64वें जन्मदिन पर विशेष
पूरा प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का जन्मदिन मना रहा है. हर्षोल्लास के साथ गांव-गांव और शहर-शहर में ढोल-ढमाकों के साथ छत्तीसगढ़ी गीत गूंज रहे हैं. आदिवासी अंचल भी इससे अछूता नहीं है. बस्तर से लेकर सुदूर अबूझमाड़ के जंगलों तक मांदर के थाप के बीच आदिवासी नृत्य हो रहे हैं और भूपेश बघेल को लंबी उम्र की दुआएं दी जा रही हैं. 23 अगस्त को भूपेश बघेल 63 वर्ष के हो जाएंगे. इन 63 वर्षों में उन्होंने कौन-कौन से दिन वे नहीं देखे यह तो वे ही जानते होंगे लेकिन पूरा प्रदेश इस बात का साक्षी है कि उन्होंने अपने प्रारंभिक राजनैतिक जीवन से ही समाज सेवा का कार्य शुरू कर दिया था. कई भेंट मुलाकात में उनके साथी-दोस्तों ने बताया है कि भूपेश बघेल किस तरह से बाल्यकाल से ही समाज और देश सेवा के प्रति तत्पर रहते थे. युवा कांग्रेस से अपनी राजनैतिक कैरियर की शुरूआत करने वाले भूपेश तत्कालीन दुर्ग सांसद और कांग्रेस के बड़े नेता रहे चंदूलाल चंद्राकर और जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे वासुदेव चंद्राकर के मार्गदर्शन और दिशानिर्देश पर लगातार आगे बढ़ते रहे. कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे अर्जुन सिंह और अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में उन्होंने कई बड़े आंदोलनों को जन्म दिया. पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण में भूपेश बघेल ने युवा तुर्क नेता के रूप में चंदूलाल चंद्राकर के निर्देशन में जिस प्रकार से इस आंदोलन को धार दिया उसे दिल्ली तक सराहा गया था. यहां तक कि भारतीय संसद में तत्कालीन सरकार को संकल्प पारित करना पड़ा था. भिलाई इस्पात संयंत्र से लेकर कोरबा बालको, रायगढ़ एवं आदिवासी इलाके में नगरनार स्टील प्लांट एवं राजनांदगांव से लेकर कवर्धा तक उद्योग व्यवसाय के विस्तारीकरण पर उनकी नजर रही.
यही वजह है कि छत्तीसगढ़ से लेकर दिल्ली तक उनकी बढ़ती लोकप्रियता से न केवल विपक्ष बल्कि उनके अपने दल में भी खलबली मच गई थी. विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने अपनी धार और अपना फोकस केवल और केवल भूपेश बघेल पर बनाये रखा तो कांग्रेस के अंदरखाने में भी भूपेश की लोकप्रियता से आजिज आकर उनके खिलाफ षड़यंत्र रचा गया. पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस सिंह देव हों या फिर पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, चरणदास महंत हो या फिर पूर्व अबकारी मंत्री कवासी लखमा सबके बीच मतभेद पैदा करने के लिए विरोधियों ने अपनी चालें जारी रखीं. लेकिन भूपेश जैसा कुशल नेतृत्वकर्ता ही था जिसने सभी के चालों पर पानी फेर दिया और सबको लेकर गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की परिकल्पना साकार किया. नया रायपुर में जो बड़ी अधोसंरचना दिखाई दे रही है और छत्तीसगढ़ में जो विकास के इंफ्रास्ट्रक्चर दिखाई दे रहे हैं उसके पीछे पूर्व मुख्यमंत्री की ही दूरदर्शिता ही है.
