
हजारों घनमीटर पाइन की लकड़ियां जा रही बाहर के प्लाईवुड और कागज कारखानों में
हेमंत कश्यप
51 साल पहले बस्तर के जंगलों में रोपे गए पाइन के हजारों वृक्षों को काटकर नीलाम कर दिया गया है. यह लकड़ियां नागपुर, बड़ोदरा, कोलकाता, बैंगलुरु, हैदराबाद, विशाखापट्टनम, दिल्ली जा रही हैं. अब तक 175 ट्रक माल बाहर जा चुका है और लगभग 500 ट्रकों से माल बाहर भेजना बाकी है.
क्या है पाइन परियोजना
बस्तर में हिमालय की तराई की तरह भरपूर बारिश होती है. इस आंकलन के बाद वर्ष 1971 से 1980 के मध्य बस्तर वनमंडल के माचकोट और जगदलपुर परिक्षेत्र में लगभग 10 हजार हेक्टेयर वनभूमि में खड़े साल, सागौन, बीजा, हल्दू सहित विभिन्न प्रजाति के लाखों पेड़ों को काटकर कैरेबियन पाइन पौधों का रोपण किया जाना था, चूंकि साल का कृत्रिम रोपण मुश्किल है इसलिए काफी जन विरोध हुआ. इसके चलते लगभग 1000 एकड़ में ही पाइन रोपण हो पाया. इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य बस्तर में कागज कारखाना का स्थापना था. पाइन रोपण के समय यहां के लोगों को बताया गया था कि लोगों को चिलगोजा मेवा खाने मिलेगा साथ ही कागज कारखाना की स्थापना से सैंकड़ों लोगों को रोजगार भी मिलेगा. वर्ष 1984 में अपने बस्तर प्रवास के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने परंपरागत वृक्षों को काटकर पाइन रोपण बंद करने का आदेश दिया. तब यह प्रोजेक्ट पूरी तरह से बंद हो पाया. पाइन रोपण के लिए वन विकास निगम को यह वन क्षेत्र लीज पर दिया गया था.
28 हजार घन मीटर पाइन काष्ठ की हुई नीलामी
वर्ष 2020-21 में वन मंडल के जगदलपुर और माचकोट वन परिक्षेत्र से कुल 15 हजार घन मीटर काष्ठ की नीलामी की गई थी. यह खरीदी दिल्ली, विशाखापट्टनम और दिल्ली के व्यापारियों ने की थी. इसी तरह वर्ष 2021-22 में 13 हजार घन मीटर पाइन काष्ठ की नीलामी 10 हजार रूपये प्रति घन मीटर की दर से गई है. इसे नागपुर, बड़ोदरा, कोलकाता, हैदराबाद और रायपुर के व्यापारियों ने की है. इस तरह कुल 28 हजार घन मीटर पाइन काष्ठ की नीलामी की गई है. पाइन लकड़ी का उपयोग प्लाईवुड, कागज बनाने के अलावा सेंट्रिग निर्माण में होता है।