विधानसभा चुनाव बिल्कुल करीब है. विभिन्न राजनीतिक दलों में टिकिट दावेदारों की भीड़ अभी से शुरू हो गई है. सभी दलों की ओर से ऐसा कहा जाता है कि योग्य और जीतने वाले कार्यकर्ताओं को टिकट दी जायेगी लेकिन योग्यता और जीतने का पैमाना क्या है. क्या चाल–चरित्र और चेहरा जिसे एक पैमाना होना चाहिए. यह एक जुबानी नारा बनकर रह गया है? यह प्रश्न इसलिए उठता है कि टिकिट बटवारे में पूंजीपति, संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले लोग और सेवा निवृत्त होने वाले या सेवा निवृत्ति लेकर तमाम नौकरशाह भी बड़ा हिस्सा मार लेते है और वर्षों से पार्टी की दरी बिछाने वाला झंडा लेकर संघर्ष करने वाला और संघर्षशील कार्यकर्ता भी टिकट से वंचित रह जाता है. वर्तमान में देखा जाए तो छत्तीसगढ़ के प्रमुख राजनीतिक दलों में ऐसे पूंजीपति और नौकरशाहों की काफी हद तक पैठ बन चुकी है और कई लोग टिकट प्राप्त कर विधायक, सांसद बनने में सफल भी हुए हैं. यदि नगरीय निकाय चुनावों पर दृष्टिपात करें तो बड़ी संख्या में शराब, सट्टा, जुआ और संदिग्ध कार्यों में संलग्न तत्व न केवल जीत दर्ज की है बल्कि महत्वपूर्ण पदों पर भी काबिज हैं. पार्षद और महत्वपूर्ण पद की सिढ़ी प्राप्त करने वाले ऐसे तमाम चेहरे विधानसभा चुनाव में भी अपनी दावेदारी पेश करने में काफी आगे दिखाई दे रहे हैं. सरसरी दृष्टि से देखा जाए तो शहरी क्षेत्रों में और खासकर प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा में ऐसे चेहरों की भरमार दिखाई दे रही है.
राजनीति में पैसे का वर्चस्व बढ़ जाने, खर्चीले चुनावों और मतदाताओं में वोट के बदले नोट लेने की शर्मनाक प्रवृत्ति ने राजनीति को पूरी तरह प्रदूषित कर दिया है. विधायक एवं सांसद बनने के बाद निजी स्वार्थ और लेनदेन के चलते विधायकों एवं सांसदों द्वारा ऐसे लोगों को एल्डरमेन, पार्टी का पदाधिकारी या प्रतिनिधि बना दिया जाता है, जिनका राजनीति और जनसेवा से कोई लेना देना नहीं है. ऐसे संदिग्ध तत्व मौके की तलाश मे रहते हैं और दुर्भाग्य जनक स्थिति यह है कि उन्हें सफलता भी मिल जाती है. यही कारण है कि विधानसभा चुनाव से पहले ही बौद्धिक और राजनीति क्षेत्रों में यह चर्चा चल पड़ी है कि विधानसभा का टिकट पाने में वास्तव में योग्य और अपने दल के प्रति समर्पित संघर्ष और जनसेवा में अपनी भागीदारी से पहचान बनाने वाले कार्यकर्तागण उपेक्षा के शिकार तो नहीं हो जाएंगे?
ऐसी चर्चा है कि प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा में नए चेहरों को अवसर दिए जाएंगे. नए दल आम आदमी पार्टी और पूर्व कांग्रेस नेता अरविंद नेताम के नेतृत्व में आदिवासी समाज के नाम पर चुनाव लड़ने की घोषणा की जा चुकी है. जाहिर है कि इनमें अधिकतर नए चेहरे ही होंगे लेकिन छत्तीसगढ़ की राजनीति में कांग्रेस और भाजपा के अतिरिक्त अन्य दल अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करा पाएंगे इसमें संदेह हैं. चर्चा यह भी है कि कांग्रेस को क्षति पहुंचाने के लिए ही अन्य पार्टियां सारी कवायद कर रही है. छत्तीसगढ़ में यह विधानसभा चुनाव इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया हैं कि वर्तमान कांग्रेस सरकार ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ को अपनी संस्कृति, परंपरा और पुरखों की विरासत से जोड़कर एक नई राजनीतिक और सामाजिक चेतना जागृत करने की कोशिश की है और उसमें सफलता भी मिली है. कुछ लोगों को यह नई चेतना खटक रही है और ऐसे तत्व की भूपेश सरकार को धक्का देने की भरपूर कोशिश करेंगे. जाहिर हैं जातिवाद, क्षेत्रवाद और पूंजीवाद का खेल खेलने की कोशिश अवश्य होगी कांग्रेस और भाजपा में लंबे समय से पद प्रतिष्ठा प्राप्त कर पूंजी बटोरने वाले लोगों की जगह नए चेहरे लाए जाने पर पुराने मठाधीश कहीं जाहिर और कहीं आंतरिक तौर पर चुनाव की गणित बिगाड़ने का प्रयास कर सकते हैं. यदि पूरी ईमानदारी से दोनों प्रमुख दलों का नेतृत्व नए चेहरे के रूप में पार्टी और जन सेवा से जुड़े कार्यकर्ताओं को टिकट देने में साहस का परिचय देता हैं तो निश्चित रूप से प्रदेश की राजनीति में व्यापक परिवर्तन आ सकता है सफलता किसको मिलेगी यह भविष्य की गर्भ में है.