
प्रदेश में भोले-भाले किसानों की बेशकीमती जमीन हड़पने के लिए भू-माफिया किस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं, इसके संगीन मामले प्रकाश में आए हैं. राजनांदगांव जिले के दो पड़ोसी गांव मुढ़ीपार और जोरातराई में दुर्ग के एक दबंग खदान माफिया द्वारा दो किसानों की जमीन-खदान हथियाने का ऐसा दुष्चक्र रचा गया कि दोनों जमीन मालिकों की सदमे से मौत हो गई. पहले मामले में एक बेवा को इतना अधिक प्रताड़ित किया गया कि उसे अपना गांव घर ही नहीं बल्कि प्रदेश छोड़कर जाना पड़ा. वहीं दूसरे मामले में अकेली, गरीब और अशक्त विधवा को अपनी हत्या का भय सता रहा है. विडंबना यह है कि जमीन की धोखाधड़ी के इन मामलों में पुलिस का एक सब-इंस्पेक्टर और एक प्रधान आरक्षक आरोपियों के साथ खड़े हैं. सुभाष नगर दुर्ग के भू-माफिया और ट्रांसपोर्ट व्यवसायी सुरेन्द्र शर्मा ने मुढ़ीपार के किसान विश्वनाथ ठाकुर की 5 एकड़ खनि जमीन को फर्जी दस्तावेज तैयार कर अपने कब्जे में ले लिया. लाइम-स्टोन वाली करोड़ों की इस जमीन को हड़पने के लिए 100 रूपए के स्टांप पेपर पर किरायानामा के बहाने बिक्रीनामा बनवा लिया. वहीं ग्राम जोरातराई में लक्ष्मी शर्मा पति महेन्द्र शर्मा की 3 एकड़ 84 डिसमिल जमीन हड़पने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार कर आपराधिक मामला दर्ज करवा दिया. दोनों मजलूम गरीब बेवाएं इंसाफ के लिए पुलिस थाना और कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रही हैं.
सुरेन्द्र शर्मा बन बैठा गौड़ ब्राह्मण समाज दुर्ग का अध्यक्ष
सुरेन्द्र शर्मा गौड़ ब्राह्मण समाज दुर्ग का अध्यक्ष है. इसकी प्रताड़ना से दो विधवा महिलाओं को विस्थापित जीवन बिताने मजबूर होना पड़ा है. प्रथम मामले में उसी समाज की एक महिला को छत्तीसगढ़ छोड़कर ओडिशा की शरण लेनी पड़ी. वहीं दूसरे मामले में भय और आतंक के बीच एक अशक्त और गरीब विधवा एकाकी जीवन जीने मजबूर है. दोनों ही मामलें में समानता यह है कि इन दोनों महिलाओं के पतियों की मौत उनकी जमीन –खदान हड़पने के कारण सदमे से हुई है. दोनों प्रकरणों में पत्नियों को पत्नी नहीं होने का आरोप झेलना पड़ा है. इन दोनों ही गंभीर प्रकरणों में राज्य महिला आयोग और मानव अधिकार आयोग को संज्ञान लेकर हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है.
प्रकरण क्रमांक – 1
सोमनी पुलिस ने दलाली का ऐसा कारनामा पेश किया है जो पूरे पुलिस महकमे की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाता है. एक पक्षकार के साथ मिलकर पुलिस ने दूसरे पक्ष को न केवल डराया धमकाया बल्कि मामले की फौरी जांच तक करना जरूरी नहीं समझा. दुर्ग और सोमनी के बीच चक्कर लगाते-लगाते एक बीमार पक्षकार की इस बीच सदमे में मौत हो गई. उसकी पत्नी पुनर्विवाह के दस्तावेज लिए घूमती रही और पुलिस उसे तलाकशुदा कहकर दुत्कारती रही. पति की मौत के बाद अकेली पड़ गई लक्ष्मी को मजबूर होकर छत्तीसगढ़ छोड़कर मायके ओडिशा जाना पड़ा. इस बीच सोमनी पुलिस वह सब कुछ करती रही जो उसे नहीं करना चाहिए था. ऐसा लगता है कि सोमनी पुलिस के जांच अधिकारियों का उद्देश्य जांच करना था ही नहीं.
