
एक वक्त था, जब उसके आतंक से पूरा जंगल कांपता था. खूंखार फूलनदेवी की बीहड़ के वनग्रामोें में ही नहीं बल्कि आसपास गांवों में भी दहशत थी. लेकिन जब वह अपने प्राकृतिक रहवास से निकलकर मैत्री का संदेश देने वाले खूबसूरत आधुनिक अरण्य में पहुंची तो उसका ऐसा कायाकल्प हुआ कि उसके शांत और सहिष्णु मिजाज पर किसी को यकीन ही नही हुआ. लेकिन इसके पहले कि प्रकृतिप्रेमियों को उसकी खुशमिजाजी का भरपूर दीदार हो पाता उसे अपने इस नए घर को भी अलविदा कहना पड़ा…
विमल-
जी नहीं आप नाम को लेकर कनफ्यूज मत होइए. हम यहां बात अपने जमाने की मशहूर दस्युसुंदरी से सांसद बनने वाली नेत्री फूलन देवी नहीं वरन उस आदमखोर शेरनी की कर रहे हैं, सालों पूर्व जिसकी भयानक दहाड़ें मैत्रीबाग की आबोहवा और वन्य प्राणियों के भाईचारे की सोहबत में गायब हो गई थीं. अस्सी के दशक में गरियाबंद जिला के घनघोर जंगल से मैत्रीबाग लाई गई फूलन देवी नामक जंगल की रानी की दास्तां जितनी दिलचस्प है उतनी ही प्रेरक भी है. फूलनदेवी से वाबस्ता क्षेत्र के प्रबुद्ध प्रकृतिप्रेमियों और मैत्रीबाग से जुड़े लोग इस बेजुबां हिंसक जानवर के ह्दयपरिवर्तन को याद कर आज सालों बाद भी रोमांचित हो जाते हैं. छत्तीसगढ़ की जीवनरेखा कलकल बहती महानदी के उद्गम स्थल नगरी सिहावा और अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित सोंढूर के निकट हरदीभाठा मैनपुर के भयंकर जंगल में भयानक शेरनी फूलनदेवी का आतंक था. बताते हैं कि वर्ष 1980 के दशक ठंड के मौसम में हरदीभाठा गांव की एक कमार आदिवासी महिला अपने तीन चार साल के बच्चे को लेकर आंवला तोड़ने जंगल गई थी. बच्चे को पेड़ के निकट बिठाकर बांस से आंवला तोड़ने में मशगूल थी,अचानक गुर्राहट की आवाज सुनकर जब पलटकर देखा तो एक शेरनी उसके बेटे को लंगड़ाते हुए मुंह में दबाकर ले जा रही थी. घबराई महिला साहसिक मुकाबला कर शेरनी पर बांस से कई वार किए तो वह बूढ़ी और लंगड़ी होने के कारण बच्चे को छोड़कर भाग गई .
हो गई थी आदमखोर
शेरनी फूलनदेवी के पंजों और नुकीले दांतों में दबकर आदिवासी महिला का बच्चा मर चुका था. बच्चे को लेकर वह अपने गांव पहुंची तो ग्रामीणों ने मुआवजा के बाद ही दफनाने की सलाह दी. घायल शेरनी पहाड़ी पर अपनी मांद में छीने गए शिकार के लिए रातभर दहाड़ती रही. लंबे समय से सोंढूर में वनांचल और आदिवासियों से जुड़े प्रकृतिप्रेमी और बुजुर्ग साहित्यकार इंदुशंकर मनु बताते हैं कि इस बच्चे के साथ अब तक 5 लोगों का शिकार कर वह आदमखोर बन चुकी थी लेकिन गांव के शिकारी व्यक्ति के मुर्गा फंसाने के पिंजरे के तार से उसका पंजा जख्मी होने से लंगड़ाने के साथ वृद्ध भी हो चुकी थी. आतंक बढ़ने पर उसे पकड़ने वन विभाग के अधिकारी असम के प्रसिद्ध शिकारी रहमान खान के साथ गुफा के सामने पिंजरा डाला. पिंजरे के अंदर बकरे की जगह रहमान खुद बैठकर बकरे की आवाज निकालने लगे . जैसे ही शेरनी फूलनदेवी पिंजरे में घुसी पार्टिसन वाले डोर से वे तेजी से बाहर भागे, लेकिन तब तक उनकी एक अंगुली शेरनी के जबड़े का ग्रास बन चुकी थी. पूर्व व्याख्याता श्री मनु बताते हैं कि वर्ष 1991 में शेरनी फूलन देवी को पकड़कर मैत्रीबाग चिड़ियाघर भिलाई में छोड़ा गया था.
मैत्रीबाग में आने के बाद शेरनी के स्वभाव में आश्चर्यजनक बदलाव देखा गया. मैत्रीबाग से जुड़े लोगों के मुताबिक शेरनी के एनक्लोजर के ठीक सामने सैकड़ों हिरणों और सांभरों आदि चपल व सुंदर जानवरों का बाड़ा था. परिंदों की चहचहाहट भी थी. तत्कालीन मैत्रीबाग प्रभारी वायके सोढ़ी और स्टाफ का बर्ताव भी शेरनी के प्रति दोस्ताना व मनोवैज्ञानिक था. बताते हैं कि कुछ दिनों में ही शेरनी फूलनदेवी इस दोस्ताना और आर्टिफिशियल अरण्य यानी चिड़ियाघर के प्राकृतिक माहौल के चलते अपने हिंस्र मिजाज को भूलकर शांत होने के साथ खाना व दवाई देने वाले कर्मियों के साथ घुलमिल गई. लंगड़ाहट के बावजूद उसकी उछलकूद पर्यटकों को लुभाती थी. लेकिन पंजे का जख्म उसके लिए जानलेवा साबित हुआ और वह कुछ महीने बाद बीमार हो गई. शेरनी फूलन देवी को हवा बदलने पहले भोपाल जू फिर इंदौर भेजा गया, लेकिन कुछ दिनों बाद वह चल बसी.