
पद्मा सुब्रमण्यम की चिट्ठी से खुला सेंगोल का राज
Sengol History : नए संसद भवन के लोकार्पण समारोह में पीएम नरेंद्र मोदी को सेंगोल सौंपा जाएगा. ये राजदंड है जो सत्ता की पावर का केंद्र माना जाता है. आजादी से पहले 14 अगस्त 1947 को मध्य रात्रि को इसी सेंगोल को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सत्ता हस्तांतरण के तौर पर स्वीकार किया था. गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को सेंगोल के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए भारत के इतिहास में इसके महत्व को बताया था. उन्होंने सेंगोल के आजादी से जुड़े इतिहास और सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बनने के बारे में भी जानकारी दी थी.
1947 में सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बना सेंगोल नए संसद भवन में स्थापित होगा. यह सेंगोल एक ऐसी महत्वपूर्ण धरोहर है, जिसे भुला दिया गया था. आजादी के बाद से अब तक कुछ गिने-चुने लोग ही थे जो इसके महत्व को जानते थे.
सेंगोल का इतिहास
सेंगोल का आशय राजदंड से लगाया जाता है, 14 अगस्त 1947 को मध्य रात्रि पं. जवाहर लाल नेहरू को जो सेंगोल सौंपा गया था उसके ऊपर भगवान शिव के सेवक नंदी की आकृति है. जो एक गोले पर विराजमान हैं. सेंगोल में इस गोले का अर्थ संसार से लगाया गया है. इसके ऊपर विराजमान शिव के वाहन नंदी की सुंदर नक्काशी है, जिन्हें सर्वव्यापी, धर्म व न्याय के रक्षक के वाहन के रूप में माना गया है. इसमें तिरंगे की नक्काशी भी है.
सेंगोल को चोल वंश के राजा प्रयोग करते थे, उस समय एक राजा दूसरे चोल राजा को सत्ता हस्तांतरण इसी सेंगोल के माध्यम से करता था. जो बेहद ठोस, सुंदर नक्काशी वाला सुनहरा राजदंड था. इस पर भी भगवान शिव के वाहन नंदी की नक्काशी होती थी, इतिहासकारों के मुताबिक चोल भगवान शिव के परम भक्त थे, इसीलिए राजदंड में उनके परम भक्त नंदी की आकृति होती थी. सेंगोल के अति सुंदर कृति है, इसकी लंबाई पांच फीट है जो शिल्प कौशल से संपन्न है.
सेंगोल को उस समय तमिलनाडु के प्रसिद्ध स्वर्णकार वुम्मिडी एथिराजुलु और वुम्मिडी सुधाकर ने 10 शिल्पकारों के दल के साथ बनाया था. इसे चांदी से तैयार किया गया था और उसके ऊपर सोने की परत चढ़ाई गई थी. इस काम में 10 से 15 दिन लगे थे. सेंगोल बनाने वाले वुम्मिडी भाइयों के मुताबिक यह बहुत गर्व की बात थी.
श्री ला श्री तंबीरन सेंगोल को लेकर तमिलनाडु से दिल्ली तक गए थे, उन्होंने पहले इसे माउंटबेटन को सौंपा था और उसके बाद इसे वापस लेकर पवित्र जल से शुद्ध किया था. इसके बाद पं. जवाहर लाल नेहरू के आवास पर जाकर सेरेमनी में श्री ला श्री तंबीरन ने राजेंद्र प्रसाद और अन्य गणमान्य लोगों की उपस्थिति में इसे नेहरू जी को सौंपा था.
मंत्री अमित शाह ने प्रेस कांफ्रेंस में दी सेंगोल के बारे में जानकारी
गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को प्रेस कांफ्रेंस कर सेंगोल के बारे में जानकारी दी थी. उन्होंने इसके महत्व के बारे में बताया था. इस दौरान ये भी बताया गया था कि अब तक सेंगोल कहां और किस हालत में था. आखिर इतने दिन सेंगोल कहां था और पीएमओ को इसकी जानकारी कहां से मिली? सेंगोल के बारे में जानकारी देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने बताया था कि अफसरों को सेंगोल ढूंढने का टास्क खुद पीएम मोदी ने दिया था. उन्होंने नए संसद भवन के निर्माण के दौरान इससे जुड़े सभी तथ्य, इतिहास पर रिसर्च करने के आदेश दिए थे. सेंगोल के बारे में उन्हे जानकारी एक चिट्ठी से हुई थी. इस चिट्टी को बहुचर्चित डांसर पद्मा सुब्रह्मण्यम ने प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखा था.
