आमदनी बढ़ी पर खेती में रूझान हुआ कम
कृषि से जुड़ी वैकल्पिक योजनाएं हुईं ठप
बोरे-बासी, तीज-त्यौहार फिर हाशिए पर
भूपेन्द्र वर्मा-
इस लोकसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति बेहद मजबूत है. केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को फिलहाल कोई चुनौती नहीं दिखाई देती. उनके चेहरे पर ही प्रदेश में कांग्रेस का तख्तापलट भी हो गया. पर आम छत्तीसगढ़िया अब खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है, किसानों को मिली एकमुश्त राशि जहां लक्जरी पर खर्च हो गई वहीं खेती-किसानी से जुड़ी दर्जनों योजनाओं के शिथिल हो जाने से किसानों में हताशा के भाव देखे जा रहे हैं. भाजपा का एक मात्र भरोसा अब महतारी वंदन योजना है जिसके तहत वह आधी आबादी को प्रतिमाह एक हजार रुपए दे रही है.
विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस को भाजपा के हाथों को बुरी तरह पराजित होना पड़ा. भूपेश सरकार की जिन योजनाओं की केन्द्र सरकार ने सराहना की, जिन योजनाओं को अन्य राज्यों में भी लागू किया गया उसका कोई फायदा कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में नहीं मिला. 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में जिस कांग्रेस ने भूपेश बघेल के नेतृत्व में 68 सीटें जीती थीं उसे इस बार 35 सीटों से संतोष करना पड़ा. भाजपा 15 सीटों से बढ़कर 54 सीटों तक जा पहुंची. इस तरह 15 साल के भाजपा शासन के बाद बनी कांग्रेस की सरकार एक ही कार्यकाल पूरा कर पाई.
पर इन पांच सालों में कांग्रेस ने भूपेश के नेतृत्व में कई ऐसे कार्य किये जिसकी मिसालें दी गईं. कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए जिसमें नरवा-गरुवा-घुरवा-बाड़ी योजना प्रमुख थी. इसके अलावा गोबर खरीदी और गोबर से बने उत्पादों पर भी काफी काम हुआ,इससे किसानों को वैकल्पिक आमदनी भी हुई. भूपेश सरकार के पांच सालों में न केवल खेतों की धड़ाधड़ बिक्री पर ब्रेक लगा बल्कि युवा भी गांवों में अवसर तलाशने लगे. बस्तर के बहुचर्चित हेलीकाप्टर किसान राजाराम त्रिपाठी से प्रेरित होकर वे कृषि उत्पादों में अवसर तलाशने लगे. भाजपा शासनकाल में मरणासन्न हो चुके तकनीकी महाविद्यालयों को भी संजीवनी मिल गई,तकनीकी विश्वविद्यालय ने भी शोध की दिशा बदल दी.
पर शासन के अंतिम वर्ष में यह सरकार घोटालों में ऐसी उलझी कि चुनाव के दौरान भी इसके नेताओं और अफसरों के खिलाफ कार्रवाई ही सुर्खियों में रही. सरकार के काम-काज और योजनाओं को भुला दिया गया और नतीजा भाजपा के पक्ष में रहा. सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा ने अपने दो वादों को पूरा भी किया पर वह खुशी किसानों के चेहरे पर अब कहीं दिखाई नहीं देती जो छत्तीसगढ़िया सरकार के दौरान उसकी पहचान बन गई थी.
राजनांदगांव बना अखाड़ा
वैसे तो राजनांदगांव का प्रत्येक चुनाव में महत्वपूर्ण किरदार रहा है पर इस बार यह सीट हॉटसीट में तब्दील हो गया है. यहां से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वयं मैदान में हैं. फिलहाल वे पाटन से कांग्रेस के विधायक भी हैं. वैसे तो छत्तीसगढ़ की सभी 11 संसदीय सीटों में जुबानी हमले तेज हुए हैं पर लोगों की निगाहें भूपेश पर टिकी हुई हैं. उनकी टक्कर भाजपा के सिटिंग एमपी संतोष पांडेय से है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भूपेश प्रदेश की राजनीति में एकमात्र ऐसा चेहरा हैं जिनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है. अपने देसी अंदाज और सरल व्यक्तित्व की वजह से वे शहरी से लेकर ग्रामीण और जंगल-क्षेत्रों तक समान रूप से जाने और पहचाने जाते हैं.
दरअसल, ‘छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी’ का भूपेश बघेल का दिया नारा पूरे देश के लिए विकास का ऐसा मूल मंत्र बन गया जिसे अनेक राज्यों ने अनुसरण किया. उन्होंने गोबर और गौ-मूत्र को रोजगार से जोड़ने की पहल की जिसकी गूँज पूरे देश में सुनायी दी. यहाँ तक कि इस मिशन की सफलता को देखते हुए केंद्र सरकार ने अनेकों बार छत्तीसगढ़ को सम्मानित किया. गोबर की खरीदी और उससे खाद, पेण्ट, धूप-अगरबत्ती आदि का निर्माण, गौ-मूत्र से जैविक कीटनाशक बनाकर स्वरोजगार का ऐसा फार्मूला उन्होंने दिया जिसकी सभी ने सराहना की. इसका लाभ लाखों महिलाओं को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मिला.
धान खरीदी से लेकर व्यापक कृषि ऋण माफी, बकाया सिंचाई कर माफ़, बिजली बिल हाफ, भूमिहीनों को पट्टा देकर उन्होंने गांवों में जो सकारात्मकता का अलख जगाया अब वह मद्धम होने लगा है. इसके अलावा आदिवासियों की जमीन वापसी, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के लिए कल्याणकारी नीतियां, लोक सेवकों के हित में सुधार कार्यक्रम, कक्षा 12 वीं तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, 0 से 5 वर्ष तक बच्चों के लिए पोषण कार्यक्रम, 15 वर्ष की बच्चियों से लेकर 49 वर्ष तक की महिलाओं के लिए सुपोषण अभियान, टीकाकरण, मातृत्व सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं में विस्तार से उन्होंने एक जनहितैषी सरकार की छवि बनाई.
