
भारी भ्रष्टाचार का अंदेशा
भिलाई- सूचना का अधिकार की किस तरह से दुर्ग जिले में धज्जियां उड़ाई जा रही है. इसका जीता जागता प्रमाण पिछले दिनों देखने को मिला है. जहां आरटीआई कार्यकर्ता को चाही गई जानकारी देने की बजाए यह कहकर टरका दिया गया कि वांछित जानकारी 1000 पृष्ठों से अधिक है. अतएव कार्यालय में आकर देख लें.
आवेदक जब अवलोकन हेतु जिला कार्यालय पहुंचा तो उसे कार्यालय में न केवल घंटो बिठाया गया बल्कि दस्तावेज देने की बात तो दूर रही, दिखाए तक नहीं गए. जबकि आवेदक ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि वे वांछित दस्तावेज की पूरी फीस देने को तैयार हैं.
जिला सूचना कार्यालय से सूचना के अधिकार के उड़ाए जा रहे इस प्रकार के माखौल से प्रतीत होता है कि भष्ट्राचार को बढ़ावा जिला प्रशासन के लोग ही दे रहे हैं. नहीं तो कारण क्या है कि दस्तावेज दिखाए नहीं जा रहे है जबकि सूचना के अधिकार के तहत यह आवेदक का अधिकार है. इससे लगता है कि कहीं न कहीं बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है और प्रशासन के लोग इसे छिपा रहे हैं. इसकी व्यापक पैमाने पर जांच जरूरी है.
इस मामले में आवेदक ने स्पष्ट कहा है कि वे इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ के जन सूचना अधिकारी तक जाएंगे और मामले के जांच के लिए ऊपर तक लिखेंगे.
सभी को पता है कि सूचना का अधिकार भारतीय लोकतंत्र में सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है. 2005 में मनमोहन सिंह सरकार ने RTI एक्ट को देश में लागू किया तो मंशा यही थी कि हमारा लोकतंत्र सही मायने में लोगों के लिए काम करे. लेकिन क्या वाकई ऐसा हो पाया? वर्तमान में क्या है आरटीआई कानून की हकीकत? कितनी पारदर्शिता है सरकार के कामकाज में? जिस कानून को जनता की सबसे सशक्त आवाज बनना था, कहीं उसी आवाज को दबाया तो नहीं जा रहा?
इस मामले की तफसील यह है कि कलेक्टोरेट में आवेदन कर आरटीआई कार्यकर्ता ने वर्ष 1 जनवरी 2022 से 1 सितंबर 2024 तक कुछ पटवारी हल्कों के परिवर्तित भूमि की B-1 की नकल की छायाप्रति एवं मूल दस्तावेज से संबंधित दस्तावेज मांगे थे। लेकिन संयुक्त कलेक्टर मुकेश रावटे (प्रभारी अधिकारी भू- अभिलेख दुर्ग) के द्वारा सूचना के तहत जानकारी न देकर आवेदक को अवलोकन के लिए कार्यालय बुलाया जाता है और अवलोकन न करके करीब 1 घंटे तक अपने कार्यालय में बैठा कर रखते हैं. संयुक्त कलेक्टर मुकेश रावटे RTI आवेदक के जवाब में पहले कहते है कि जानकरी लगभग 1 हजार पृष्ठों की है और दूसरी ओर आवेदक को जानकारी लेने का उद्धेश्य क्या है पूछते हैं और तो और अधिकारी द्वारा 50 पृष्ठों से अधिक और 100 रूपये से अधिक खर्च की है तो उक्त धारा 7(9) के अधीन आवेदक को कार्यालय में अभिलेखों, नस्तियों के अवलोकन के लिए कार्यालय बुलाया जाता है. पर संयुक्त कलेक्टर द्वारा कार्यालय में अवलोकन नहीं करने दिया जाता है. अब यहां ये सवाल उठता है कि आवेदक द्वारा मांगी गई जानकारी से जुड़ी ऐसी कौन सी सीक्रेसी दस्तावेज है, जो सार्वजनिक हो जाएगी तो कोई पहाड़ टूट जाएगा.
सूचना के अधिकार का जवाब
आवेदक द्वारा चाही गई जानकारी लगभग 1000 पृष्ठ है क्योंकि प्रदान करने में कार्यालय का समय एवं पारिश्रमिक का व्यय होता है एवं आवेदक द्वारा जानकारी व्यक्तिगत से संबंधित है एवं जानकारी प्राप्त करने का उद्देश्य क्या है बतावे तत्पश्चात सामान्य प्रशासन विभाग रायपुर का अधिसूचना के नियम 3 के भाग तीन में उल्लेखित है कि मागी गई जानकारी 50 पृष्ठों से अधिक की है या रूपये 100 (रूपये एक सौ केवल) से अधिक खर्च की है तो उक्त धारा 7(9) के अधीन आवेदक को कार्यालय में अभिलेखों, नस्तियों के अवलोकन करने का उल्लेख के तहत आवेदक कार्यालयीन समय में उपस्थिति होकर अभिलेखों का अवलोकन कर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.