
डाँ. प्रकाश पतंगीवार-
कोरबा जिले का एक प्रसिद्ध तीर्थ है माँ मड़वारानी. यह मंदिर कोरबा से 18 किलोमीटर पर है व चांपा से 16 किलोमीटर दूर बसा है. मड़वारानी का अपना अलग इतिहास है. बहुत सारी कहानियां है. माना जाता है कि जगत जननी अम्बे माता विवाह का मण्डप छोड़कर तेल-हल्दी लगे वेष में पहाड़ पर आकर निवास करने लगी, तब से पहाड़ों वाली मड़वारानी कहलाने लगी.
श्रद्वा व आस्था की प्रतीक
माँ मड़वारानी की महिमा अपरंपार है. जिले के मूल निवासी बड़ी श्रद्वा से देवी के चरणों में सिर झुकाते है. हजारों की संख्या में लोग आते है. उनकी मनोकामना पूरी होती है. बताते है कि माता स्वयं प्रकट होकर जनता को सुख-दुख बांटती है. अंचल में ऐसी भावना है कि मड़वारानी गांवों की रक्षा भी करती है.
कथा किंवदंतियां-: पुरानी बातों में राजा और रानी की गूढ़ और ज्वलंत कहानियां होती थी. मड़वारानी का पौराणिक इतिहास रहा है वह शिव भक्त थी. वह दिव्य भक्त आत्मा थी. वह विवाह के बंधन में कैसे पड़ती. अभिभावक जोर देने पर तुले थे. अंत में देवी ने फैसला लिया और रूठ गई. तेल-हल्दी चढ़ते समय मड़वारानी छोड़कर चली आई. जहां-जहां मड़वारानी रूकी, वहां-वहां उनके चरण चिन्ह दिखाई देने लगे. देवी के शरीर से हल्दी एक विशाल (बरपाली के पास) पत्थर पीला हो गया. दूसरी कथा है कि माँ मड़वारानी संस्कृति के माण्डवी देवी के नाम से भी जानी जाती है. एक चमत्कार भी देखा गया है. जब नवरात्रि आती है कि कलमी वृक्ष और उसकी पत्तियों में “जवा” उग आता है. एक सर्प वृक्ष के आसपास विचरण करता है.
पूजा–अर्चना:- देवी का मुख्य मंदिर पहाड़ की चोटी पर कलमी पेड़ के नीचे स्थित है कहा जाता है कि इस पेड़ के काटे जाने पर देवी साक्षात प्रकट हो गई और अपना शक्ति सामर्थ्य पांच पिंडियों में स्थापित कर दिया. इन्हीं पिंडियों की पूजा-अर्चना करने की परम्परा है. कहते है कि मड़वारानी के साथ चार और देवियाँ पहाड़ पर आई थी. इन्हें डेढ़हिन और सुहासिन कहा जाता है. इनका नाम है- भारती, मालती, शांति व आरती. इन पांचो की एक साथ पूजा अर्चना करने का रिवाज है. मड़वारानी को यदि माँ-“मांडवी” कहा जाय, तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी. माँ मांडवी भी तापसी जीवन के कारण प्रसिद्ध हुई. महाकाव्यों में उसे भी नारी का विशिष्ट दर्जा प्राप्त है.
पहाड़ी पर माँ मड़वारानी का मंदिर बना हुआ है. उड़ीसा के कारीगरों ने मंदिर का रूप निखारा है. परिसर में दुर्गा माता, हनुमान जी, शिव जी के साथ-साथ ईष्ट देवी-देवताओं की प्रतिमायें स्थापित है. ऊपर और नीचे दोनों मातायें आराध्य और पूजनीय है.
नवरात्रि के समय मड़वारानी में अपार भीड़ रहती है. ज्योति जलाये जाते है. माता के जसगीत गाये जाते है. भक्तगण माता को चुनरी भेंट देते है. मातारानी सबकी मनोकामना पूर्ण करती है. पुजारी आर्शीवाद प्रदान करता है. मंदिर परिसर की साफ-सफाई देखते बनती है. कूड़ादान रखा गया है. पेयजल की व्यवस्था भी उत्तम है. मंदिर समिति चहुओर निगरानी रखती है. बच्चों को लेकर वृद्धजनों तक के लिए मड़वारानी का रास्ता सुगम है. नवरात्रि पर यहां मेला भराता है.
पिकनिक स्पाट भी है यहां:-
मड़वारानी के दर्शन के बाद मनोरंजक स्थल व प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद भी उठाया जा सकता है. थिपा पानी, चुहरी, कोठी-खोला जैसे प्राकृतिक और मनोहारी स्थल सहज ही मनमोह लेते है. हसदेव तट, कुरिहां तट, झींका-तट के साथ खरखरी स्टाप डेम पर्यटकों का सर्वाधिक पसंदीदा पिकनिक स्पाट है.