
राजनीति के अजेय योद्धा बन गये हैं भूपेश
भूपेश बघेल से डर गई है भाजपा!
छत्तीसगढ़ प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लेकर केंद्रीय जांच एजेंसियां लगातार सक्रिय हैं. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से लेकर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) तक जांच एजेंसियां किसी न किसी बहाने भूपेश बघेल को सर्च कर रही हैं. यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री के परिवारजनों को भी किसी न किसी रूप में परेशान किया जा रहा है.
लगातार हो रही कार्रवाईयों को देखकर हर किसी के दिमाग में एक ही सवाल कौंध रहा है कि आखिर भूपेश ही निशाना क्यों? क्यों पूर्व मुख्यमंत्री को ही टारर्गेट करके पर्दे के पीछे से खेल पर खेल खेला जा रहा है? क्या और कोई नेता, व्यापारी, उद्योगपति या राजनीति से जुड़ी भाजपा की हस्तियां नहीं है जो इस जांच के दायरे में आएं. जिस महादेव एप्प, शराब और कोयला आदि को लेकर शोर-शराबा मचाया गया था क्या आज उन सब पर रोक लग गई है? यदि इन प्रश्नों के उत्तर से कोई बचता है तो स्पष्ट है कि वह केवल और केवल भूपेश बघेल से ही खुन्नस रखता है. वर्ना ऐसा कभी नहीं होता कि अश्लील सीडी कांड में कोर्ट से क्लीन चिट मिलने के बाद भी सीबीआई इसी मामले को लेकर भूपेश के पीछे पड़ी रहती और बाल का खाल निकालकर पूर्व मुख्यमंत्री को बदनाम करने की साजिश रची जाती.
देश ही नहीं पूरी दुनिया इस बात से वाकिफ है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने सुसंस्कृत, पारंपरिक और देशी अंदाज में छत्तीसगढ़ को हिंदुस्तान का तेजी से उभरता हुआ राज्य बना दिया था. देहात से लेकर जंगलों तक ददरिया और सुआ की गीत गाये जाते थे. खेत-खार से लेकर पशुधन, गोबर, गौठान तक पर बात होती थी. गौवंश को बचाने के लिए भूपेश बघेल ने एक से एक प्रस्ताव लाए, क्या इसी दिन के लिए कि उन्हें ईडी और सीबीआई मिलकर बदनाम करें? सड़क पर ले आएं? और उनके परिवार के लोगों को हद दर्ज तक परेशान करें? जबकि यह लोगों की जुबान पर है कि भूपेश बघेल की बनाई नीतियां ही वर्तमान भाजपा सरकार को आज भी यश और कीर्ति का भागीदार बना रही हैं और जिन योजनाओं को भाजपा ने खिसका दिया उसमें उसकी अपकीर्ति हो रही है. महतारी वंदन योजना, धान खरीदी, नक्सल उन्मूलन ऐसे जीते जागते उदाहरण है जिनसे भाजपा की सरकार को लोगों के असंतोष और कोप का भाजन बनना पड़ रहा है.
लोक लुभावनवाद से बचते रहे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश
केंद्र हो या राज्य सरकार या फिर उसकी जांच एजेंसियां यदि ठीक से देखें तो साफ होता है कि पिछली भूपेश सरकार का प्रदर्शन कैसा रहा. भूपेश बघेल की ही सरकार ऐसी रही जिसे केंद्र के सरकार ने अनेक अच्छे कार्यों के लिए दिल्ली में पुरस्कृत किया. स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह तक ने उनकी पीठ थपथपाई थी. तब ऐसा क्या हो गया कि पद से हटते ही केंद्रीय जांच एजेंसियां उनकी पीछे पड़ गई? जबकि उन्होंने सदैव प्रदेश और देश की भलाई के लिए अपने को समर्पित रखा. भूपेश बघेल के बारे में यह भी कहा जाता है कि वे कभी भी लोक लुभावनवाद नहीं चलाए और अपने सिद्धातों पर आगे बढ़ते रहे. उनकी नरवा-गरवा, घुरूवा-बारी वाली प्लानिंग संसार में छा गई थी अमेरिका और ब्रिटेन तक में चर्चा थी. बौद्धिक जगत में इसे बहुत सराहना मिली थी.
