
कविता-
रे मन कहीं निकल
अभिषाप ये जीवन का
कुछ अच्छा और सच्चा कर
जीत ले दिल दुनिया का…..
कुछ पा कर खोना है
कुछ खोकर पाना है
जीवन की रीत यही
चल दुनिया सजाना है……
क्यों बेटियां सुलगती है
प्रेमी फंदे में झूलते हैं
अवसाद ग्रस्त बच्चें
क्यों समाज सुधारक नहीं……
शिक्षा क्यों गुम यहाँ
मौसम उदासी है
जहर हवा में घोलता
क्यों नर संहारी है……
असत्य का बोलबाला
क्यों सत्य ही झूकती है
लौ की प्रकाश भी क्यों डोलती, बुझती है………
त्यागों अब सहनशीलता
मत करो किसी की खुमारी
भविष्य को उज्जवल बनाने
करो जी जान तैयारी।।
चन्द्रकला तारम-