सोमनी पुलिस ने इस मामले में कुछ ज्यादा ही रुचि ली. जांच अधिकारी प्रधान आरक्षक सेवक शर्मा ने जांच के नाम पर केवल इतना किया कि जैसा-जैसा सुरेन्द्र शर्मा कहता रहा, वह वैसा-वैसा करता रहा. उसने न तो दस्तावेजों का परीक्षण करना जरूरी समझा और न ही आरोपों की पुष्टि करने की कोई कोशिश की. सुरेन्द्र के कहने पर उसने लक्ष्मी को महेन्द्र की पत्नी मानने से इंकार कर दिया. उसे अपमानित भी किया और प्रताड़ित भी. बार-बार फोन करके वह महेन्द्र को धमकियां देता रहा. वह एक ही बात पर अड़ा था कि महेन्द्र जमीन को सुरेन्द्र के नाम पर चढ़वा दे. जबकि दुर्ग में की गई इसी मामले की शिकायत को पुलिस ने सिविल नेचर का बता कर पक्षकारों को अदालत जाने की सलाह दी थी.
खदान हथियाने के लिए रचा षडयंत्र
दरअसल यह पूरा मामला एक खदान-जमीन से जुड़ा हुआ है. न्यू आदर्श नगर दुर्ग निवासी महेन्द्र शर्मा के नाम पर जोरातराई, जिला राजनांदगाव में एक खदान था. इस खदान का संचालन दीपक शर्मा अनुबंध के तहत करता था. इस खदान पर काफी समय से सुरेन्द्र शर्मा की भी नजर थी. बीमार महेन्द्र के जीवनकाल में ही सुरेन्द्र ने इस खदान को हथियाने की कोशिशें शुरू कर दी थी. दीपक ने खदान संचालन के लिए दो साल का एक अनुबंध किया था. संभवतः इसी समय 100 रुपए के एक कोरे स्टाम्प पेपर को सुरेन्द्र ने हासिल कर लिया था. बता दें कि अपने प्रभाव के बल पर सुरेन्द्र शर्मा गौड़ ब्राह्मण समाज दुर्ग का अध्यक्ष बना बैठा है. सुरेन्द्र शर्मा के खिलाफ इस तरह का यह कोई पहला मामला नहीं है.
खदान पर कब्जा करने के लिए एक व्यक्ति न केवल जालसाजी का सहारा लेता है बल्कि पुलिस के साथ सेटिंग करके उसे इतना परेशान कर देता है कि सदमे से उसकी मौत हो जाती है. वह यहीं नहीं रुकता, बल्कि उसकी पत्नी को तलाकशुदा बताकर इतना परेशान और भयभीत कर देता है कि अंतत: उसे छत्तीसगढ़ छोड़कर अपने मायके (ओडिशा) में शरण लेनी पड़ती है.
जब सुरेन्द्र ने दिखाया अपना असली रूप
सुरेन्द्र और महेन्द्र दोनों के पिता का एक ही नाम लखीराम शर्मा है. जबकि ये दोनों अलग-अलग स्वतंत्र व्यक्ति है. इस बहाने वह महेन्द्र का करीबी बना बैठा था. वह उसे अपना चचेरा भाई बताता था और खदान में भी चक्कर लगाया करता था. जब उसने देखा कि महेन्द्र की तबियत अब ज्यादा खराब रहने लगी है तो उसने एक साजिश रची. उसने महेन्द्र पर खदान अपने नाम करने के लिए दबाव बनाने लगा. उसका कहना था कि वह इस सौदे के 20 लाख रुपए पहले ही दे चुका है. इसलिए महेन्द्र बाकी आठ लाख रुपए ले और खदान उसके नाम पर कर दे. सुरेन्द्र ने पहले से जुगाड़े हुए स्टाम्प पेपर पर 28 लाख में खदान के सौदा का मजमून भी तैयार कर लिया. पर जब महेन्द्र किसी भी कीमत पर इसके लिए राजी नहीं हुआ तो उसने पुलिस की मदद लेने की ठानी.
