
सेल भिलाई इस्पात संयंत्र की बिगड़ती शिक्षा, चिकित्सा, टाउनशिप तथा श्रमिक अधिकारों की कटौती से उपजता जनाक्रोश अब धीरे- धीरे मुखर हो रहा है. छत्तीसगढ़ आजतक के पिछले अंक में मिलाई सहित नंदिनी एवं दल्ली राजहरा की उजड़ती टाउनशिप, घटता रोजगार के अवसर तथा निरंतर हो रहे यहां के रहवासियों और व्यापारियों के पलायन से संबंधित समाचार प्रकाशित होने के बाद विभिन्न क्षेत्रों से तीखी प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई है.
पी. मोहन-
विशेषकर श्रमिक संगठनों से जुड़े प्रतिनिधियों ने न केवल वर्तमान स्थिति पर चिंता जाहिर की है बल्कि उन्होंने सेल एव सरकार के केंद्रीय नेतृत्व और क्षेत्रीय सांसदों की उदासीनता को भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया है.
इस संबंध में हाउस लीज संघर्ष समिति एवं लोकतांत्रिक इस्पात इंजीनियरिंग मजदूर यूनियन भिलाई के अध्यक्ष राजेंद्र परगनिहा ने हमारे प्रतिनिधि से चर्चा करते हुए कहा कि जब उन्होंने नवंबर 1986 में एसओटी के रूप में बीएसपी की नौकरी ज्वाइन की तब भी भिलाई, राजहरा, नंदिनी एवं हिरों में कार्यरत मजदूरों की कुल संख्या 60 हजार से अधिक थी. उनका कहना था कि साल 1960 से लेकर 1985 तक भिलाई इस्पात संयंत्र का स्वर्णिम कार्यकाल था. पं. जवाहरलाल नेहरू एवं श्रीमती इंदिरा गांधी के शासन काल में सार्वजनिक उपक्रमों के प्रति काफी उदारवादी दृष्टिकोण था और इस दौरान सार्वजनिक क्षेत्र में न केवल उत्पादन के क्षेत्र में बल्कि कर्मचारियों की समस्त मूलभूत सुविधाओं, बेहतर वेतन, आवास, शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई. इसी वजह से भिलाई की टाउनशिप देखने और शिक्षा, चिकित्सा का लाभ लेने के लिए ना केवल छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य राज्य के लोग भी आकर्षित हुए. इसी दौरान भिलाई का निजी औद्योगिक क्षेत्र भी तेजी से विकास की ओर अग्रसर हुआ. उन्होंने कहा कि समय के साथ परिवर्तन स्वभाविक है. राजीव गांधी के शासन काल में आधुनिक तकनीक के साथ ही आर्थिक नीतियों में कुछ परिवर्तन तो आया, लेकिन भिलाई इस्पात संयंत्र और उसके खदानों के श्रमिकों के अधिकार एवं रोजगार सुरक्षित रहे. बाद में परिस्थितियां बदलती गई और केंद्र में चाहे जिनका भी नेतृत्व रहा हो उनका दृष्टिकोण बदला और ऐसा कहा जाने लगा कि हमारा काम सिर्फ प्रोडक्शन और प्राफिट का है. इस नए दृष्टिकोण ने न केवल सार्वजनिक हित और मजदूरों के अधिकार व सुविधाओं पर कुठाराघात किया बल्कि प्रोडक्शन और प्राफिट भी अपेक्षा अनुरूप निरंतर घटता गया. इसके परिणाम स्वरूप वर्तमान की दयनीय स्थिति सामने है. वर्तमान में प्रबंधन एवं सरकार द्वारा सुधार की बजाय यूनियनों के संघर्ष को दबाने और उपेक्षा करने का कुचक्र चल रहा है.