हालांकि यह सच कि भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री के रूप में जिस विकास का स्वप्न देखा था वह मूर्त रूप नहीं ले सका है. स्वयं पूर्व मुख्यमंत्री ने इस बात को स्वीकार किया है कि अभी उन्हें बहुत कुछ करना शेष रह गया है. उनका नरवा-गरूवा- घुरवा-बारी का मास्टर प्लान आज भी अधूरा है. यह योजना ऐसी योजना थी जिसका क्रियान्वयन होते ही पूरे देश में स्वागत हुआ था. यहां तक कि प्रधानमंत्री के गुजरात प्रदेश में भी गोबर से खाद और कुटीर उद्योगों के संचालन का प्लान बनने लगा था. छत्तीसगढ़ में ही शहरों से लेकर गावों तक गोबर से खाद, दीया, पेंट, कंडा, राखी, बैग सहित अनेकों उत्पाद बनने लगे थे. इसके लिए छोटे-छोटे कुटीर उद्योग और कारखाने तक लग गये थे. हजारों हजार महिलाएं बेरोजगार, नवजवान यत्र-तत्र बेकार घूमने वाले लोगों को काम मिल गया था और एक दिन में बीस से लेकर साठ-सत्तर हजार रूपये कमाई का साधन भूपेश बघेल ने तैयार कर दिया था. इसीलिए दिवाली हो या दशहरा, हरेली हो या तीजा-पोला सभी तीज त्यौहारों में छत्तीसगढ़ी गीतों के साथ लोग खुशहाली के नृत्य किया करते थे. घरों में भूपेश बघेल के बड़े-बड़े चित्र लगाना और “कका” का संबोधन देकर उन्हें सम्मानित करना छत्तीसगढ़ के लोगों में इस कदर समा गया था कि इससे वे स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते थे. और यह यूं ही नही था, नदी-नालों का विकास करके उन्होंने सीमांत कृषि की सिंचाई के लिए जो व्यवस्था की उससे किसानों के बंजर खेत भी लहलहा उठे थे. बालोद जिले से लेकर कबीरधाम राजनांदगांव, रायपुर, बालौदाबाजार, आरंग, पिथौरा, राजिम, महासमुंद सहित वनांचल के अनेक गावों में ऐसे अनेक खेत थे लेकिन आजादी के बाद भी इतने बड़े-बड़े नेता थे लेकिन सिंचाई की व्यवस्था नहीं कर पाए लेकिन भूपेश बघेल ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उसे कर दिखाया. उनकी बाड़ी योजना के तहत पूरे प्रदेश में सघन वृक्षारोपण जंगलों का विकास और वन्य पशुओं के लिए अभ्यारण की व्यवस्था का बखान कांग्रेस के लोग ही नहीं, भाजपा के लोगों ने भी अनेक अवसरों पर की हैं. राम वन गमन पथ की बात हो या कौशिल्या माता या फिर भांचा राम एवं अन्य ऋषि आश्रमों के विकास सभी पर भूपेश बघेल का फोकस रहा. यही कारण रहा कि चित्रकोट से लेकर चिंता गुफा तक पर्यटकों का रेला लग गया था. आदिवासी अंचल किस प्रकार खुशहाल था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजधानी रायपुर की सड़कों पर बस्तर से चलकर बड़ी संख्या में आदिवासी पहुंचते थे और मांदर की थाप पर थिरकते हुए भूपेश बघेल को अपने कंधों पर उठा लिया करते थे और स्वयं पूर्व मुख्यमंत्री को अपने साथ झूमने पर मजबूर कर देते थे.
जन कल्याणकारी कार्यों से बनी राष्ट्रीय छवि
भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ के एकमात्र ऐसे नेता हैं जिनकी बड़ी राष्ट्रीय पहचान बनी है. उत्तरप्रदेश के चुनाव से लेकर जहां-जहां चुनाव हुए वहां भूपेश बघेल को स्टार प्रचारक के रूप में बुलाने की बड़ी मांग रही तो उसके पीछे यही कारण था कि देश ने छत्तीसगढ़ के विकास में उनके कार्यों को देखा और परखा था. वे छत्तीसगढ़ के एक ऐसे लाल के रूप में उभरे जिन्होंने महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा और छत्तीसगढ़ महतारी की ममता भरी निगाहें आत्मसात करते हुए छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोककला को बढ़ाने के साथ विकास का एक नया खाका खींचा.
