
जिनके लोकधुनों में बसती है छत्तीसगढ़ की आत्मा
68 वें जन्म दिवस पर विशेष
प्रो. के मुरारी दास साहित्यकार-
भिलाई- छत्तीसगढ़ी लोक सांस्कृतिक क्रांति के पुरोधा दाऊ रामचंद्र देशमुख की युगांतरकारी प्रस्तुति कारी द्विवेदी युगीन मूर्धन्य साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की कृति छत्तीसगढ़ की आत्मा पर आधारित है. इस छत्तीसगढ़ की आत्मा को लोक कला साहित्य व संस्कृति के लिए समर्पित व्यक्तित्व आत्माराम कोशा अमात्य के लोक धुनों में व्यंजित होता है कहा जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी. क्योंकि उनके द्वारा सृजित अनेक लोक धुनों में छत्तीसगढ़ की आत्मा निवास करती है. उक्त बात कोशा के संगीत निर्देशन में ढोलक, तबले पर अपना जौहर दिखाने वाले सुप्रसिद्ध ढोलक वादक स्वर्गीय रवि रंगारी द्वारा कही गई है.
आज हम आपको एक ऐसे ही सांस्कृतिक विरासत के लोक धरोहर से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिनकी लोकधुनों में समसरसता के साथ अपनापन झलकता है, छत्तीसगढ़ की आत्मा निवास करती है. कोशा के संगीत से सजे तथा प्रायः आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले सुप्रसिद्ध गीत – तोला फूंदरा मगाएंव दरोगा, डोंगा अरझगे मंझधार म,चंदा के टिकुली, बाजत हे तोरे कंगना, सुख नदियां तीर तोर शहर हे, आती- जाती गोरी, मारे नजरिया, विधाता तोर कौन गति, आदि सैकड़ों गीत इसके उदाहरण हैं.
बचपने से ही कलात्मक रुझान
22 जुलाई सन 1957 वह दिन रहा जब संस्कारधानी नगरी राजनांदगांव के एक मुहल्ले लखोली नाका में संभ्रांत नागरिक हीरामन कोशा के घर आत्माराम कोशा का जन्म हुआ. बचपन से ही कलात्मक रुझान वाले कोशा यहां के दानवीर राजाओं के नाम पर स्थापित महंत सर्वेश्वरदास हाई स्कूल से मैट्रिक तक की शिक्षा ग्रहण की तथा दिग्विजय कॉलेज से साहित्य से एम.ए. कर अपने कला जीवन की शुरूआत चित्रकारी व देवी प्रतिमाओं का निर्माण कर किया. इनके लगाव लोक कला व संगीत के प्रति भी रहा. सन् 1973- 74 मे इनका संपर्क नाचा के पुरोधा दाऊ दुलार सिंह (मंदराजी) के साथ हुआ. दाऊ मंदराजी व उनके सुपुत्र भग्गु दाऊ के साथ उन्होंने ‘‘लखोली- रवेली नाच पार्टी’’ में ब्येंजो वादन के साथ लोककला यात्रा की शुरुआत की. इसके बाद इसकी कला दक्षता की प्रसिद्धि बढ़ते ही अंचल की सुप्रसिद्ध नाचा पार्टी टेडेसरा में चर्चित नाटक ‘‘चोर चरणदास’’ (नाचा वर्जन) में संगीत के लिए ले जाया गया जहां वे खासकर नेपथ्य संगीत के द्वारा अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया व सिद्ध हस्त संगीत संयोजक के रूप में अपनी पहचान बनाई.
लोककला यात्रा का दूसरा पड़ाव
लोककला यात्रा का इनका अगला पड़ाव सन 1982-83 में आया जब वे सुप्रसिद्ध संगीत निर्देशक खुमान लाल साव को अपनी पार्टी में हारमोनियम बजाने के लिए ले गए. वहां इनकी कला दक्षता को देखते हुए खुमान साव ने कोशा को अपने साथ चंदैनी गोंदा से जोड़ लिया. जहां कोशा ने सन् 1992 तक खुमान साव के साथ चंदैनी गोंदा की निस्वार्थ भाव से सेवा दी. इस दौरान कला रुझान वाले व वर्तमान डोंगरगांव विधायक दलेश्वर साहू ने छत्तीसगढ़ी वीडियों फिल्म निर्माण की चढ़ी तो दहेज दानव नामक इस छत्तीसगढ़ी फिल्म का संगीत निर्देशक का भार कोशा को सौंपा गया. खुमान साव को यह बात नागवार गुजरी जो इनके बीच मन-मुटाव का कारण बना. इसके बाद कोशा ने साव का साथ छोड़कर चंदैनी गोंदा को पूरी तरह अलविदा कह दिया.
