भिलाई- अगस्त का पहला सप्ताह था. विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट अभी बस शुरू ही हुई थी. तब छत्तीसगढ़ अपने लाड़ले सांसद और संप्रति महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस का जन्मदिन जोरशोर से मना रहा था. जगह-जगह सम्मेलन और कार्यक्रम हो रहे थे. बैस ने स्वयं इनमें से अधिकांश में शिरकत की. प्रदेश भाजपा से संघ के कार्यकर्ताओं का आज भी यही मानना है कि छत्तीसगढ़ की चुनावी रणनीति बैस के इशारे पर ही तैयार की गई थी. कार्यकर्ताओं का भी मानना था कि किसानों को केन्द्र में रखकर ही भाजपा पुनः सत्ता में लौट सकती है. यह भी माना जा रहा था कि अब भाजपा को भी किसी ठेठ छत्तीसगढ़िया को ही मुख्यमंत्री बनाना होगा. यही लोगों की भावनाओं के अनुरूप होगा.
जानकारों की मानें तो छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार की योजनाओं की काट वरिष्ठ नेता बैस की इशारे पर ही तैयार की गई थी. इसमें किसानों को पिछला बकाया बोनस देना, धान का जबरदस्त समर्थन मूल्य तय करना और मध्यप्रदेश की लाड़ली बहना योजना की तर्ज पर कोई योजना देना भी शामिल था. भाजपा के घोषणापत्र में इन सभी की झलक देखी गई. इन योजनाओं के लिए राशि की व्यवस्था बिना केन्द्र के सहयोग के संभव नहीं था इसलिए बार-बार पार्टी कहती रही कि घोषणाओं के पीछे मोदी की गारंटी है.
जहां तक विधानसभा में बैस की सदस्यता का सवाल है तो भाजपा के पिछले मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह भी जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो वे सदन के सदस्य नहीं थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने डोंगरगांव सीट से उपचुनाव लड़ा और जीत कर विधानसभा पहुंचे. रमन तब प्रदेश अध्यक्ष होने के अलावा सांसद थे. उनके लिए प्रदीप गांधी ने डोंगरगगांव की सीट खाली की थी. इसके बाद से रमन लगातार राजनांदगांव से चुनाव लड़ते रहे. यदि बैस को मुख्यमंत्री घोषित किया जाता है तो उनका विधानसभा का सदस्य बनना केवल वक्त की बात होगी.
बैस के हक में जो सबसे अहम बात जाती वह यह कि वे छत्तीसगढ़ के सर्वमान्य नेता हैं और उनकी वरिष्ठता उनके कद को इतना बढ़ा देती है उसपर कोई सवाल नहीं उठ सकता. पार्षद से सांसद, केन्द्रीय मंत्री और तीन-तीन राज्यों के राज्यपाल रहे बैस के अनुभव के आगे भी फिलहाल कोई नहीं टिक सकता. सबसे बड़ी बात वे छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री की रिक्तता को भी भर सकते हैं.