छत्तीसगढ़ सीटू के कार्यकारी अध्यक्ष एस. पी. डे जो भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मचारी हैं और जिन्होंने लंबे समय तक भिलाई सीटू यूनियन का प्रतिनिधित्व किया है बीएसपी एवं खदान क्षेत्रों की वर्तमान स्थिति और निरंतर बढ़ती ठेका प्रणाली एवं कम होती नियमित संयंत्र कर्मियों की संख्या को लेकर काफी बेचैन और मुखर है. उन्होंने छत्तीसगढ़ आजक की इस गंभीर समस्या पर ध्यान देने और सच्चाई को प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि उसकी यूनियन की ओर से एक दशक पहले ही संयत कर्मियों की आवासीय कालोनी को संरक्षित रखने, स्कूलों तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों सहित मिलाई इस्पात संपेल के सेक्टर 9 स्थित मुख्य अस्पताल को उन्नत करने और माईस क्षेत्रों में भी अच्छे अस्पताल स्थापित किए जाने हेतु मांग पत्र दिया प्रबंधन ने हमारे सुझाव और मांगों को उपेक्षित किया. इस दौरान हमारी यूनियन को भिलाई इस्पात सयंत्र में मान्यता प्राप्त अनियन के रूप में भी संघर्ष करने का अवसर मिला और हमने ना केवल स्थायी कर्मियों बल्कि ठेका मजदूरों के हक में भी आवाज उठायी और संघर्ष किया सबसे दुखद पहलू यह है कि केवल राजनीतिक विचारधारा के विरोध स्वरूप क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों जिनमें विधायक एवं सासद प्रमुख की ओर से राज्य एवं केंद्र स्तर पर मिलाई स्टील उसके और यहां कार्यरत स्थाई व ठेका मजदूरों के हित में कभी भी ठोस प्रयास नहीं किया गया. आज की दयनीय स्थिति के लिए केवल प्रवचन दल्कि राज्य एवं केंद्र में प्रतिनिधित्व करने वाले लोग भी बराबर के जिम्मेदार व दोषी है. श्री डे का कहना है कि पहले भिलाई इस्पात संयं एवं राजहरा हि माइस टाउनशिप में शिक्षा के लिए अच्छे भवन एवं पर्याप्त शिक्षकों सहित 62 से अधिक थे और हायर सेकेंडरी तक इन स्कूलों के माध्यम से सय कर्मियों के बच्चों के अलावा अन्य रहवासियों के बच्चों को भी न्यूनतम सर्व पर अच्छी शिक्षा, सुविधा प्राप्त होती थी लेकिन वर्तमान में सब कुछ तहस-नहस हो गया है, और नाममात के लिए 10-12 स्कूल ही रह गए हैं, निजी स्कूलों एवं अस्पतालों से ज्यादा निजी लाभ उठाने वाले जनप्रतिनिधि एवं अधिकारी वर्ग ि चिकित्सा को उद्योग बनाने वाले तबकों के सामने नतमस्तक है और उन्हें सार्वजनिक हित की कोई चिंता नहीं है. वर्तमान केंद्र सरकार पूरी तरह पूंजीपतियों के पक्ष में है, इसलिए सार्वजनिक उपक्रमों एवं मजदूर हितों पर लगातार कुठाराघात हो रहा है. उन्होंने मजदूर आंदोलन को संयुक्त रूप से सशक्त बनाने की दिशा में कार्य करने पर जोर दिया और यह आशा व्यक्त की कि शीघ्र ही भविष्य में विपक्षी दलों की तरह यूनियनों की आपसी एकता मजबूत होगी तभी हम वर्तमान स्थिति से उबर सकते हैं.

इस संदर्भ में हमारे प्रतिनिधि ने बीएसपी की मान्यता प्राप्त यूनियन बीएमएस के कार्यकारी अध्यक्ष केशवलू से भी चर्चा की. उनका कहना था कि संयंत्र के इतिहास में पहली बार बीएमएस को बीएसपी में प्रतिनिधित्व का अवसर मिला है. एनजेसीएस जो सेल में प्रबंधन से चर्चा के लिए विभिन्न यूनियनों का अधिकृत संगठन है. उसमें भी लंबे अर्से के बाद बीएमएस को प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला है. हम विभिन्न स्तर पर कुछ नया बदलाव चाहते है. जिसके निए योजना बनाई जा रही है. हमें इस बात की चिंता है कि भिलाई इस्पात संयंत्र ने लोककला, खेलकूद आदि के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय अन्तरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिभाएं दी. जिससे टाउनशिप शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था पूरे देश में अपनी उत्तम स्थिति और व्यवस्था के लिए चर्चित थी. वह आज बदहाली की स्थिति में है और उसका अस्तित्व ही खतरे में आ गया है. उन्होंने कहा कि क्रिकेट के क्षेत्र में राजेश चौहान, बॉक्सिंग के क्षेत्र में राजेंद्र प्रसाद, बास्केटबाल के क्षेत्र में राजेश पटेल, वेटलिफ्टिंग में तंद्राराय चौधरी, लोककला के क्षेत्र में तीजन बाई, स्व. देवदास बंजारे, पद्मश्री डॉ. राधेश्याम बारले, पद्मश्री उषा बारले आदि ऐसे नाम है, जिन पर छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरा देश गौरव करता है. ऐसे समाज रत्नों को सामने लाने में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बीएसपी की प्रमुख भूमिका रही है.
