एक जनवरी 1948 को वनभैंसा के हमले से मारा गया था रूस्तम
हेमंत कश्यप/जगदलपुर- हर साल नववर्ष के पहले दिन कुटरुवासी रुस्तम और रोजी के साथ प्रेम को याद कर भावुक हो समाधि पर दीप जलाते हैं. 76 साल पहले आज ही के दिन यहां मुंबई के जेवरात व्यवसायी रुस्तम की वनभैंसा के हमले से मौत हुई थी और उसकी पत्नी रोजी लगातार 24 वर्षों तक कुटरु आकर पति की समाधि पर बरसी करती रहीं. इतना ही नहीं पूरे 48 वर्षों तक पति की कब्र में रोज दीप जलवाती रहीं. कुटरुवासी पति के प्रति निश्छल प्रेम रखने वाली रोज़ी को याद कर रुस्तम की कब्र को सहेजे हुए हैं.
संभागीय मुख्यालय से लगभग डेढ़ सौ किमी दूर कुटरु में तालाब किनारे मुंबई के जेवरात व्यवसाय रुस्तमजी पेस्टनजी की कब्र है. जिसकी देखरेख 76 वर्षों से कुटरुवासी करते आ रहे हैं.
क्या हुआ था पहली जनवरी को
31 दिसंबर 1947 को मुंबई के एक कुछ जेवरात व्यवसाय राज अतिथि बनकर बस्तर आए थे और नया वर्ष मनाने सभी कुटरु जमींदार के आवास में ठहरे थे. अगले दिन अर्थात पहली जनवरी 1948 की सुबह रुस्तमजी कुछ ग्रामीणों के साथ पाता कुटरु जंगल की तरफ शिकार करने गया था. उसने घास चर रहे एक वन भैंसा को गोली चला दी. गोली लगते ही वन भैंसा गिर गया. रुस्तम ने समझा गोली लगने से वनभैंसा मर गया. वह उसके समीप गया और वनभैंसा का सींग पकड़ कर हिलाने लगा. तभी घायल वनभैंसा अचानक खड़ा हो गया. यह देख रुस्तम घबरा गया. वनभैंसा उसे धकेलते हुए साजा वृक्ष तक ले गया और उसके पेट में सींग घुसा कर उछालने लगा. इतने में वह शांत नहीं हुआ और रुस्तम को अपने पैरों से तब तक रौंदता रहा, जब तक उसका शरीर पूरी तरह अचल नहीं हो गया. फिर कुछ दूर चलकर वनभैंसा गिर पड़ा और मर गया.
कुटरू में बनवाया समाधि
इस घटना की सूचना टेलीफोन के माध्यम से रुस्तम की पत्नी रोजी तक मुंबई पहुंचाई गई. वह दो जनवरी को विशेष विमान से जहाजभाटा जगदलपुर आई और जीप से कुटरु पहुंच पति का अंतिम संस्कार कराई. उसने ही कुटरू में रुस्तम की समाधि बनवाई और लगातार 24 वर्षों तक एक जनवरी को कुटरु पहुंच पति का श्राद्ध करती रही. इतना ही नहीं वह लगातार 48 वषों तक पति की कब्र पर दीप भी जलवाती रहीं. वह वर्ष 1996 तक कुटरु के एक डॉक्टर बनर्जी को दीया-बाती के लिए मुम्बई से मनीआर्डर करती रहीं.
वनभैंसा का सिर राजमहल में
पहली जनवरी 1948 को रुस्तमजी पेस्टनजी द्वारा मारे गए वन भैंसा का सिर आज भी जगदलपुर राजमहल की दीवार पर संरक्षित है. राजमहल देखने आए सैलानी वनभैंसा के सिर की विशालता को देख चकित रह जाते हैं, किंतु वे इस वनभैंसा के साथ जुड़ी रुस्तम और रोज़ी की प्रेम कथा से अनभिज्ञ हैं. इस वनभैंसा के सिर का चित्र ही बस्तर की एक मात्र राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पर्यावरणीय संस्था बस्तर प्रकृति बचाओ समिति का सिंबाल है.