किसानों के कर्ज माफी के लिए चुनावी घोषण पत्र में उन्होंने जो उल्लेख किया था सरकार बनते ही सबसे पहले उसे ही पूरा किया. इससे उनकी बहुत सुदंर छवि बनी. यहां तक स्वयं राहुल गांधी छत्तीसगढ़ पहुंचे थे और इस योजना का शुभारंभ किये थे. इसके साथ धान के समर्थन मूल्य और वनोपज के दामों में बढ़ोत्तरी, तेंदूपत्ता संग्राहकों और श्रमिकों के वेतन में बढ़ोत्तरी उन्हीं के कार्यकाल में संभव हो पाया. किसान जो औने-पौने दाम में अपने खेत बेच दिया करते थे उस पर भूपेश सरकार ने पूर्ण विराम लगा दिया था. बड़े पैमाने पर पट्टे बांटकर गरीब-आदिवासियों के चेहरों पर मुस्कराहट ला दी थी. बेटियों की शादी की बात हो या उनकी शिक्षा, स्वास्थ की बात हो भूपेश बघेल ने उनके लिए अलग से योजनाएं बनाई. बेटियों को स्कूल जाने के लिए मुफ्त में साईकिले बांटी, किताब-कॉपी दिये.
यहां तक कि उनकी मुफ्त शिक्षा के लिए भूपेश बघेल ने कांग्रेस के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूलों का संचालन शुरू करवाया. जहां उच्च गुणवत्ता की शिक्षा दिऐ जाने की व्यवस्था थी. इन स्कूलों में बच्चों ने पूरी शिद्दत के साथ पढ़ते हुए मेरिट में अपना स्थान बनाया और दिखा दिया कि अन्य स्कूलों की तुलना में स्वामी आत्मानंद स्कूल शीर्ष पर हैं. इन स्कूलों में प्रवेश पाने के लिए पालकों की इतनी भीड़ बढ़ने लगी थी कि कई जगह लॉटरी सिस्टम लाना पड़ा. पालक अपने बच्चों का इन स्कूलों में प्रवेश दिलाने के लिए मंत्री, विधायकों तक से सोर्स लगवाते थे. और वर्षों की छोड़े, पिछले बरस ही देखें तो हाई स्कूल और हायर सेकेण्डरी के नतीजो में स्वामी आत्मानंद स्कूल के 15 स्टूडेंट्स ने टॉप 10 में स्थान बनाया था. खास बात ये थी कि हाई स्कूल के नतीजों में आत्मानंद स्कूल में पढ़ने वाले तीन स्टूडेंट्स ने एक ही शहर से टॉप थ्री पर अपना स्थान जमाया था, छत्तीसगढ़ में संचालित आत्मानंद स्कूलों के लिए यह बेहद गौरव की बात रही.
लेकिन नई भाजपा सरकार ने इन स्कूलों को शिक्षा विभाग के हवाले कर दिया जिसकी बड़ी आलोचना हो रही है और सच भी है कि अब इन आत्मानंद स्कूलों का सरकारी ढर्रा उसकी गुणवत्ता का अवमूल्यन करने लगा है. किसानों की दशा भी बिगड़ने लगी है. पूर्ववर्ती सरकार ने किसान हित में जो-जो फैसले लिए थे उसे या तो बंद किया जा रहा है या फिर कमजोर कर दिया गया. यहां तक कि गांव-गांव में किसान अब फिर से अपनी कीमती खेती बेचने पर विवश हो रहा है. अनेक अवसरों पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे लेकर अपना दु:ख बयां किया है. भाजपा सरकार की गरीब महिलाओं के लिए लाई गयी महतारी वंदन योजना भी आलोचना की शिकार है. गरीब महिलाओं को बैंको के चक्कर काटने पड़ रहे हैं लेकिन यही भूपेश बघेल मुख्यमंत्री थे तो महिलाओं के लिए अलग से योजनाएं ले आए थे. गौठान तक में महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा गया था.