2 साल पहले हुई थी PMO को जानकारी
प्रधानमंत्री कार्यालय को सेंगोल के बारे में तकरीबन 2 साल पहले पता चला था. चर्चित डांसर पद्मा सुब्रमण्यम ने PMO को लिखी चिट्ठी में इसका जिक्र किया था. द हिंदू की एक रिपोर्ट के हिसाब से पद्मा सुब्रमण्यम ने इस चिट्ठी में सेंगोल के महत्व के बारे में जानकारी दी थी. इसके लिए उन्होंने एक तमिल मैगजीन में प्रकाशित आर्टिकल का हवाला दिया था. इस आर्टिकल में इस बात का जिक्र था कि 14 अगस्त 1947 की रात को सत्ता हस्तांतरण के तौर पर जवाहर लाल नेहरू ने सेंगोल को स्वीकार किया था.
कौन हैं पद्मा सुब्रमण्यम
पद्मा सुब्रमण्यम भरतनाट्यम की प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं, उनका जन्म 1943 में हुआ था. पिता प्रसिद्ध फिल्म निर्माता थे और मां संगीतकार. पद्मा सुब्रमण्यम ने अपने पिता के डांस स्कूल में महज 14 साल की उम्र में ही बच्चों को डांस सिखाना शुरू कर दिया था. उन्हें अब तक कई अवार्ड और पुरस्कार मिल चुके हैं, 1983 में वह संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार जीत चुकी हैं, इसके अलावा उन्हें 1981 और 2003 में क्रमश: पद्मश्री और पद्मभूषण पुरस्कार भी मिल चुके हैं. इसके अलावा सोवियत संघ की ओर से नेहरू पुरस्कार और एशिया में विकास और सद्भाव के लिए जापान के फुकुओका का एशियाई संस्कृति पुरस्कार मिला था.
मई 2021 में प्रकाशित हुआ था आर्टिकल
इस अमूल्य धरोहर के बारे में बताने वाला आर्टिकल मई 2021 में प्रकाशित हुआ था. एक रिपोर्ट के मुताबिक जब पद्मा सुब्रमण्यम ने इसे पढ़ा तो उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि इस धरोहर के बारे में सबको जानना चाहिए. इसके बाद ही उन्होंने PMO को चिट्टी लिखकर ये मांग की थी कि पीएम को इसके बारे में देशवासियों को बताना चाहिए.
सेंगोल कहां है, ये पता ही नहीं था
PMO ने चिट्ठी को बेहद गंभीरता से लिया, पीएम मोदी को इसकी जानकारी दी गई. खास तौर पर पीएम मोदी ने सेंगोल को ढूंढने का आदेश दिया. अफसरों की टीम ने इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट की मदद से इसकी खोज शुरू कर दी, लेकिन कुछ पता नहीं चल पा रहा था. इसके बाद नेशनल अभिलेखागार में उस समय से अखबारों को ढूंढ गया. इससे पता चला कि सेंगोल को तमिलनाडु के वुम्मिडी बंगारू फैमिली ने बनाया था.
अफसरों की टीम ने जब बंगारु फैमिली से बात की तो उन्होंने बताया कि सेंगोल को उन्होंने ही बनाया था, लेकिन अब वो कहां है इसके बारे में पता नहीं. इसके बाद देश भर के अन्य म्यूजियम में भी इसके बारे में पता लगाने का आदेश दिया गया. सेंगोल कैसा दिखता है इसकी जानकारी भी बेहद कम लोगों के पास थी.
इलाहाबाद के आनंद भवन में मिला सेंगोल
आखिरकार सेंगोल नुमा एक छड़ी इलाहाबाद के आनंद भवन में मिल गई. किसी को पता नहीं था कि यही सेंगोल है. पत्र-पत्रिकाओं में भी इसकी फोटो नहीं थी. आखिरकार इस सेंगोल के चित्र को तमिलनाडु के उन्हीं बंगारु फैमिली के पास ले जाया गया जिन्होंने उस कलाकृति को पहचान लिया. उनके पास इसकी फोटो भी थी. दरअसल 1947 में वुम्मिडी एथुराजुलू और वुम्मिडी सुधाकर ने अन्य शिल्पकारों से साथ मिलकर बनाया था. अब ये दोनों भाई 28 मई को होने वाले कार्यक्रम का भी हिस्सा बनेंगे.