पहले करवाया धमकी भरा फोन
महेन्द्र अपनी पत्नी लक्ष्मी और पुत्र संदीप के साथ न्यू आदर्श नगर में रहता था. 02.09.2020 को एक अज्ञात नम्बर से उसके पास एक धमकी भरा फोन आता है. फोन पर सुरेन्द्र शर्मा बताता है कि उसने कुछ गुण्डों को खदान पर कब्जा करने तथा महेन्द्र के पुत्र के दफ्तर में ताला लगाने की बात कर रहे थे. इनमें से दो को वह जानता है. 28.01.2021 को वह महेन्द्र के घर पहुंचता है और गुण्डों के नाम पर रकम की मांग करता है. साथ ही वह धमकी देता है कि उसके पास ऐसे कागजात हैं कि वह खदान पर जब चाहे कब्जा कर सकता है. इसके बाद महेन्द्र शर्मा 08.02.2021 को दुर्ग एसपी प्रशांत ठाकुर को घटना की जानकारी दी. एसपी उसे सीएसपी दुर्ग विवेक शुक्ला के पास भेज देते हैं. साथ ही 11 फरवरी को उसने अखबारों में इश्तेहार भी छपवा दिया कि जोरातराई खदान का किसी के साथ कोई सौदा नहीं किया गया है. इसके तुरंत बाद 13 फरवरी को सुरेन्द्र ने भी इश्तेहार छपवा दिया कि उसका महेन्द्र के साथ खदान खरीदने का सौदा हुआ है. महेन्द्र ने तत्काल इसकी भी सूचना नगर पुलिस अधीक्षक को लिखित में दे दी. पर पुलिस इनमें से किसी भी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की.
एक साथ दो जिलों में शिकायत
12 फरवरी, 2021 को सुरेन्द्र शर्मा ने राजनांदगांव और दुर्ग पुलिस में एक साथ शिकायत की थी. उसका कथन था कि महेन्द्र ने उसके साथ 100 रुपए के स्टाम्प पर अपनी जोरातराई खदान का सौदा किया है. सौदा 28 लाख रुपए में हुआ है जिसमें से 20 लाख रुपए वह अदा कर चुका है. महेन्द्र अब सौदे से मुकर रहा है. साथ ही उसने महेन्द्र की पत्नी लक्ष्मी को तलाकशुदा भी बताया. उसके मुताबिक लक्ष्मी का 20-21 साल पहले ही महेन्द्र से तलाक हो चुका है और उसका या उसके पुत्र का जमीन पर कोई अधिकार नहीं है.
दुर्ग पुलिस ने इस मामले को जांच के लिए पद्मनाभपुर चौकी को सौंपा. पद्नाभपुर चौकी में 10 मार्च को महेन्द्र और सुरेन्द्र का कथन दर्ज किया गया. पुलिस ने मामले को सिविल नेचर का बताकर पक्षकारों को अदालत जाने की सलाह दे दी. पर सोमनी पुलिस ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. वह मामले में जांच के नाम पर महेन्द्र और लक्ष्मी को प्रताड़ित कर रही है. जांच अधिकारी सेवक शर्मा बार-बार फोन कर दुर्ग निवासी महेन्द्र को सोमनी थाना बुलाकर जेल भेजने की धमकी दी.
सोमनी थाना में पदस्थ प्रधान आरक्षक सेवक शर्मा बार-बार महेन्द्र को फोन कर उसे बार-बार थाने बुलाता था. महेन्द्र अपनी बीमारी का भी हवाला देता है पर प्र. आरक्षक सेवक शर्मा को कोई फर्क नहीं पड़ता. वह उसे धमकाना जारी रखता है. तब थक हार कर लक्ष्मी सोमनी थाना पहुंचती है. सेवक शर्मा ने लक्ष्मी को सुरेन्द्र द्वारा की गई शिकायत और 100 रुपए का स्टाम्प पेपर दिखाता है. साथ ही वह महेन्द्र शर्मा को थाना भेजने के लिए कहता है. 9 मार्च को महेन्द्र और लक्ष्मी दोनों थाना पहुंचते हैं. जांच अधिकारी लक्ष्मी को महेन्द्र की पत्नी मानने से इंकार कर देता है और उसे बाहर बैठा देता है. जमीन सुरेन्द्र शर्मा के नाम नहीं करने पर उसे जेल भेजने की धमकी देता है. इसके बाद पति-पत्नी घर लौट आते हैं.
लगातार मिल रही धमकियों के कारण शारीरिक रूप से बीमार महेन्द्र मानसिक उत्पीड़न के दौर से गुजरने लगता है. 30 मार्च को उसकी मौत हो गई. सोमनी पुलिस इसके बाद मामले को स्टेशन फाइल कर देती है.