आत्माराम कोशा के संगीत निर्देशन में सजी उक्त फिल्म में पंडवानी गायक झाडूराम देवांगन सुप्रसिद्ध नाचा कलाकार मदन निषाद, बसंत चौधरी, महेश ठाकुर, लोक गायिका जयंती यादव व छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध ढोलक वादक मदन शर्मा आदि प्रसिद्ध कलाकारों ने काम किया था. इसी फिल्म से कोशा ने छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गायक महादेव को प्रथम ब्रेक दिया था. गायन के क्षेत्र में उभरने की यही से ही महादेव हिरवानी की शुरूआत मानी जाती है. इस फिल्म में महादेव व जयंती यादव द्वारा गाए गए गीत – काली तै आबे, कुआं पार में,, चंदा के टिकुली,, करम लिखे परदेश आदि गीतकाफी लोक प्रिय हुए.
रचनात्मक विधा की ओर लगाव
श्री कोशा का अपना रचनात्मक कार्य जारी रहा एवं जागरूकता पूर्ण कार्याे के चलते अपने साथी चंद्रभूषण बच्चन, सतीश भट्टड़, गिरीश टक्कर आदि के साथ पत्र लेखक मंच का गठन कर जिले भर में साहित्यिक गतिविधियां चलाई. इस बीच सन 1995 में अपने मित्र सतीश भट्टड के साथ राष्ट्रीय एकता अखंडता एवं सद्भावना का संदेश लेकर दिल्ली तक की 1700 किलोमीटर तक क्रास हेड मोटरसाइकिल से यात्रा की. साहित्यिक गतिविधि के दौर में श्री कोशा का दूरदर्शन एवं आकाशवाणी केंद्रों से कविता पाठ का प्रसारण नियमित होते रहा. इसके साथ – साथ अपने संगीत निर्देशन में गायक महादेव हिरवानी, गायिका माया खापर्डे, मोहरी वादक पंचराम देवदास ढोलक वादक,भागवत सिन्हा दिनेश साहू आदि के साथ आकाशवाणी में लोक रंजनी के अनुबंधित कलाकार के रूप में संगीतकारी करते रहे. श्री कोशा अपनी साहित्यिक प्रतिभा के अनुकूल अलग -अलग स्थानों में होने वाले विभिन्न साहित्यिक महोत्सवो वह कवि सम्मेलनों में शिरकत करते रहते. इस दौरान वे वरिष्ठ कवि/ साहित्यकार दानेश्वर शर्मा, नारायण लाल परमार, लक्ष्मण मस्तुरिया, पवन दीवान, मुकुंद कौशल, डॉ. सुरेंद्र दुबे, रामेश्वर वैष्णव, संतोष झांझी, सुशील यदु, बिशंभर यादव (मरहा) पीसी लाल यादव, जैसे अनेक गीतकार व कवि/ साहित्यकारों के साथ मंच साझा की. साथ ही अपने उत्कृष्ट लेखन शैली सेअर्थाभाव से जूझ रहे लोक कलाकारों को शासन की योजनाओं के तहत उन्हें आर्थिक लाभ पहुंचाया है.
बता दें कि छत्तीसगढ़ शासन से छत्तीसगढ़ लोक कला के लिए अब तक जितने भी मंदराजी सम्मान प्राप्त हुए हैं उनमें से प्रथम मंदराजी सम्मान प्राप्त सुप्रसिद्ध पंडवानी गायन झाड़ू राम देवांगन से लेकर नाचा कलाकार मदन निषाद तत्पश्चात पद्मश्री नाचा कलाकार गोविंद राम निर्मलकर, सुप्रसिद्ध नाचा कलाकार व लोक गायिका पूनम विराट व जयंती यादव को मंदराजी सम्मान दिलवाने का कार्य असत्माराम कोशा ने अपने लेखन धर्मिता के माध्यम से किया. यही नहीं ज्यादातर पढ़ें लिखे नहीं रहने वाले व नाचा में अपना जीवन खपा देने वाले बुजुर्ग लोक कलाकारों को शासन के माध्यम से पेंशन दिलवाने का मार्ग प्रशस्त किया है.