साहित्य के क्षेत्र में डॉ. परदेशी राम वर्मा, स्व. दानेश्वर शर्मा, स्व. डॉ. विमल कुमार पाठक, रवि श्रीवास्तव, दादूलाल जोशी, लोकबाबू, ललित वर्मा, स्व. प्रेम साइमन आदि के साथ ही मूर्तिकला और लोकवाद्य के क्षेत्र में पद्मश्री जे. एम. नेल्सन, अंकुश देवांगन, रिखी क्षत्रिय इत्यादि तमाम इस्पात कर्मचारी अपनी रचना और कला से भिलाई और छत्तीसगढ़ का नाम देश- दुनिया में रोशन कर रहे हैं. इसके बावजूद बीएसपी कर्मचारियों और यहां के रहवासियों की मूलभूत समस्याओं के प्रति संयंत्र प्रबंधन की उदासीनता चिंताजनक है. यह पूछे जाने पर कि इस विषम स्थिति से उबरने के लिए आपकी यूनियन क्या प्रयास कर रही है, जबकि लोकसभा एवं राज्यसभा में आपकी विचारधारा के सांसद हैं. केवल दुर्ग ही नहीं राजनांदगांव, कांकेर और बिलासपुर में भी भाजपा के सांसद हैं. ऐसी स्थिति में भिलाई, राजहरा, नंदिनी और हिर्री माइंस की बर्बाद होती टाउनशिप खस्ताहाल शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था को लेकर आपकी यूनियन क्या कर रही है. श्री केशवलू ने सिर्फ इतना ही कहा कि हम प्रयासरत हैं. कुल मिलाकर यूनियन प्रतिनिधियों में आक्रोश तो दिखा लेकिन संघर्ष की कोई ठोस योजना सामने नहीं आई. इस मामले में दल्ली राजहरा का व्यापारी संगठन काफी सजग और सक्रिय भी है इसलिए हमारे प्रतिनिधि ने दल्ली राजहरा जाकर व्यापारी संघ के पदाधिकारियों से भी मुलाकात की.

दल्ली राजहरा व्यापारी संघ के अध्यक्ष गोविंद वाघवानी ने कहा कि उनका संगठन क्षेत्रीय नागरिकों के सहयोग से दल्ली राजहरा में खत्म होते रोजगार और पलायन के कारण निरंतर घटते व्यवसाय की समस्या को लेकर निरंतर आंदोलनरत हैं. उन्होंने शासन- प्रशासन व बीएसपी प्रबंधन का ध्यान इस गंभीर समस्या की ओर आकर्षित करने के लिए धरना प्रदर्शन के साथ ही दल्ली राजहरा बंद का भी सफल आयोजन किया. जिसमें कुसुमकसा, भानुप्रतापपुर, अंतागढ़, दल्ली राजहरा के व्यापारियों और नागरिकों ने भी शहर बंदकर समर्थन किया. उन्होंने कहा कि प्रशासन और शासन के अधिकारी सिर्फ आश्वासन देते हैं, समस्याओं के समाधान हेतु चाहे बीएसपी प्रबंधन हो या प्रशासनिक अधिकारी किसी की ओर से भी दल्ली राजहरा को विकसित करने की दिशा में कदम नहीं उठाया जा रहा है. यहां तक कि क्षेत्रीय विधायक और सांसद तक भी पूरी तरह से उदासीन है. श्री वाघवानी ने यह भी कहा है कि जनप्रतिनिधियों तथा राज्य और केंद्र सरकार की उदासीनता से आहत होकर उनका संगठन विधानसभा और लोकसभा चुनाव में चुनाव बहिष्कार करने का निर्णय भी ले सकता है. दल्ली राजहरा के प्रतिष्ठित नागरिक आलोक माथुर एवं अरुण ताम्रकार ने भी श्री वाघवानी का समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंने पहले भी व्यापारी संघ के आंदोलन का समर्थन किया है और आगे भी करेंगे क्योंकि दल्ली राजहरा को पूरी तरह उजड़ने से बचाए रखने के लिए जन आंदोलन ही एकमात्र रास्ता बचा है.