खदान-जमीन हुई पत्नी-पुत्र के नाम
महेन्द्र शर्मा की मृत्यु के बाद 16 जून, 2021 और 28 जुलाई 2021 को महेन्द्र की जमीनों का नामांतरण महेन्द्र की बेवा लक्ष्मी शर्मा एवं पुत्र संदीप के नाम से कर दिया जाता है. न्यू आदर्श नगर का मकान भी उसके नाम पर चढ़ा दिया जाता है. दरअसल विवाह को लेकर कहीं कोई विवाद था ही नहीं. आपसी मनमुटाव के कारण लक्ष्मी और महेन्द्र का 11 मार्च, 2002 को विवाह विच्छेद हो गया था. पर परिवार के बुजुर्गों की मध्यस्थता में उनका घर एक बार फिर बस गया था. जमीन और मकान कानूनी रूप से अपने नाम पर आ जाने के बाद श्रीमती शर्मा ने जोरातरोई खदान का सौदा 16 मार्च 2022 को खिलेन्द्र चौहान एवं चिन्मय चौहान के साथ कर दिया.
सोमनी पुलिस का कारनामा
– मामले में सोमनी पुलिस के जांच अधिकारी सेवक शर्मा और बाद में जांच अधिकारी बनाए गए विनोद जाटवर लक्ष्मी को महेन्द्र की पत्नी मानने से इंकार करते रहे हैं. जबकि लक्ष्मी के पास महेन्द्र से दोबारा शादी करने का दस्तावेज है. पुलिस इस दस्तावेज में कोई रुचि नहीं लेती बल्कि 21 साल पहले हुए विवाह विच्छेद के दस्तावेज को फाइल में लगाकर बैठी रहती है.
– सोमनी पुलिस ने कभी भी महेन्द्र के घर जाकर इस मामले की तस्दीक करने की जरूरत नहीं समझी कि महेन्द्र, लक्ष्मी और उनका पुत्र संदीप साथ-साथ रहते हैं या नहीं. जांच रिपोर्ट के नाम पर जिन लोगों का नाम गवाही में दर्शाया गया है वे सभी सुरेन्द्र के आदमी हैं.
– महेन्द्र की मौत के बाद सोमनी पुलिस मामले को स्टेशन फाइल करती है. सुरेन्द्र की शिकायत पर सोमनी पुलिस 13.05.2022 को एफआईआर दर्ज करती है. सोमनी पुलिस पुनः फाइल खोल लेती है. इस बार उप निरीक्षक विनोद जाटवर को जांच अधिकारी बनाया जाता है. जाटवर भी लक्ष्मी को सताना शुरू कर देता है.
– एसआई जाटवर लक्ष्मी से पुनर्विवाह के दस्तावेज दिखाने की मांग करता है पर उसे मिलने के लिए समय नहीं देता. वह मौके की तलाश में रहता है. लक्ष्मी के पुत्र संदीप का एक्सीडेंट हो गया था. हाइटेक अस्पताल में उसका इलाज चल रहा था. 11 जून को उसकी छुट्टी होने वाली थी. इसी दिन जाटवर अस्पताल पहुंचता है और लक्ष्मी को आनन-फानन में उठाकर थाने ले आता है. लक्ष्मी के मुताबिक वहां जाटवर ने उससे कुछ कोरे कागजों पर हस्ताक्षर लिये थे. पुनर्विवाह के दस्तावेजों में उसकी कोई रुचि नहीं थी. एक-डेढ़ घंटे बाद थाना प्रभारी विनय सिंह बघेल आते हैं तो लक्ष्मी उन्हें रोती हुई मिलती है.
– लक्ष्मी थाना प्रभारी विनय सिंह बघेल को पूरी बात विस्तार से बताती है. श्री बघेल उसके साथ सहानुभूति के साथ पेश आते हैं. वे पूरी बात को ध्यान पूर्वक सुनते हैं और लक्ष्मी की मदद करते हैं. वे लक्ष्मी को धारा 91 का नोटिस देकर उससे पुनर्विवाह तथा अन्य सभी दस्तावेज हासिल कर लेते हैं और लक्ष्मी को वहां से जाने देता है.
– 13.05.2022 के एफआईआर पर एसआई जाटवर अपनी जांच रिपोर्ट में लक्ष्मी को पूर्ववत तलाकशुदा बताता है. विवाह विच्छेद के दस्तावेज का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा जाता है कि इसे निरस्त नहीं कराया गया है. दोबारा विवाह होने का कोई प्रमाण नहीं है.
