कौन दूर करेगा छत्तीसगढ़ का दर्द?
भिलाई- आठ माह पूरे भी नहीं हुए हैं कि छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी सरकार के परफार्मेंस को लेकर सवालिया निशान उठने लगे हैं. जनता के बीच असंतोष की लहर है ही, विपक्षी कांग्रेस भी लगातार हमलावर बनी हुई है. दूसरी ओर सत्तासीन भाजपा के अंदरखाने में भी कुछ खास शुभ लक्षण दिखाई नहीं देते. सरकार बनने के बाद जिस तरीके से बलौदाबाजार में सतनामी समाज का जंगी विरोध प्रदर्शन हुआ और कलेक्ट्रेट से लेकर एसपी कार्यालय तक उपद्रव, हिंसा और पत्थरबाजी की घटना हुई उससे तो स्पष्ट हो गया कि कानून व्यवस्था किस स्थिति से गुजर रही है. और तो और बलौदाबाजार में जम्मू कश्मीर की तरह पत्थरबाजी, गाड़ियों में तोड़फोड़ और आगजनी की घटना ने छत्तीसगढ़ को हिला कर रख दिया. छत्तीसगढ़ की तासीर में इस प्रकार की घटनाएं राजनैतिक लोगों ने और प्रशासन ने किस तरह बर्दाश्त कर लिया यह सोचकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. यह घटना हृदय विदारक तो है ही उससे बड़ी दिलदहलाने वाली बात प्रशासन की नाकामी है जिसका ठीकरा विपक्ष के लोग भाजपा की सरकार पर फोड़ते हैं तो क्या गलत है?
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से लेकर अन्य विपक्षी दल के नेताओं ने शुरू से ही सरकार को चेताया लेकिन देखिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लेकर गौठान, तेंदूपत्ता, आदिवासी कल्याण, शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में आज राज्य की क्या स्थिति है? पूर्ववर्ती भूपेश सरकार की अनेक जनकल्याणकरी योजनाओं पर पलीता लगा दिया गया. अनेकों योजनाएं बंद कर दी गई जबकि उन योजनाओं से आम जनता लाभान्वित हो रही थी लेकिन अब है कि राज्य सरकार किसके निर्देश पर चल रही है पता ही नहीं चलता? लोग सवाल खड़ा करते हैं कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का नियंत्रण सरकार पर है भी या नहीं? क्योंकि बार-बार देखने को मिला है कि उनकी सरलता और सहजता को गलत तरीके से लेकर सत्ता के गलियारे में घूमने वाले लोग सरकार को बदनाम करने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ते. जबकि यह तथ्यात्मक सच्चाई है कि विष्णुदेव साय एक सुलझे हुए राजनेता है उसके बाद भी उनकी छवि का इस्तेमाल भाजपा के लोग गलत रूप से करते है और संदेश उल्टा चला जाता है.
जनता द्वारा यह सवाल उठना कहां गलत है कि जिन अपेक्षाओं को लेकर उसने भाजपा को बहुमत देकर सरकार की बागडोर सौंपी थी, उन अपेक्षाओं पर वह खरी क्यों नहीं उतर रही है? यद्यपि किसी भी सरकार की उपलब्धियों और कार्यों के आंकलन हेतु सात-आठ माह का समय बहुत नही है लेकिन जनमानस में सरकार के बारे में जो धारणा बन रही है उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि यह सरकार की लोकप्रियता आगे नहीं बढ़ पा रही है. यहां तक कि स्वयं भाजपा के कार्यकर्ता तक संतुष्ट दिखाई नहीं पड़ते हैं. सत्ता से लेकर संगठन तक भ्रम की स्थिति है. कुछ नये नवेले विधायकों ने तो भाजपा संगठन के समानांतर और पार्टी की रीति-नीति के विपरीत स्वयं का संगठन खड़ा कर लिया, इनके तामझाम और खर्चों को देखकर न केवल आम आदमी बल्कि पार्टी के कार्यकर्ता भी हैरान हैं.
