
बंदरों के उत्पात के चलते मैदानी इलाके के लोग नहीं बना पा रहे हैं बड़ी – बिजौरी
हेमंत कश्यप/जगदलपुर-
छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में बंदरों का आतंक बढ़ गया है इसलिए वहां के लोग शौक से बड़ी- बिजौरी भी नहीं बना पा रहे हैं इसके चलते यहां के लोग ओडिशा से आए रखिया- कुम्हड़ा खरीद तथा बड़ी – बिजौरी बनाकर अपने रिश्तेदारों तक भिजवा रहे है.
जब से छग के मैदानी इलाकों में नदी- नालों के किनारे बाड़ियों की संख्या बढ़ी है, तब से मैदानी इलाके में काले मुंह के बंदर अर्थात लंगरों की संख्या भी बढ़ी है। हर गांव के किसान ही नहीं घरों में साग – सब्जी लगाने वाले भी हलाकन हैं। लोग जो भी लगाते हैं. बंदर नहीं बचाते. इतना ही नहीं, आंगन में कोई भी खाने की वस्तु सूखाना मुश्किल हो गया है। बड़ी- बिजौरी बनाना भी मुश्किल हो गया है इसलिए वे अपने रिश्तेदारों से बड़ी- बिजौरी की मांग करते हैं.
इसके चलते ही जगदलपुर तथा बस्तर के विभिन्न स्थानों में निवासरत लोग अपने लिए ही नहीं, अपने रिश्तेदारों के लिए भी बड़ी – बिजौरी बनाते हैं और उचित माध्यम से भिजवाते हैं।
इन दिनों बस्तर के हाट- बाजारों में सीमावर्ती राज्य ओडिशा से रखिया – कुम्हड़ा खूब आ रहा है.
करीब 5 से 7 किग्रा वजनी एक कुम्हड़ा 120 रूपये की दर से बिक रहा है, वहीं एक जोड़ी रखिया की कीमत 600 रूपये तक है. इधर उड़द की कीमत 170 किलो तक पहुंच गई है. इसके बाबजूद यहां के लोग अपने रिश्तेदारों के लिए बड़ी- बिजौरी बना कर भेंट करते आ रहे हैं.
बताया गया कि वनांचल में वनोपज का अत्यधिक दोहन होने से बंदरों को खाने कोई जंगली फल भी नहीं मिल रहा है, इसके चलते ही बड़ी संख्या में बंदर पलायन के गए हैं.