सुरेन्द्र के बयानों में भी विरोधाभास
एक तरफ तो सुरेन्द्र शर्मा ही पुलिस के कान भरता है कि लक्ष्मी का महेन्द्र से विवाह विच्छेद हो चुका है और दूसरी तरफ वही पुलिस को दिए अपने कथन में लक्ष्मी को पत्नी और संदीप को पुत्र भी स्वीकार करता है.
– 22 फरवरी 2021 को जब पद्नाभपुर चौकी में उसका बयान लिया गया था तो उसने स्वीकार किया था कि इस मामले में उसकी खदान के मालिक महेन्द्र उसकी पत्नी लक्ष्मी और पुत्र संदीप से चर्चा होती रही है.
– महेन्द्र की मृत्यु के बाद जब उसे पता चलता है कि खदान जमीन और मकान लक्ष्मी और संदीप के नाम दर्ज हो चुका है और वह उसका सौदा कर रही है तो वह अपने वकीलों के माध्यम से उसे कानूनी नोटिस भेजता है. 8 जुलाई को भेजे गए इस नोटिस में वह लक्ष्मी और संदीप को महेन्द्र का उत्तराधिकारी स्वीकार करता है. उनसे महेन्द्र द्वारा किये गये सौदा का सम्मान करने का आग्रह किया जाता है.
– एक तरफ तो वह लक्ष्मी और संदीप को उत्तराधिकारी मानकर उन्हें नोटिस भेजता है वहीं दूसरी तरफ 4 अक्तूबर, 2021 को राजनांदगांव एसपी से शिकायत करता है कि लक्ष्मी और महेन्द्र का तलाक हो चुका है इसलिए जमीन पर उसका कोई अधिकार नहीं है.
तलाक और पुनर्विवाह की दास्तान
महेन्द्र का विवाह 06.05.1996 को बरगढ़ निवासी लक्ष्मी से हुआ था. उनका एक पुत्र है संदीप. आपसी मनमुटाव के कारण 11.03.2002 को वे विवाह विच्छेद करा लेते हैं. पर संदीप की देखभाल में परेशानी आने लगती है. तब बड़े बूढ़ों के समझाने बुझाने के बाद दोबारा 13.10.2003 को बरगढ़ के राधाकृष्ण मंदिर में वे पुनर्विवाह कर लेते हैं. विवाह की यह रस्म पं शिवकुमार शर्मा ने सम्पन्न कराई थी. इस विवाह समारोह में महेन्द्र के पिता लखीराम शर्मा भी शामिल हुए थे. इसके बाद से ही लक्ष्मी, संदीप और महेन्द्र साथ साथ रहते हैं जिसकी तसदीक करने की फुर्सत सोमनी पुलिस को नहीं मिली.
कूटरचित दस्तावेजों से सफेदपोश अपराध
दरअसल यह कूटरचित दस्तावेजों के जरिए खदान-जमीन हड़पने का मामला है. महेन्द्र शर्मा बीमार रहता था. सुरेन्द्र शर्मा उसकी खदान को हड़पना चाहता था. लगभग तीन साल पुराना यह व्हाइट कॉलर क्राइम दो जिलों के चार पुलिस केन्द्रों के बीच एक ही विषय पर बिखरा हुआ है. इसमें दुर्ग और राजनांदगांव कोतवाली के साथ ही पद्मनाभपुर और सोमनी की पुलिस चौकियां शामिल हैं. सुरेन्द्र शर्मा ने पुलिस में तहरीर दी थी कि महेन्द्र शर्मा ने उसे अपनी खदान बेच दी है. 3.84 एकड़ के इस खदान का सौदा 28 लाख रुपए में हुआ है. उसने महेन्द्र को 20 लाख रुपए दे दिये हैं. पर महेन्द्र खदान को उसके नाम नहीं कर रहा है. इसकी लिखापढ़ी के सबूत के तौर पर सुरेन्द्र ने 100 रुपए का एक स्टाम्प पेपर भी पुलिस को देता है. महेन्द्र और उसके परिवार के लोग इस स्टांप पेपर को कूटरचित और फर्जी बताते रहे हैं. सोमनी पुलिस के जांच अधिकारी अपनी पूरी ताकत सुरेन्द्र की शिकायतों को सही साबित करने में लगा देते हैं.
सूत्रों के मुताबिक पुलिस ने बिना किसी सूचना और बयान के ग्राम जोरातराई के पूर्व उपसरपंच धनेन्द्र साहू के विरूद्ध गंभीर धाराएं लगाकर इस मामले में जबरन घसीटा.
