हर जगह महिलाओं के हक के साथ हो रहा खेला
प्रिंसिपल, प्रोफ़ेसर, कॉलेज का स्टाफ की संलिप्तता जांच के दायरे में
हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान, आदेश के बाद भी चुप्पी
भिलाई- छत्तीसगढ़ प्रदेश में महिला अधिकारों को लेकर बातें तो बहुत की जा रही हैं लेकिन भौतिक धरातल पर तस्वीर कुछ और ही दिखाई देती है. एक नहीं अनेक ऐसे मामले हैं जिन्हें देख सुनकर कहना पड़ता है कि शासन हो या प्रशासन, समाज हो या राजनीति हर जगह महिलाओं के हक के साथ खेला जा रहा है.
छत्तीसगढ़ के आयुर्वेद महाविद्यालय में वहां की महिला डॉक्टर के साथ जिस प्रकार की नाइंसाफी और घिनौना कृत्य किया जा रहा है, वह सोचने पर विवश करता है कि आखिर हमारी शासन व्यवस्था कहां से कहां जा रही है. राजधानी रायपुर के आयुर्वेद महाविद्यालय में रस शास्त्र एवं भैषजकल्पना विभाग में विगत 12 वर्षों से कार्यरत प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष अविवाहित महिला डॉक्टर के साथ लगभग 5-6 वर्षों से साजिश एवं षडयंत्र रच कर न केवल पीछे किया जा रहा है बल्कि उनका चरित्र हनन करके हताश व परेशान भी किया जा रहा है. पीड़ित महिला डॉक्टर सरोज परहाते आज जिस मानसिक यंत्रणा और हताशा के दौर से गुजर रही हैं इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. इसके पूर्व भी आयुष विभाग में डिप्टी डॉयरेक्टर के पद पर रही डॉक्टर केसर पात्रा को आयुष संयुक्त संचालक डा.सुनीलदास द्वारा इस कदर परेशान किया गया कि वह मानसिक प्रताड़ना का शिकार होकर नौकरी छोड़ने पर विवश हो गई.
जहां तक आयुर्वेद महाविद्यालय रायपुर की डॉक्टर सरोज परहाते का मामला है तो वहां गुमनाम पत्र एवं झूठी शिकायत के आधार पर जिस प्रकार की कार्रवाई एवं मानसिक उत्पीड़न किया गया वह किसी महाविद्यालय के इतिहास में अपने आप में अनूठी और हैरतअंगेज घटना है. महाविद्यालय में भ्रष्टाचार एवं अनियमितताओं में संलिप्त षड्यंत्रकारी प्रोफेसर्स एवं अधिकारियों के गठजोड़ ने ऐसा ताना-बाना बुना कि वर्तमान समय तक डॉक्टर परहाते को सम्मान मिलना तो दूर न्याय से भी वंचित रखा गया है. खास बात ये है कि छत्तीसगढ़ शासन द्वारा गुमनाम पत्र को भेजकर तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई गई जिसके अध्यक्ष डॉ. एस.आर.इंचुलकर थे और उनकी जांच में गुमनाम पत्र निराधार पाया गया और शासन को रिपोर्ट भेजी गई इसके बावजूद डॉ. इंचुलकर की भूमिका गुमनाम पत्र को मीडिया एवं अन्य माध्यम तक पहुंचाकर प्रकाशित करने में अहम थी इसकी भी जांच होनी चाहिए.
इस मामले में दुर्भाग्यजनक पहलू यह है कि मानसिक उत्पीड़न के इस प्रायोजित अभियान में क्या महिला पत्रकार, क्या महिला आयोग की प्रमुख और क्या महिला आईएएस अधिकारी किसी ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. मानिसक द्वंद एवं सम्मान न मिलने की स्थिति में महिला प्रोफेसर ने अपना हौसला नहीं खोया है और लगातार न्याय के लिए जद्दोजहद कर रही हैं. इस पूरे प्रकरण की गहराई में जाएं एवं आरोप-प्रत्यारोप के मंथन में यदि कोई सामने आया तो सिर्फ और सिर्फ असत्य. जो कि षड्यंत्रकारी प्राचार्य द्वारा संचालनालय में बैठे अधिकारियों के संरक्षण में फैलाया गया जबकि पूरे प्रदेश को यह पता है कि छत्तीसगढ़ में महिला अधिकारों को लेकर यहां की जनता कितनी सजग रहती है. छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में आज भी आप चाहे जहां चले जाइये महिला सम्मान को लेकर लोग विशेष रूप से सजग रहते हैं, यह यहां का संस्कार है. लेकिन यह कौन सी कार्य संस्कृति पैदा कर दी गई है कि शासन से लेकर प्रशासन तक महिला अधिकारों का खुलेआम हनन किया जा रहा है.
डॉ.सरोज परहाते के मामले में ही उनके विरोधियों ने इस प्रकार से सुनियोजित षडयंत्र रचा मानो वे मानिसक रोगी बन जाएं या अपनी मेहनत और लगन से पीएससी के माध्यम से पाई महत्वपूर्ण नौकरी छोड़कर घर बैठ जाएं. और सच है कि सरोज परहाते की जगह कोई और साधारण महिला होती तो परेशान होकर कब का नौकरी छोड़ चुकी होती लेकिन उनकी जीजिविषा ही है कि वे अब तक डटी हुई है नहीं तो 20 दिसंबर 2018 को रायपुर के एक लीडिंग अखबार एवं सोशल मीडिया में जिस प्रकार से गुमनाम पत्र का हवाला देकर सेक्सुअल हैरासमेंट की खबर प्रचारित की गई और योजनाबद्ध् तरीके से जांच कमेटी भी बिठा दी गई और पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट बनाकर महिला डॉक्टर को मानसिक प्रताड़ना भी दी गई. कोई और होता तो सोशल मीडिया एवं अखबार में समाचारों को पढ़कर टूट गया होता लेकिन डॉ.परहाते अपने बल पर परिस्थितियों का मुकाबला करती रहीं.
आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राचार्य एवं उनके शागिर्द पर गंभीर आरोप
डॉ. सरोज परहाते ने अपने ऊपर हुए अन्याय एवं षडयंत्र का खुलासा करते हुए प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री, राज्यपाल, महिला आयोग, मुख्य सचिव, पुलिस अधीक्षक से लेकर, तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक गुहार लगाई कि इस मामले में प्राचार्य जी.आर. चतुर्वेदी वर्तमान औषधि नियंत्रक ड्रग टेस्टिंग लेबोरेटरी रायपुर एवं तत्कालीन सहायक अधीक्षक वर्तमान में सेवानिवृत्त हो चुके शांति किशोर मांझी ने किस तरह से उनके साथ साजिश और षडयंत्र रचा और महिला चरित्र हनन के साथ मानसिक क्रूरता की और नौकरी छोड़ने पर मजबूर किया गया. उसके बाद भी अब तक पीड़ित डॉक्टर को न्याय नहीं मिल पाया है.
सवाल है कि छत्तीसगढ़ में महिला अधिकारियों के साथ इस प्रकार का अन्याय पूर्ण और साजिश षड्यंत्र रचकर पीछे करने वाला खेल कब तक चलेगा? जबकि छत्तीसगढ़ में एक से एक आले-आले महिला अफसरान अपने सुविज्ञ कार्यप्रणाली और प्रारदर्शिता से अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन उनकी योग्यता का लाभ जिस तरह से चाहिए उस तरह से प्रदेश को मिल नहीं पा रहा है.
लोक सेवा आयोग की फजीहत क्यों?
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की पारदर्शिता को लेकर लगातार सवाल खड़े होते रहे हैं. विपक्षियों ने पीएससी घोटाले को लेकर खूब हल्ला मचाया. ऊंगलियां उठीं, जांच हुई, अधिकारी जेल गए, चार्जशीट दाखिल हुआ लेकिन प्रश्न यहीं खड़ा होता है कि ईमानदारी की मिशाल पेश करने वाले महिला अधिकारी रीता शांडिल्य को समय रहते यदि पहले ही पीएससी की जवाबदेही दे दी गई होती तो यह दिन न देखने पड़ते. रीता शांडिल्य वह अधिकारी हैं जिन्होंने कलेक्टर के रूप में बेहतर परफार्मेंस देकर प्रशासन में अच्छी छवि अर्जित की है.
रेणु पिल्ले की भी कर्तव्यनिष्ठ महिला आईएएस की छवि
रेणु पिल्ले भी छत्तीसगढ़ में भारतीय प्रशासनिक सेवा की ऐसी वरिष्ठ अफसर हैं जिनकी अपनी बेबाक छवि है. वे अक्सर अपनी कर्तव्य परायणता को लेकर सुर्खियों में रही हैं. उनकी तेज तर्रार छवि जन-मानस में चर्चा की विषय है. यदि सरकार चाहे तो मुख्य सचिव बनाकर उनकी सेवाओं का लाभ ले सकती है लेकिन पेंच यही है कि एक महिला होने के नाते क्या उन्हें यह सम्मान दिया जाएगा?
छत्तीसगढ़ महतारी का सम्मान न भूलें
मिनीमाता से लेकर बिन्नी बाई तक छत्तीसगढ़ में मातृ पूजा गौरव का विषय रही है फिर डॉ.केसर पात्रा हों या डॉ. सरोज परहाते उन्हें किसी भी सूरत में इस बात का अहसास नहीं होना चाहिए कि महिला होने के नाते वे प्रताड़ना की शिकार हैं. उन्हें सम्मान न सही उचित न्याय तो दिया जाए और यह तभी हो सकेगा जब सरकार रीता शांडिल्य और रेणु पिल्ले जैसे प्रशासनिक अफसरान को सामने लाएगी. उनकी प्रशासनिक दक्षता का सम्मान करेगी और छत्तीसगढ़ के खुशहाली के लिए उनकी सेवाओं का लाभ लेगी.
शिकायतों का यह सिलसिला वर्ष 2016 से शुरू हुआ जब छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी और वर्तमान में भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में 1 वर्ष पूर्ण करने जा रही है. इस दौरान 5 वर्ष कांग्रेस का शासनकाल था और उस दौरान आयुर्वेदिक महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. जीआर चतुर्वेदी को पूर्व मंत्री डॉ.शिव डहरिया का सभी कार्यों में पूर्ण समर्थन था. क्योंकि शिव डहरिया स्वंय प्राचार्य डॉ. चतुर्वेदी के छात्र रहे हैं. लेकिन कांग्रेस शासनकाल में एक महिला को न्याय नहीं मिल पाना भी एक प्रश्न चिन्ह है. वर्तमान में यदि विष्णुदेव सरकार महिलाओं के प्रति संवेदनशील है तो डॉ. परहाते को अवश्य न्याय मिलेगा और प्राचार्य डॉ. जीआर चतुर्वेदी के डीपीसी से लेकर अन्य सभी संदिग्ध गतिविधियों की निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए और उनके पद में रहने से महाविद्यालय एवं छात्रों के भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ रहा है इसका भी आंकलन किया जाना चाहिए.