
रामशरण-
आदिवासी गोंड़ समाज धमधागढ़ के केन्द्रीय अध्यक्ष एमडी ठाकुर का मानना है कि आरक्षण के मुद्दे पर प्रदेश सरकार की हार, लापरवाही की वजह से हुई है. यदि सरकार अच्छा वकील करती तो आरक्षण के मुद्दे पर हार नहीं होती. यह लाभ आदिवासी समाज को 2012 से मिलता आ रहा था. अब आदिवासी समाज स्वंय अपने हक की लड़ाई लड़ेगा. अच्छे से अच्छा वकील करेगा. इसके अलावा सड़क की लड़ाई भी लड़ी जाएगी तथा दबाव बनाया जाएगा.
श्री ठाकुर ने कहा कि आदिवासी समाज ने 2011 में आंदोलन किया था. इसके बाद उन्हें 32 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिला था. इसमें नियमित पदोन्नति, शैक्षणिक क्षेत्रों में 32 प्रतिशत आरक्षण मिला. आरक्षण को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई जहां सरकार केस हार गई. आरक्षण का प्रतिशत 32 से गिरकर 20 पर आ गया. यह वर्तमान सरकार का दायित्व था कि वह अच्छे वकील से पैरवी कराती. आरक्षण में हुई इस कटौती को लेकर गोंड, हल्बा, उरांव, बैगा, कमार, पंडो, आदि सभी जनजातियों में आक्रोश है. उधर सरकार अदालत में केस हार गई और इधर हमारे 32 आदिवासी विधायक मौन साधे बैठे रहे. किसी ने कुछ नहीं किया. अब सिर पीटने से क्या होगा? इसे लेकर समाज में जनप्रतिनिधियों के खिलाफ भी आक्रोश व्याप्त है.
उन्होंने बताया कि आदिवासी समाज अपने हक की लड़ाई दो अलग-अलग मोर्चों पर लड़ेगा. एक तरफ जहां कानूनी लड़ाई को जारी रखने के लिए टॉप के वकील किये जाएंगे. आंकड़े और दस्तावेज जुटाए जाएंगे वहीं दूसरी तरफ मैदानी लड़ाई भी लड़ी जाएगी. इसके लिए संगठन स्तर पर सलाह मशविरे का दौर चल रहा है. आज हर समाज पीड़ित और प्रताड़ित है. इसलिए पंचायत, जनपद, तहसील और जिला स्तर पर बैठकें हो रही हैं.
आदिवासी इलाकों की सड़कों का भी बुरा हाल है. छुरिया से गैंदाटोला की 15 किलोमीटर सड़क की दुर्दशा देखकर आंसू निकल जाते हैं. इसी तरह बंजारी से कुमर्दा तक की 15 किलोमीटर सड़क, जिसकी चार साल पहले मरम्मत हुई थी, पर अब इतने गड्ढे हो गए हैं कि गिने नहीं जा सकते. विधायक छन्नी साहू की निष्क्रियता का इससे बड़ा क्या प्रमाण हो सकता है. इसी तरह चिरचारी से खोम्हा जोग – पंडरापानी की सड़कें भी भगवान भरोसे हैं. खुज्जी विधानसभा क्षेत्र की भी अधिकांश सड़कों की हालत खस्ता हो चुकी है. विधायक इस तरफ से लापरवाह और उदासीन हैं. जनता में इसे लेकर आक्रोश है.
श्री ठाकुर ने बताया कि अंचल में शराब, सट्टा और जुआ का बोलबाला है. शराब कोचियों के आतंक से लोग सहमे हुए हैं. शराब की सप्लाई ट्रकों के द्वारा हो रही है और सरकार कुछ नहीं कर पा रही है. जन आक्रोश बढ़ता जा रहा है. न तो सड़कें बन रही हैं, न स्कूल बन पाया और न ही जल जीवन मिशन का कोई काम चल रहा है.
निर्णायक स्थिति में आदिवासी
उल्लेखनीय है कि खुज्जी विधानसभा क्षेत्र की आबादी में अनुसूचित जनजातियों की संख्या 54 प्रतिशत है. अनुसूचित जातियों की 10 तथा अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी 24 प्रतिशत है. आबादी में आदिवासियों की संख्या 85 हजार है जबकि 35 हजार लोग साहू, कलार एवं यादव समाज के हैं.
वनोपज खरीद नीति में भी छेद
सरकार वनोपजों की खरीदी तो कर रही है पर समय सीमा के कारण इसका लाभ भी बिचौलिये ही उठा रहे हैं. इसकी खरीदी सहकारी सोसायटियों के माध्यम से ही समर्थन मूल्य पर किया जाना चाहिए. इसका सीधा लाभ जनता को मिलेगा. 63 प्रकार के वनोपजों की खरीदी की जाती है. पेसा कानून की मंशा के अनुरूप प्रत्येक ब्लाक में प्रोसेसिंग यूनिट लगाया जाना चाहिए. तिखुर, महुआ, हर्रा, इत्यादि के लिए खरीदी केन्द्र बनाए जाने चाहिए. सहकारी समितियों के माध्यम से खरीदी की जाए. उन्होंने बताया कि आदिवासी आज भी संग्रहित वनोपजों की बिक्री कोचिये को करने के लिए मजबूर हैं. समितियां कुछ ही दिनों के लिए मानक बोरे की खरीदी करती हैं. इसके बाद आदिवासी कोचिये के भरोसे हो जाता है.
सरकार वनोंपज की खरीदी विकास खण्ड स्तरीय वनोपज संग्रहन केंद्र स्थापित कर सहकारी सोसायटी के माध्यम से 63 वनोपज को समर्थन मूल्य पर खरीदे. तब जनता को सीधे लाभ होगा. बिचौलियों से बचेंगे. महुआ 15 रु में कोचिया खरीदता है. तेंदू पत्ता 4000 मानक बोरे में गाँव-गाँव में खरीद रही है. इनका समय केवल 02 या 03 दिन रहता है इसे कम से कम 15 दिनों तक खरीददारी चालू रखें. हर्रा, बहेड़ा, आँवला, चार, चिंरोजी, वनोषधि पौधे जड़ी बूटियों की खरीदी के साथ ही सरकार प्रोसेस यूनिट स्थापित करे.
श्री ठाकुर ने बताया कि 32% आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों से पैरवी के लिए बात हो गई है.