शिक्षा के बढ़ते खर्च से जनता को राहत दिलाने के लिए सरकार ने अंग्रेजी माध्यम के स्कूल और कालेज खोलने का श्रीगणेश किया. निश्चित तौर पर चार-साढ़े चार साल के छोटे से कार्यकाल में इन योजनाओं का अपेक्षित लाभ दिखाई नहीं दे सकता, पर प्रारंभिक रुझान बताते हैं, कि राज्य तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हो रहा है.
पुरखों के सपनों को पूरा करना किसी भी पीढ़ी को आह्लादित कर सकती है. इस कसौटी पर माटीपुत्र भूपेश बघेल खरा उतरते दिखाई देते हैं. उनके कार्यकाल में देश ने कृषि से लेकर ग्रामीण समृद्धि के एक ऐसे मॉडल को उभरते देखा, जो प्रकृति और पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के साथ विकास की ओर जाता है. छत्तीसगढ़ के तीसरे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का पहला कार्यकाल अब पूरा होने जा रहा है. वे राज्य के पहले निर्वाचित कांग्रेसी मुख्यमंत्री हैं. पृथक राज्य बनने के बाद पहले मुख्यमंत्री मनोनीत हुए थे. इसके बाद से सत्ता लगातार भाजपा के पास रही. 2018 के विधानसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस ने भूपेश बघेल के नेतृत्व में जबरदस्त बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की. इसके साथ ही पुरखों के सपनों के छत्तीसगढ़ का निर्माण प्रारंभ हो गया. छत्तीसगढ़ का प्रभु श्रीराम से गहरा रिश्ता है. दक्षिण कोसल उनका ननिहाल तो है ही, उनके वनवास का एक बड़ा हिस्सा इसी अंचल में बीता जिसकी छाप जगह-जगह विद्यमान है. भूपेश सरकार ने माता कौशल्या मंदिर की स्थापना के साथ ही श्रीराम वनगमन परिपथ को सहेजने और पुनर्जीवित कर छत्तीसगढ़ को वैश्विक धार्मिक पर्यटन के नक्शे पर स्थापित किया. छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है. नदी-नालों से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ भी बारिश और सूखे के चक्रव्यूह में फँस गया था.
नरवा-गरुवा-घुरवा-बारी योजना से इसका हल ढूँढने की कोशिश भी इस सरकार ने शुरू की. योजना का एक पहलू गोधन की सुरक्षा करते हुए कम्पोस्ट खाद के रास्ते आर्गेनिक उत्पादों के बाजार का दोहन करना भी है. वनोपजों और औषधीय पादपों के प्रसंस्करण और विपणन की व्यवस्था भी राज्य में शुरू हो गई. महिला स्व-सहायता समूहों के उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने के लिए भी योजनाएँ बनीं. इन योजनाओं का अंतिम लक्ष्य गाँवों में रोजगार का सृजन कर उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाना और पलायन रोककर उनके साथ होने वाले अपराध की आशंका को कम करना भी था. इससे शहरों पर भी दबाव कम हुआ और लोग गाँव और खेतों की तरफ लौटने लगे. यही राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी सपना था. डॉ. खूबचंद बघेल की पुण्यभूमि पर स्वास्थ्य सेवाओं को जन-जन तक पहुंचाने के प्रयास प्रारंभ किये गये. ग्रामीण खान-पान और खेलकूद को भी आगे बढ़ाने के प्रयास किये गये. सरकार मानती है, कि समृद्धि और खुशहाली अकेले धन से नहीं आ सकती. इसके लिए लोक-परम्पराओं और लोकसंस्कृति की समृद्ध विरासत को पुनर्जीवित करना भी जरूरी है. सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर काफी गिर चुका था. इसे ठीक करने के लिए सरकार युद्धस्तर पर स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों की स्थापना कर रही है. इससे महँगे निजी स्कूलों पर निर्भरता कम हो गई.
सरकारी क्षेत्र में अंग्रेजी माध्यम के कालेज खोलने की भी शुरुआत की गई है. निश्चित तौर पर चार-साढ़े चार साल के छोटे से कार्यकाल में इन योजनाओं का अपेक्षित लाभ दिखाई नहीं दे सकता, पर प्रारंभिक रुझान आशान्वित करते हैं. छोटे से कालखंड में सिर्फ एक चौथाई गौठान ही रूरल इंडस्ट्रियल पार्क के रूप में सफल हो पाए हैं पर प्रयास जारी हैं. धान का भारी भरकम समर्थन मूल्य न केवल लोगों को बाड़ियों की तरफ जाने से रोक रहा है, बल्कि बागवानी उत्पादों के प्रसंस्करण के क्षेत्र में निवेश को हतोत्साहित कर रहा है. इस क्षेत्र में संतुलन की जरूरत है. स्वास्थ्य एवं शिक्षा संस्थानों की स्थापना तो हो रही है, पर नज़र इनकी संख्या की बजाय गुणवत्ता पर हो तो नतीजे बेहतर आ सकते हैं. सभी क्षेत्रों में अभी बहुत परिश्रम की जरूरत है. संतोष इस बात का है, कि दिशा सही है. यही कारण है, कि स्वयं प्रधानमंत्री इस सरकार की योजनाओं और कार्यक्रमों की लगातार प्रशंसा करते रहे हैं. अन्य राज्यों के दल भी यहाँ के मॉडल का अवलोकन-अध्ययन करने के लिए आ रहे हैं. यह छत्तीसगढ़ राज्य के लिए गर्व की बात है. मात्र साढ़े चार साल के शासन में पुरखों का सपना साकार हो रहा है. अंधेरे को कोसने से बेहतर है एक दीप प्रज्जवलित करना.