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में कृषि एवं उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बाहरी पूंजी निवेश को भी आकर्षित किया था. साथ ही साथ देशी लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास के लिए भी नई आधारशिला रखी. भिलाई का औद्योगिक जगत आज भी एक उदाहरण है जहां सैकड़ों उद्योग देश-प्रदेश के विकास से जुड़े हुए हैं. साइंस और टेक्नोलॉजी के लिए भी अनेक प्रस्ताव संचालित किए गए. इसके साथ ही सैकड़ों योजनाएं ऐसी थी जिससे युवा और महिला वर्ग सीधे तौर पर लाभांन्वित हुए. आंगनबाड़ी एवं बालवाड़ियों का आधुनिकीकरण होने से शिशु एवं मातृत्व की रक्षा में एक बड़ा कदम देखने को मिला.
भूपेश बघेल का राजनैतिक सफर देखें तो कांटों भरे ताज का रहा. कदम-कदम पर उनके विरोधी सक्रिय रहे. बृहस्पति सिंह का मामला जो उछला था और जिसकी गूंज प्रदेश से लेकर देश तक हुई थी, उसके पीछे कौन था? जातिवाद का पासा फेंककर और भ्रष्टाचार से लेकर महादेव सट्टा मामले को किसने हवा दिया? जबकि भूपेश बघेल नहीं बल्कि पूरा प्रदेश जानना चाहता है कि क्या आज की तिथि में महादेव सट्टा बंद हो गया है? लोग बताते हैं कि महादेव सट्टा पूरे जोरों पर चल रहा है. कमीशनखोरी का खेल पूरे उफान पर है. यहां तक कि इसका प्रतिशत बढ़ा दिया गया है ऐसा दबी जुबान से सरकार के लोग ही कहते हैं. हर काम में यहां तक के नगर निगमों में भी बिना लिए-दिए काम होता नहीं यह आरोप लगातार लगते रहे हैं.
शहरों में यातायात व्यवस्था का क्या हाल है? शहरों से लेकर गांवों तक सड़क दुर्घटनाओं में हर रोज लोग मर रहे हैं. अस्पताल जाकर देख लीजिए, दुर्घटना के शिकार मरीज बेडों पर कराहते हुए मिल जाएंगे. सड़कों पर आवारा मवेशियों को देखने वाला कोई नहीं, गौठान टूटा और व्यवस्था चरमराई, क्या यही है सरकार की व्यवस्था? पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल को याद करें तो भेंट-मुलाकात की शुरूवात कर उन्होंने गांव-गांव के लोगों को उनकी छोटी-छोटी समस्यों के निदान के लिए आमंत्रित किया था. लाखों प्रकरण सुलझाये गए थे. नये जिलों,नई तहसीलों,नये निगम और पालिकाओं का गठन कर जनता का सुविधाओं का विस्तार किया गया.
किसान-पुत्र भूपेश बघेल कांग्रेस की राजनीति के ऐसे अजातशत्रु के रूप में उभरे हैं जिन पर छत्तीसगढ़ की जनता को नाज है. 23 अगस्त सन् 1961 को मनवा कुर्मी परिवार में जन्म लिए भूपेश बघेल ने राजनीति के अनेक पाठ पढ़े और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद को सुशोभित किया. केवल सुशोभित नहीं किया, बल्कि राज्य-विकास की नींव भी रखी इसके लिए भारत सरकार के अनेकों पुरस्कार मिले और अंतर्राष्ट्रीय जगत में छत्तीसगढ़ छाया रहा. छत्तीसगढ़ की जनता अपने माटीपुत्र भूपेश बघेल का जन्मदिन मनाने बड़ी संख्या में अगर उनक निवास पहुंची है तो उसके पीछे यही कारण है कि वे आज भी उसी रूप में लोकप्रिय बने हुए हैं और राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेता के रूप में उनकी छवि को और बड़ा फलक मिल गया है.