
भिलाई- मायस्थीनिया ग्रेविस का एक मामला हाल ही में हाइटेक सुपर स्पेशालिटी हॉस्पिटल में सामने आया है. प्रत्येक दस-हजार की आबादी में यह एक से दो लोगों को हो सकता है. आरंभिक लक्षणों से इस रोग को पकड़ पाना बेहद मुश्किल है. 36 वर्षीय यह मरीज पिछले तीन-चार महीने से परेशान थी. उसने अलग-अलग विशेषज्ञों को दिखाया पर रोग पकड़ में नहीं आया. जब वह हाइटेक पहुंची तो उसकी हालत गंभीर हो चुकी थी.
वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ नचिकेत दीक्षित ने बताया कि 36 वर्षीय इस रोगी के लक्षणों को देखकर मायस्थीनिया ग्रेविस का संदेह हुआ. आमतौर पर यह रोग महिलाओं को 20 से 40 साल के बीच और पुरुषों को 50 से 80 साल के बीच प्रभावित करता है. यह रोग एक ऑटोइम्यून विकार है जो तंत्रिकाओं और मांसपेशियों के बीच संप्रेषण को बाधित कर देता है, जिसके कारण मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है या उनपर नियंत्रण खत्म हो जाता है. मरीज काफी समय से भोजन करने में कठिनाई महसूस कर रही थी, अकसर कुछ भी निगलना कठिन हो जाता था. कभी-कभी सांस लेना भी मुश्किल हो जाता था. हाथ पैरों को हिलाने डुलाने में भी दिक्कत होने लगी थी फिर आवाज भी बंद हो गई. जब उसे अस्पताल लाया गया तो उसकी हालत काफी नाजुक हो चुकी थी.
रोगी के परिजनों ने बताया कि लगभग 4 माह पहले पायरिया के लिए उसकी सर्जरी हुई थी. पहले यही मान लिया गया था कि गले में होने वाली दिक्कत सर्जरी का साइड इफेक्ट है. पर जब स्थिति बिगड़ती गई तो ईएनटी से लेकर गैस्ट्रो तक कई डाक्टरों को उन्होंने दिखाया. एंडोस्कोपी भी हुई पर रोग पकड़ में नहीं आया. अंत में डाक्टरों ने न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाने की सलाह दी. तब तक उसकी हालत काफी बिगड़ चुकी थी.
डॉ दीक्षित ने बताया कि मरीज के लक्षण मायस्थीनिया ग्रेविस से मिलते जुलते थे. उसे तत्काल एनआईवी सपोर्ट दिया गया और जांचें शुरू की गईं. मायस्थीनिया को स्मरण में रखते हुए उसका इलाज शुरू किया गया जिसके आशाजनक परिणाम भी निकले. सांस लेने की तकलीफ कुछ कम हुई और उसने तरल भोजन लेना शुरू कर दिया. तब तक मरीज के ब्लड टेस्ट रिपोर्ट भी आ गए. एसीटाइलकोलीन रिसेप्टर एंटीबॉडी (Acetylcholine receptor antibody) नेगेटिव पाया गया पर एंटी-मस्क एंटीबॉडी (anti-MuSK antibody) पॉजीटिव आया. ये दोनों ही एंटीबॉडी मायस्थीनिया के मरीजों के रक्त में पाए जाते हैं. इसके बाद मरीज के प्लाज्माफेरेसिस का निर्णय लिया गया.
प्लाज्माफेरेसिस के तीन साइकल के बाद ही उसकी स्थिति में काफी सुधार आ गया. पांचवे साइकल के बाद रोगी की हालत काफी हद तक सामान्य हो चुकी है. एनआईवी और आक्सीजन हटा लिया गया है. साथ ही अब वह ठोस आहार ग्रहण कर पा रही है. इलाज शुरू करने के 10 दिन के भीतर ही हाथ पैरों की ताकत भी काफी हद तक लौट आई है.
डॉ दीक्षित ने बताया कि रोगी की उम्र और उसके लक्षणों ने ही उनका ध्यान मायस्थीनिया की तरफ आकर्षित किया जो जांच में सही सिद्ध हुआ. इस रोग का कोई स्थायी समाधान नहीं है. रिसेप्टर्स को ब्लाक करने वाले एंटीबॉडीज को निकालना ही एकमात्र उपाय है जिसके लिए प्लाज्माफेरेसिस की मदद ली जाती है. कुछ दवाओं से मांसपेशियों की ताकत को बढ़ाया जा सकता है और अन्य विकारों की तीव्रता को कम किया जा सकता है और रोग को टाला जा सकता है.