अवैध संपत्ति और व्यापार उद्योग से बचते रहे भूपेश
कहीं ऐसा तो नहीं कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का सादा सिम्पल और सरल व्यवहार उनके मार्ग में बाधक बन रहा है. साथ ही साथ उनकी देश में बढ़ती लोकप्रियता भी एक कारण के रूप में दिखाई देती है. भूपेश बघेल ने ही बताया था कि उनके राजनीतिक गुरू और कांग्रेस के बड़े कद्दावर नेता रहे पूर्व सांसद स्व.चंदूलाल चंद्राकर ने उन्हें सन् 1993 में जब वे पहली बार पाटन से विधायक निर्वाचित हुए थे तब सुझाव दिया था कि राजनीति में लंबी पारी खेलने के लिए अवैध संपत्ति और व्यापार उद्योग से बचना होगा. चंदूलाल जी की उन्हीं बातों का वे आजतक अक्षरस: पालन करते रहे हैं. यहां तक कि उन्होंने मध्यप्रदेश में केबिनेट मंत्री और छत्तीसगढ़ में केबिनेट मंत्री और फिर मुख्यमंत्री रहते हुए भी गांधी जी के सदाचार का पालन किया और राज्य की तरक्की के लिए भाजपा और अन्य विपक्षी दलों को साथ लेकर सर्वागीण विकास का रेखाचित्र तैयार किया. इसके बाद भी विरोधी उनके पीछे पड़े रहे हैं. और तो और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और डॉ.रमन सिंह की जुगल जोड़ी और अन्य विरोधियों ने मिलकर समय-समय पर उनकी अवैध संपत्ति और उद्योग व्यापार को खंगालने की बहुत कोशिस की लेकिन उनके हाथ नील बटा सन्नाटा के अलावा कुछ नहीं लगा. अभी बहुत दिन नहीं हुए जब भूपेश के धूर विरोधी संसद विजय बघेल ने उन पर नागपुर में होटल होने का आरोप लगाया था. लेकिन वे इसे प्रमाणित नहीं कर पाए जबकि भूपेश बघेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर इस प्रकार के खबरों का खंडन कर दिया था.
निशाना भूपेश पर ही क्यों
बार-बार भूपेश बघेल पर ही भाजपा निशाना मारती है तो लोग भी सवाल उठाते है कि निशाना भूपेश ही क्यों? इस बारे में जो जानकारी प्राप्त हो रही है वह तो कुछ और ही कहानी कहती है! जिसे क्रमवार बताते हैं-
- बस्तर के आदिवासियों के कुल देवता नील कंठ पहाड़ को डॉ.रमन सिंह और केंद्र की सरकार ने लीज पर आबंटित कर दिया था जिसे भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री बनते ही निरस्त कर दिया था.क्योंकि देवताओं के इस पहाड़ के आबंटन को लेकर आदिवासियों में भारी आक्रोश और असंतोष था.इसे समझते हुए भूपेश ने आदिवासियों के सम्मान को बनाए रखा.
- इसी तरह बस्तर के नगरनार स्टील प्लांट को अडानी ग्रुप को सौंपने की तैयारी थी लेकिन ऐन वक्त पर सरकार को लेकर भूपेश बघेल खड़े हो गए और प्रस्ताव दे दिया कि एनएमडीसी के निजीकरण के बजाय उसे राज्य सरकार को सौंप दिया जाए. इससे केंद्र को पीछे हटना पड़ा और उसने एनएमडीसी को बेचने के मसौदे को रद्द कर दिया.
- आगे बढ़े तो हसदेव अभ्यारण्य को भी अडानी ग्रुप को राजस्थान सरकार को कोयला देने का अनुबंध हुआ था चूंकि उस वक्त राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार थी. बावजूद कांग्रेस हाईकमान द्वारा दबाव पड़ने पर सहमत हो गया लेकिन जैसे ही स्थानीय आदिवासियों ने विरोध किया वैसे ही प्रदेश सरकार ने रोक लगा दिया.
- भूपेश बघेल शुरू से छत्तीसगढ़ की अस्मिता के लिए स्वामी आत्मानंद, डॉ.खूबचंद बघेल जैसे पुरखों के सपनों को लेकर आगे बढ़ते रहे और छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृत, खेल-कूद और तीज त्यौहार को पुन: जागृत कर आम छत्तीसगढ़ियों को जगाने का प्रयास किए.
इस प्रकार देखें तो क्रमों की संख्या तो बहुत है लेकिन मुकम्मल तौर देखें तो भूपेश बघेल की कुशल रणनीति और काम करने का पक्का इरादा ऐसा था कि विपक्ष के लोग परेशान हो गए यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री रहते डॉ. रमन सिंह भी समझ गए कि भूपेश से निबटना आसान नहीं है. उससे ज्यादा हैरत तो भूपेश की देशी प्राथमिकताओं पर उनकी रफ्तार को देखकर केंद्र सरकार को हुई कि भूपेश को टिकने देना उसकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है राजनीति के जानकार बताते हैं कि इसीलिए भूपेश बघेल के बढ़ते कारंवा को रोकने के लिए साजिशें और षड्यंत्र रचे गए.
पंजाब और यूपी में छाये रहे भूपेश
भूपेश बघेल ऐसे नेता थे जो उत्तरप्रदेश और पंजाब में खासे लोकप्रिय हुए. कांग्रेस हाईकमान ने उनकी काबिलियत को देखकर छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद पहली बार उन्हें महासचिव बनाया. महासचिव बनने के बाद पंजाब में पहली बार पहुंचे तो वहां के लोगों ने एक मुख्यमंत्री से भी ज्यादा उनका स्वागत किया क्योंकि पंजाब के किसान बरसों से किसान हित की लड़ाई लड़ते रहे. भूपेश ही हिंदुस्तान के पहले मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने किसानों का कर्ज माफ किया और समर्थन मूल्य से भी अधिक दर पर धान खरीदी की और कृषि को आय का दर्जा प्रदान किया. पिछले तीन वर्षो से सब्जियों के दाम कम नहीं हो रहे हैं.