मंदराजी महोत्सव का आयोजन
श्री कोशा जहां लोक कला संगीत के क्षेत्र में दाऊ मंदराजी को अपना शुरूआती कला गुरु मानते हैं वहीं साहित्य के क्षेत्र में साहित्य मनीषी पदुमलाल पन्नालाल बख्शी व हरि ठाकुर जी को अपना आदर्श मानते हैं. श्री कोशा अपने शुरुआती कला गुरु दाऊ मंदराजी द्वारा सुस्थापित सांगीतिक बैठकी का कई सालों तक आयोजन करते रहे वहीं अपने इन्हीं लोक कलाकारों को साथ में दाऊ मंदराजी को नाचा कला व लोक सांस्कृतिक मंचों से जुड़े बड़ी संख्या में लोक कलाकार व कवि/ साहित्यकार आदि अपनी कला का प्रदर्शन कर दाऊ जी को कृतज्ञांजलि अर्पित करने आते हैं.
मंदराजी बायोपिक फिल्म
श्री कोशा दाऊ मंदराजी की जीवनी पर बनी बायोपिक फिल्म में टाइटल गीत ,”बबा मंदराजी”,,व नचौड़ी गीत- “छत्तीसगढ़िया बोली तोर हावय बड़े मिठास”,लिखी है, जो काफी लोकप्रिय हुआ. यही नहीं श्री कोशा अपने संगीत निर्देशन में सजे आडियो कैसेट भी निकाले हैं जिसे खांसी प्रसिद्धि मिली. महादेव हिरवानी व पूनम विराट के सुरों से सजे “फूंदरा” नामक आडियो कैसेट का विमोचन तत्कालीन सासंद रमेश बैस द्वारा रायपुर में किया गया था. श्री कोशा पत्रकारिता के क्षेत्र में भी काम करते रहे. वे कई काव्य संग्रहों का संपादन व लंबे समय तक “जगवारी” नामक छत्तीसगढ़ी अखबार का प्रकाशन किया. जिसे बाद में अर्थाभाव के करण बंद कर देनी पड़ी.
कला व साहित्य का सफर
श्री कोशा द्वारा लिखे लेख,आलेख, कविता, कहानी, समीक्षा, साक्षात्कार, धर्म, अध्यात्म व तीज त्योहारों से संबंधित लेख प्रायः प्रतिष्ठित अखबारों में छपती रही. छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति व छत्तीसगढ़ साहित्य सृजन समिति,के अध्यक्ष तथा छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग (छ.ग. शासन) के जिला समन्वयक श्री कोशा को सर्वप्रथम सन 2005 में दीपाक्षर साहित्य समिति – दुर्ग द्वारा लोक कला के क्षेत्र में मदन निषाद सम्मान प्रदान किया गया तत्पश्चात सम्मान व पुरस्कार की एक श्रृंखला ही चल पड़ी. तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमनसिंह के हाथों सेवा भावी संस्था उदयाचल द्वारा साहित्य के क्षेत्र में नंदू लाल चोटिया सम्मान, रायपुर के साहित्यिक आयोजन में पं. रविशंकर वि. वि. के कुलपति के हाथों सुप्रसिद्ध लोक गायक मिथलेश साहू सम्मान के अलावा कला साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न संस्था संगठनों द्वारा लोकधुन सम्मान ,मितान सम्मान, साकेत सम्मान, दलित चेतना सम्मान,खिदमत एडवार्ड, स्वदेशी मेला सम्मान, साधना कला सम्मान व लायंस क्लब ,जन हित संघर्ष समिति राजनांदगांव सहित नगर निगम द्वारा पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी सम्मान से नवाजा गया. इसके अलावा कई सम्मान व पुरस्कार श्री कोशा को प्राप्त हुए हैं. इसके बाद भी वे अपने लोक कलाकारों व साहित्यिक साथियों के साथ लोक कला व साहित्य के क्षेत्र में आज भी अनवरत रूप से कार्य कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ी भाषा, छत्तीसगढ़ी लोक कला/ साहित्य व छत्तीसगढ़ी संस्कृति के लिए प्राण प्रण से समर्पित श्री कोशा जी के अवतरण दिवस पर हम समस्त कला / साहित्य धर्मियों की ओर से उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं, उनकी कला यात्रा इसी तरह अबाध रुप से जारी रहे इन्ही मंगल कामनाओं के साथ उन्हें उनके 68 वें जन्मदिन की आत्मीय बधाई.