ऐसा नहीं है कि भिलाई इस्पात संयंत्र और उसकी खदानों में घटते स्थायी रोजगार नागरिक सुविधा और टाउनशिप की बदहाली के लिए केवल श्रमिक और व्यापारिक संगठन ही चिंतित है. बल्कि भिलाई का आफिसर्स एसोसिएशन भी वर्तमान दयनीय स्थिति के प्रति काफी संवेदशील और जागरूक है. ज्ञात हो कि सेल में भिलाई आफिसर्स एसोसिएशन की अच्छी पकड़ और साख है. अन्य इकाईयों की तुलना में इसे सबसे बड़ा संगठित और मजबूत एसोसिएशन माना जाता है. भिलाई टाउनशिप में अवैध कब्जो को हटाने, नए अवैध कब्जे रोकने तथा भिलाई इस्पात संयंत्र की सम्पत्तियों को संरक्षित रखने के लिए भिलाई आफिसर्स एसोसिएशन द्वारा निरंतर प्रबंधन एवं स्थानीय प्रशासन पर बनाये गए दबाव का असर है कि हजारों अवैध कब्जे हटाए गए हैं, अवैध कब्जे वाले आवास खाली कराए गए है और अवैध कब्जे वाली संयंत्र की सैकड़ों एकड़ भूमि संयंत्र प्रबंधन ने अपने कब्जे में ली है. संयंत्र के नगर प्रशासन द्वारा यह अभियान लगातार जारी है, इससे संयंत्र कर्मियों में यह उम्मीद भी जगी है कि उनके टाउनशिप और बाजारों में पुनः स्वच्छता और रौनक वापस आयेगी. इस मामले में भिलाई आफिसर्स एसोसिएशन क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों के आमने-सामने भी आ चुका है. एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेंद्र बंछोर का कहना है कि भिलाई इस्पात संयंत्र और संयंत्र कर्मियों के हितों की रक्षा के लिए यदि संघर्ष करना पड़ा तो वे किसी के सामने न झुकेंगे न रूकेंगे.. एसोसिएशन के महासचिव परविंदर सिंह ने अपने एसोसिएशन के अध्यक्ष की सराहना करते हुए कहा कि उनका संगठन श्री बंछोर के नेतृत्व में निरंतर जागरूक और संघर्षशील है और हम उन सभी प्रयासों में सहभागी बनेंगे, जिसमें भिलाई और भिलाई इस्पात संयंत्र का हित संवर्धित हो, उनका कहना था कि अब समय आ गया है कि बीएसपी प्रबंधन द्वारा सेल के उच्च प्रबंधन से चर्चा कर एक सुरक्षित और सर्वसुविधायुक्त कर्मचारी और अधिकारी वर्ग के लिए टाउनशिप का नया प्लान तैयार कर उसे मूर्त रूप दिया जाए.
छत्तीसगढ़ आजतक के समक्ष कुछ जागरुक बुद्धिजीवियों ने अपना नाम न छापने का आग्रह करते हुए कहा कि भिलाई में लंबे अर्से से विधायक के रूप में संयंत्र कर्मियों ने ही प्रतिनिधित्व किया है. श्रमिक नेता स्व. रवि आर्या से लेकर बदरुद्दीन कुरैशी, प्रेम प्रकाश पांडे भी संयंत्र कर्मचारी रहे हैं और इनका निवास भी भिलाई टाउनशिप ही है. यह संयोग ही है कि दुर्ग के वर्तमान लोकसभा सांसद विजय बघेल भी संयंत्र कर्मचारी रहे और राज्यसभा सांसद सुश्री सरोज पांडे संयंत्र कर्मी शिक्षक की पुत्री है. इसके बावजूद संयंत्र की बदहाल शिक्षा-चिकित्सा व्यवस्था, टाउनशिप के बिगड़ते सौंदर्य और ठेका मजदूरों के शोषण की आवाज दिल्ली में क्यों नहीं गूंजती है, यह सोच का विषय है. केवल भिलाई ही नहीं दल्ली राजहरा माइंस क्षेत्र के कर्मचारी स्व. जालम सिंह पटेल स्व. लोकेंद्र यादव एवं देवलाल दुग्गा भी डौंडीलोहारा और बालोद क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं. भिलाई एवं राजहरा के इन विधायकों को राज्य मंत्रिमंडल में मंत्री रहने का सौभाग्य मिला है. लेकिन लगभग उजड़ चुकी दल्ली राजहरा और भिलाई इस्पात संयंत्र की टाउनशिप सहित शिक्षा और चिकित्सा की लगातार होती बदतर स्थिति के प्रति उदासीनता क्यों है यह चिंताजनक है. जागरूक नागरिकों का कहना है कि हमारे सांसदों की यह विशेष जिम्मेदारी है कि केंद्र सरकार और सेल प्रबंधन के समक्ष समस्याओं के समाधान और भिलाई इस्पात संयंत्र तथा उसके खदान क्षेत्र की उन्नति व टाउनशिप के विकास के लिए सार्थक प्रयास करें. फिलहाल नागरिकों की अपेक्षाएं तो जायज है लेकिन संबंधित जनप्रतिनिधि कितना प्रयास करेंगे और कैसी राहत दिलाने में सक्षम और सफल होंगे यह भविष्य के गर्भ में है.
(शेष अगले अंक में )