सब जानते हैं और भाजपा के लोग भी कहते नहीं थकते कि भाजपा शुचिता की राजनीति करती है लेकिन क्या छत्तीसगढ़ के मामले में यह सच है? पूर्ववर्ती सरकार में महादेव सट्टा का हल्ला मचाने वाली भाजपा अब क्या कहेगी जबकि महादेव सट्टा अभी धड़ल्ले के साथ जारी है? कानून व्यवस्था के मामलों में भी कोई परिवर्तन नहीं आया है, सरकारी दफतरों में भर्राशाही और लेनदेन यथावत है. स्थिति इतनी बदतर है कि राशन कार्ड बनवाने के लिए हितग्राही को मुख्यमंत्री निवास तक जाना पड़ता है. यदि ऐसे सामान्य कार्य के लिए हितग्राही को मुख्यमंत्री के पास जाना पड़े तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि स्थानीय पार्षद, विधायक, स्थानीय संगठन के पदाधिकारी और संबंधित कार्यों के लिए नियुक्त शासकीय अधिकारी क्या कर रहें हैं?
छत्तीसगढ़ प्रदेश में शराब बंदी को लेकर पिछली सरकार को खूब कोसा गया और कोसने वाले और कोई नहीं बल्कि भाजपा के लोग ही थे लेकिन अब तो सरकार भाजपा की है तब शराब की क्या स्थिति है? कांग्रेस और अन्य दलों के लोग तो स्पष्ट आरोप लगाते है कि सरकार के संरक्षण में ही अवैध शराब का कारोबार फल-फूल रहा है. यहां तक कि मंत्री, विधायकों के यहां इसके लिए ठेकेदार दस्तक देते दिखाई दे जाते हैं. आये दिन आपराधिक घटनाएं, लूटपाट, चाकूबाजी,गोलीबारी, हत्या और बलात्कार की घटनाओं से जनता में बेचैनी है. इसके साथ ही खुदरा वस्तुओं की बढ़ती कीमतें मंहगे होते खानपान के अनाज, महंगी सब्जियां और इस बीच बिजली के दामों में वृद्धि आम आदमी के लिए दूबर के दूअषाढ़ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है.
प्रदेश की भाजपा सरकार ने चुनावी घोषण पत्र के अनुरूप महतारी वंदन योजना के तहत करीब 70 लाख महिलाओं को प्रतिमाह एक हजार रूपया दिये जाने की घोषणा पर अमल जरूर किया है लेकिन देखें तो उसमें कितनी शिकायतें सामने आ रही हैं. दस्तावेज प्रमाणीकरण के नाम पर छत्तीसगढ़ी महिलाओं को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है वे बेचारी किस बैंक के दरवाजे जाएं? किसानों को भी पिछले बकाया दो वर्षों के बोनस राशि भुगतान के साथ ही धान खरीदी और उचित मूल्य के भुगतान के नाम पर छला गया है यह चर्चा का विषय है. सार्वजनिक राशन वितरण प्रणाली में बदस्तूर घोटाला और हेराफेरी जारी है जो बढ़ती महंगाई और बिगड़ती कानून व्यवस्था के बीच जनमानस में सरकार की लोकप्रिय छवि को धूमिल कर रही है.