निजाम बदलते ही बदले हालात
साल 2023 के अंत में भाजपा सरकार ने प्रदेश की कमान संभाल ली. इसके साथ ही उसने भूपेश बघेल की चलायी अनेक योजनाओं को या तो बंद कर दिया या फिर ठन्डे बस्ते में डाल दिया. ग्रामीण आबादी में इसका व्यापक प्रभाव देखा जा रहा है. भूपेश के मुख्यमंत्रित्व काल में किसानों के खेत सुरक्षित रहे. किसान खेत बेचने से परहेज करने लगा था. अपनी उपज का बेहतर मूल्य एवं ऋण माफी योजना का लाभ पाकर किसानों में खुशहाली लौटी थी. उनके कार्यकाल में एक भी किसान के आत्महत्या की खबर नहीं सुनाई दी. छत्तीसगढ़ में किसान भूपेश बघेल को सदैव अपने बीच के किसान के रूप में पाते थे जो गांव-गरीब की बात करता था.
छत्तीसगढ़ में सरकार बदलते ही फिर से स्याह सौदागर सक्रिय हो गए हैं. नशाखोरी और जुए-सट्टे का जोर है. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जनता को इन सबसे सावधान होने की जरूरत हैं. भूपेश वह अकेले साहसी पुरुष थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ महतारी के सच्चे बेटे के रूप में इसकी निःस्वार्थ भाव से सेवा की और आज भी कर रहे हैं,यही वजह है कि राजनांदगांव में लोग भूपेश को विजयी बनाने के लिए कमर तो कस ही लिए हैं, समस्त 11 सीटों पर भूपेश फैक्टर काम कर रहा है और 6 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस विनिंग पोजीशन में है.
रेवड़ी में स्वावलंबन ढूंढती महिलाएं
सवाल यही खड़े हो रहे हैं कि छत्तीसगढ़ को शोषण, उत्पीड़न और अत्याचार से बचाने के लिए क्या भूपेश सरकार की योजनाओं को बंद करना जरूरी है. आज इस बात पर सभी एकराय हैं कि भूपेश सरकार ने जो योजनाएं चलाई थीं वह ज्यों की त्यों जारी रहे. महतारी वंदन योजना को ही लें तो इसमें गरीब महिलाओं को एक हजार रुपया महीना जरूर दिया जा रहा है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. इससे पहले महिलाओं को गौठानों के माध्यम से जो लाभ हो रहा था, महिला स्वसहायता समूहों के माध्यम से महिलाएं सशक्त हो रही थीं, गौठान में महिला स्वावलंबन की जो बयार बहने लगी थी उसका लोप हो गया है. बहुत सी महिला 25 से 50 हजार रुपये तक कमा रही थीं जिससे उनकी गृहस्थी में खुशहाली आई थी.
इन्हीं गौठानों के माध्यम से वर्मी कंपोस्ट से लेकर अन्य कुटीर उद्योगों का संचालन होता था और महतारी वंदन योजना से ज्यादा का लाभ यहां की महिलाओं को मिलता था. क्या इस बात से कोई इंकार कर सकता है कि स्वरोजगार के लिए यहां की महिलाएं कितने परिश्रम से काम करती रही हैं. बालोद में महिला कमांडों के माध्यम से महिलाओं की सुरक्षा का अलख जगाने का कार्य भी क्या कम अनुकरणीय था? सच्चाई तो यही है कि छत्तीसगढ़ में महिलाओं को, किसानों को, छात्र-छात्राओं को, युवा वर्गों को और ग्रामीण से लेकर शहरी जनता को लोक लुभावन नहीं बल्कि ऐसी योजनाएं चाहिए जिसमें वे अपना पुरुषार्थ दिखा सकें. जनता को भी चाहिए कि वह उन्हीं शक्तियों का साथ दे जो छत्तीसगढ़ के सच्चे हितैषी हैं.
पांच बिन्दुओं में समझें जन आकांक्षा
- आज धान की जो कीमत है वह भूपेश सरकार की देन है. किसानों की आत्महत्या पर विराम लगा, जमीन के प्रति मोह बढ़ा. कर्जमाफी ने लोगों को कृषि की ओर आकर्षित किया, लोग प्राइवेट की नौकरी छोड़कर कृषि की ओर लौटे. युवा भी आकर्षित हुए.
- छत्तीसगढ़ में ज्यादातर फसलों को समर्थन मूल्य में शामिल करना. कोदो-कुटकी के अलावा रबी फसलों तिवरा-चना, ओनहारी को भी शामिल करने की योजना थी.
- गौठान के माध्यम से कृषि के मित्र कीटों को जीवित कर पर्यावरण संरक्षण, मिट्टी में उपजाऊपन लाने व रसायनमुक्त खेती को प्रोत्साहित कर खेती की लागत-खर्चा को भी कम करना था.
- धान की एकमुश्त राशि मिलने से यह राशि लक्जरी पर खर्च हो गई,अब किसानों के खाते खाली हो चुके हैं. तीजा-पोला और दीपावली त्यौहार के खर्च की चिंता अभी से सताने लगी है. सीमांत किसानों को बहुत फर्क पड़ा है.
- गौठानों के माध्यम से महिलाएं 25 से 50 हजार तक कमा लेती थी. अब काम बंद हो गया है और वे घर बैठकर खाते में एक हजार रुपए के आने का इंतजार कर रही हैं.