जांच अधिकारी और धाराएं
महेन्द्र की मौत के बाद मामला स्टेशन फाइल कर दिया गया था. मामले में एफआईआर तब दर्ज किया गया जब उप निरीक्षक विनोद कुमार जाटवर स्वयं थाने के प्रभार में थे. उन्होंने धारा 420, 467, 468, 471, 120-बी, 34 के तहत मामला दर्ज किया और मामले की जांच प्रारंभ की. यह मामला 16.06.2021 को जमीन और मकान का नामांतरण लक्ष्मी और संदीप के नाम पर होने के बाद उपजी परिस्थितियों को लेकर दर्ज किया गया था.
प्रकरण क्रमांक- 2
राजनांदगांव जिले के ग्राम मुढ़ीपार में विश्वनाथ ठाकुर की पांच एकड़ जमीन थी. जमीन में लाइम स्टोन का भंडार था. इसी जमीन पर आपसी समझौते के तहत सुरेन्द्र शर्मा ने क्रेशर मशीन लगाया था. इसके एवज में विश्वनाथ को जीवन-यापन के लिए कुछ रूपए मिल जाया करते थे. पर जल्द ही सुरेन्द्र शर्मा की नीयत बदल गई. इस कीमती जमीन को हड़पने के लिए उसने फर्जी दस्तावेज तैयार कर जमीन हड़प ली. दरअसल जिस कागजाज को विश्वनाथ जमीन पर क्रेशर लगाने और वार्षिक किराया भाड़ा देने का दस्तावेज समझ रहा था उसे कूटरचित कर जमीन का बिक्रीनामा बना दिया गया था. जब विश्वनाथ को मुफ्त में अपनी जमीन गंवाने का अभास हुआ तो वह यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाया. सदमें से विश्वनाथ की मौत हो गई, बाद में जब उनकी पत्नी भारती ठाकुर ने विरोध दर्ज कराया तो कुछ रुपए देकर उसे चुप कराने की कोशिश की गई. साथ ही उसे गुण्डों के नाम पर भी धमकाकर चुप करा दिया गया. भारती को अब अपनी जान का भय सता रहा है. भारती ठाकुर 72 साल की एक वृद्ध महिला है. वह घर पर अकेली रहती है. आंखें कमजोर हो गई है, शरीर अशक्त है. वह न्यायिक लड़ाई भी नहीं लड़ सकती ऐसे में जालसाजी कर जमीन हड़पने वाले को सजा कैसे मिलेगी इस पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है. ज्ञात हो कि मुढ़ीपार में सुरेन्द्र शर्मा ने अपनी जमीन पर क्रेशर मशीन लगा रखा रहा है लेकिन उनके पास लाईम स्टोन खदान की जमीन नहीं थी. इसलिए साजिशन वह विश्वनाथ ठाकुर की जमीन को किराए पर लेने के लिए इकरारनामा किया था.
लक्ष्मी शर्मा – मेरे ससुर का नाम लखीराम शर्मा है. और सुरेंद्र शर्मा के पिता का नाम भी लखीराम शर्मा है. दोनों की मौत हो चुकी है. सुरेंद्र शर्मा का हमारे परिवार से कोई संबंध नहीं है. न ही वह हमारे परिवार का सदस्य है और न ही हिस्सेदार. वह अपने पिता का नाम लखीराम शर्मा होने का नाजायज लाभ उठा रहा है. अपने आपको हमारा रिश्तेदार बताकर पुलिस को भी गुमराह कर रहा है. सुरेंद्र शर्मा को हमारे वैवाहिक जीवन, परिवार और संपत्ति के बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है.
महेंद्र शर्मा – मैंने अपनी खदान सुरेंद्र शर्मा को बिक्री करने के लिए न तो कोई सौदा किया है और न ही उनसे कोई रकम ही मैंने ली है. यदि कोई कागजात उनके पास हैं तो वह कूटरचित दस्तावेज है. सुरेंद्र शर्मा की छवि गुंडा प्रवृत्ति की है. दूसरे की जमीन को हड़पना और न देने पर मामले-मुकदमे में फंसाना उनकी प्रवृत्ति में शामिल है. (महेंद्र शर्मा ने पुलिस कप्तान से यह शिकायत अपनी मृत्यु के पूर्व की थी.)