विचारणीय है कि भूपेश ने छत्तीसगढ़ के किसानों को लाभ पहुंचाया लेकिन अन्य राज्यों के किसान जो लाभान्वित नहीं हुए उन लोगों ने भी भूपेश निवास पहुंचकर उन्हें धन्यवाद ज्ञापित किया. इससे यह संदेश प्रसारित हुआ कि भूपेश हिंदुस्तान में किसानों के अग्रणी नेता बन गए. यही भाजपा को खटकने लगा था.
पिछड़े वर्ग के नेता के रूप में उभार
भूपेश कुर्मी समाज के अग्रणी नेता के रूप में माने जाते हैं और पूरे देश में कुर्मी समाज एक सजग समाज के रूप में जाना जाता है. इस समाज के लोगों के पास अच्छी खासी खेतीबाड़ी है और लोग देश की तरक्की में सहभागी बनते हैं. इस नजरिए से देखा जाए तो भूपेश बघेल पिछड़े वर्ग के नेता के रूप में पूरे देश में बड़ी पहचान बना लिए हैं. यह भी भाजपा के लिए खतरे की घंटी के समान है और वह ऐन-केन प्रकारेण भूपेश बघेल को परेशान करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है.
तेजी से पलटने वाले नेताओं से घिरे रहे भूपेश
जानकार तो यहां तक कहते हैं कि मुख्यमंत्री रहते भूपेश बघेल ऐसे नेताओं और अपनों से भी घिरे रहे जो तेजी से पलटने वाले थे, अवसरवादी थे और मौके की तलाश में थे. बृहस्पति सिंह कांड, ढाई-ढाई साल का मुख्यमंत्री, दिल्ली परेड कुछ ऐसे वाकियात जो मीडिया को हवा भरने के नए-नए उपकरण उपलब्ध कराए. नेताओं का आना-जाना लगा रहा और भाजपा मौके की तलाश में थी ही, सक्रिय हो गई और केंद्रीय एजेंसियों को भूपेश के पीछे लगा दिया. उसी समय से ईडी और सीबीआई अपना काम सफाई से किए जा रही थी. हुक्मउदूली करने वाली नौकरशाही और अफसरशाही भी पीछे लगी थी. कहां-कहां से निबटते भूपेश? यही वजह है कि जिसे मौका मिला उसने चौका और छक्का जमाने से गुरेज नहीं किया और तो और अपने भी कान भरते रहे.
भूपेश के देसी प्राथमिकताओं पर रफ्तार से चिंतित रही भाजपा
इसे सभी कहते है कि भूपेश बघेल शुरू से छत्तीसगढ़ की संस्कृति को लेकर काम करते हैं. राजिम से शुरू हुआ पुन्नी मेला, हरेली तिहार के गेड़ी तक जाकर जय-जय छत्तीसगढ़ में बदल जाता है और नंद के कुमार रामवनपथगमन के साथ ही कौशल्या माता, छत्तीसगढ़ महतारी का यशगान शुरू कर देते है तो विपक्ष परेशान हो जाता है. देसी प्राथमिक्ताओं पर उनकी रफ्तार ऐसी थी कि छत्तीसगढ़ के मूल्यों जीवनशैली और आकांक्षाओं को फिर से लाने के लिए वे लोगों के बीच भेंट-मुलाकात का दौर शुरू कर दिए थे. उनके मुकाबले कोई नहीं था और वे छत्तीसगढ़ के संस्कृतिकरण की ओर लगातार आगे बढ़ रहे थे यह भला किसे पचेगा.
सोरेन, केजरीवाल, ममता की तरह हश्र की कोशिश
जिस तरीके से राजनीति के अजेय योद्धा भूपेश बघेल के खिलाफ कार्रवाईयां कि जा रही है उससे तो लगता है कि केंद्र से लेकर राज्य तक की सरकार भूपेश बघेल का हश्र दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, झारखंड के हेंमत सोरेन एवं पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की तरह करने पर अमादा है.लेकिन सनद रहे कि उक्तनेताओं की आवाज आज भी बुलंद है. और भूपेश बघेल भी निवास से लेकर विधानसभा तक गरज रहे हैं. भाजपा सरकार की पोल खोल रहे हैं.
बंद नहीं होगी आवाज
इसीलिए विपक्ष तो विपक्ष सत्ता पक्ष बीजेपी के लोग भी दबी जुबान से भूपेश की प्रशंसा करते नहीं थकते. यहां तक कि विधानसभा में भी काना-फुसियां होती हैं और हंसी ठठ्ठा में सही भूपेश को लेकर बात होती ही है. और स्वयं पूर्व मुख्यमंत्री ताल ठोक कर कहते है कि न्याय के लिए उनकी आवाज कभी दबेगी नहीं. वे गांधी जी के सिद्धांतों पर चलते हुए छत्तीसगढ़ एवं देश की भलाई के लिए लगातार लड़ते रहेंगे.