नई सरकार की कार्यप्रणाली और कैबिनेट में आ रहे निर्णयों और विधानसभा में परफार्मेंस देखा जाए तो स्पष्ट कहा जा सकता है कि सरकार और संगठन के बीच कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ तो है. एक तरफ वरिष्ठ भाजपा नेताओं की लॉबी खामोश बैठी है तो दूसरी तरफ नये चुनकर आए नेता गलबहिईयां करके अपनी चलाने की रौ में बहे जाते हैं! सवाल यह है कि इन्हें गाइडलाइन दे कौन रहा है? वरिष्ठ मंत्री रहे अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, धरमलाल कौशिक, राजेश मूणत जैसे लीडरों के अनुभव का लाभ न लेता दिखाई देता है तो दूसरी ओर नये लोग मनमानियां करते दिखते हैं इससे कहीं न कहीं सरकार पर विपरीत असर दिखाई पड़ता दिख रहा है. राजनैतिक पंडित तो यहां तक कहते हैं कि यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिर्वतन की बात उठने लगेगी. वैसे भी राज्य में संसाधनों की बहुतायत श्रमबल और पूंजीगत निवेश की असीम संभावनाएं इस बात को बल देती हैं कि यदि सटीक और दूरदर्शी नेतृत्व मिले तो छत्तीसगढ़ देश का नंबर वन राज्य बन सकता है. इस दिशा में केंद्रीय मंत्री रहते पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने संसद में बड़ी अच्छी बात कही थी. उनका फोकस सदैव छत्तीसगढ़ को देश में सिरमौर बनाने का रहा केंद्रीय इस्पात एवं खान मंत्री के रूप में उन्होंने भिलाई इस्पात संयंत्र से लेकर समूचे छत्तीसगढ़ में औद्योगिक विकास का एक नया खाका खींचा था वहीं रायपुर के बड़े लंबे समय तक विधायक रहे बृजमोहन अग्रवाल अब संसद पहुंच चुके हैं. उनके पास अनुभव की लंबी सीमा है वे आदिवासी अंचल से लेकर शहरी और ग्रामीण इलाकों में अपनी पैठ रखते हैं ऐसे नेताओं को इग्नोर करने के पीछे आखिर कारण क्या है? इसी तरह के और नेता साइड लाईन या नेपथ्य में बैठे हुए है. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक भी उन नेताओं में है जो पार्टी को बहुत कुछ दे सकते है लेकिन एक तरह से वे भी हाशिये पर हैं. पहली बार विधायक और मंत्री बने नेताओं से प्रशासनिक अधिकारियों की बात तो दूर भाजपा संगठन और कार्यकर्ताओं से भी पटरी नहीं बैठ रही है. शायद यही कारण है कि विष्णुदेव सरकार जनअपेक्षाओं के अनुरूप अपनी छवि बनाने में विफल होते दिखाई पड़ रही है.
प्रदेश में एक बड़ी समस्या नक्सलवाद भी है. यद्यपि इस दौरान काफी संख्या में दूर्दांत नक्सली मारे गये है अथवा गिरफ्तार हुए है. लेकिन यह भी सच है कि नक्सली हमले भी कम नहीं हो रहे है. नक्सल क्षेत्रों में विकास कार्य अभी भी बंद पड़े है और वनवासी अंचलों में नक्सल आतंक बरकरार है जिसे समाप्त करना एक बड़ी चुनौती है.
आने वाले दो माह बाद प्रदेश में नगरीय निकाय के चुनाव संम्पन्न होने हैं. यह चुनाव भी एक तरह से विष्णुदेव सरकार की अग्नि परीक्षा होगी. इस दौरान सत्ता और संगठन में तालमेल और प्रतीक्षारत वरिष्ठ नेताओं को संतुष्ट करने के साथ ही निचले स्तर के संगठन और कार्यकर्ताओं में एकजुटता बनाये रखना बड़ी चुनौती है. प्रदेश की सर्वाधिक लोकप्रिय महतारी वंदन योजना में शेष बचे और नव विवाहित महिलाओं को योजना का लाभ दिया जाना आवश्यक है, लेकिन आवेदन से संबधित पोर्टल बंद होने से आवेदकों को निराश होना पड़ रहा है. यदि इस संबंध में शीघ्र ही वंचित महिलाओं को योजना का लाभ नहीं दिया गया तो निश्चित ही स्थानीय चुनाव में इसका विपरीत असर पड़ेगा. नगरीय निकायों में जर्जर सफाई व्यवस्था पेयजल की अनियमित जलापूर्ति तथा निर्माण कार्यों में भारी भ्रष्टाचार के साथ ही निजी एवं सार्वजनिक सामाजिक भवनों के नियमितीकरण हेतु पूरे प्रदेश में हजारों आवेदन लंबित पड़े हैं, यदि इस दिशा में सरकार द्वारा सकारात्मक कार्यवाही नहीं की गई तो इसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ सकता है.
