पहले गहन अध्ययन किया, अन्य अस्थि शल्य चिकित्सकों से भी बात की. इसके बाद लाइन ऑफ ट्रीटमेंट तय किया गया.
डॉ दीपक सिन्हा ने बताया कि यह रोग आम तौर पर 4 से 10 साल की उम्र के बीच सामने आता है. रक्त संचार में रुकावट के कारण फीमरल नेक मृतप्राय हो जाता है. आरंभिक अवस्था में रोगी को कूल्हे अथवा घुटने में दर्द होने लगता है और वह लंगड़ाकर चलने लगता है. बाद में दर्द इतना बढ़ जाता है कि हिलना डुलना तक मुश्किल हो जाता है.
आरंभिक स्थिति में फिजियोथेरेपी तथा घरेलू कसरतों से आंशिक लाभ मिल सकता पर सर्जरी ही इसका स्थायी इलाज है. रोगी को ठीक होने में कुछ महीनों से लेकर सालों लग सकते हैं. रोगी के परिजनों से चर्चा करने के बाद सर्जरी करना निश्चित किया गया. इसके तहत जांघ की हड्डी के ऊपरी हिस्से में वी-कट लगाया गया. एक इम्लांट की मदद से ऊपरी हिस्से की गोली को कूल्हे के साकेट में पहुंचाया गया. इस इम्प्लांट का एक हिस्सा जांघ की हड्डी के निचले हिस्से के भीतर तथा दूसरा हिस्सा फीमरल नेक के बाहर से फिक्स किया गया.
सर्जरी के तुरन्त बाद बच्चे की तकलीफ खत्म हो गई. फिलहाल बच्चे के पैरों को विशेष प्रकार के प्लास्टर में रखा गया है. प्लास्टर कटने के बाद उसे फिजियोथेरेपी की आवश्यकता होगी.