विष्णुदेव साय सरकार की नाकामियों को लेकर कांग्रेस फ्रंट फुट पर है और लगातार हमलावर बनी हुई है इसके साथ ही यहां आम आदमी पार्टी ने भी अपनी गहरी पैठ बनाई है जो आने वाले दिनों के लिए भाजपा के दृष्टि से निश्चित ही विपरीत परिस्थतियां पैदा करेगा. राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिर्वतन को लेकर दिल्ली में लॉबिंग चलेगी तब सवाल उठता है कि छत्तीसगढ़ की कमान संभालेगा कौन?
रमेश बैस पर सबकी निगाहें
इस मामले में भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश बैस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. वे न केवल अनुभवी नेता हैं बल्कि छत्तीसगढ़ के कद्दावर और हाजिर जवाब सख्शियत के रुप में उनकी पूरे देश में पहचान है. विद्याचरण शुक्ल जैसे नेता को पराजित कर और अनेकों बार लोकसभा और विधानसभा में भारी बहुमत से जीत कर जाने वाले रमेश बैस के पास प्रशासनिक अनुभव भी है. वे राज्यपाल के रूप में बहुत अच्छी छवि पेश कर चुके हैं. आरएसएस में भी उनकी लोकप्रियता छिपी नहीं है. वे पिछड़े वर्ग के ऐसे नेता के रूप में प्रसिद्ध है जिन्होंने अपने कार्यशैली से लोगों को प्रभावित किया है. कयास लगाये जा रहे हैं कि नेतृत्व परिवर्तन हुआ तो रमेश बैस तुरूप के ईक्का साबित हो सकते हैं हालांकि उन्होंने स्वंय अभी तक कुछ नहीं कहा है लेकिन दिल्ली दरबार में उनकी पकड़ कहती है कि उनपर भरोसा किया जा सकता है. दूसरी ओर बैस के दुश्मनों की भी कोई कमी नहीं है जो प्रचारित करते हैं कि वे अकर्मण्य हैं. गाहे-बगाहे उनकी शिकायतें भी होती रही हैं. इसके बावजूद रमेश बैस छत्तीसगढ़ के एक कद्दावर और बड़े नेता की छवि रखते है जिन पर भाजपा अपना दांव खेल सकती हैं.
बृजमोहन अग्रवाल
रायपुर लोकसभा क्षेत्र से काफी बड़े मतों से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचने वाले बृजमोहन अग्रवाल के बारे में सभी को पता है कि उनकी कोई सानी नहीं है. वे भाजपा के कई बार तारणहार बने हैं. छत्तीसगढ़ की विधानसभा में लगातार चुनकर आने वाले बृजमोहन अग्रवाल के पास भी व्यापक अनुभव है. वे राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के आंखों के तारे हैं. इसके बावजूद उन्हें उसप्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई जिसके कि वे हकदार हैं. अनेकों बार उन्हीं के संगठन के लोगों ने उन्हें लेकर बवेला मचाया है. अनेक बार तो दिल्ली के नेताओं के समक्ष भी उनकी फजीहत की कोशिश की गई लेकिन यह उनका अनुभव और बड़प्पन ही था कि विरोधी हर बार विफल रहे. यह बृजमोहन अग्रवाल की सरलता और सहजता ही है कि वर्तमान राज्य सरकार में बहुत महत्वपूर्ण ओहदा न मिलने पर भी खामोश रहे और कैबिनेट मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं देते रहे. सवर्ण समुदाय को बिलाँग करने वाले बृजमोहन अग्रवाल वणिक होने के नाते प्रदेश के व्यापार, व्यवसाय और आर्थिक नजरिये से भी बड़े महत्वपूर्ण लीडर हैं इस लिहाज से देखा जाए तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनका बड़ा उपयोग कर सकता है. छत्तीसगढ़ में उनकी लोकप्रियता का पैमाना काफी उपर है. हालांकि उनके भी विरोधियों की कोई कमी नहीं है जो दिल्ली जाकर कान भरते रहते है लेकिन मोहन भैय्या के नाम से मशहूर बृजमोहन अग्रवाल की अपनी राजनैतिक विरासत है. आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा उनको किस तरह का सम्मान देती है. क्योंकि छत्तीसगढ़ को भी उनसे बहुत आस है.