
छत्तीसगढ़ आजतक- हिन्दू मुसलमान दंगे की तैयारी करने वाले स्वयं इसमें अपना हाथ नहीं जलाना चाहेंगे. इस आग में वे एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को झोंकेंगे. सदियों से यही होता आया है और यदि ये अपने मकसद में कामयाब रहे तो आगे भी ऐसा ही होगा.
अब हिन्दू सन्त भी हिंसा की बोली बोलने लगे हैं. राजधानी रायपुर में सम्पन्न धर्मसभा में संतों ने कहा, कि इस देश में रहने वाले हिंदुओं की अपने तन में शस्त्र और मन में शास्त्र रखना चाहिए, तभी वह हिंदू है, संत राजीव लोचन दास ने कहा, कि यदि ऐसे हिंदू होंगे तो भारत अपने आप हिन्दू राष्ट्र घोषित हो जाएगा. हमारे भगवान हमेशा शस्त्र के साथ दिखाई देते है, मगर हिंदुओं ने शस्त्र रखना छोड़ दिया. आत्मरक्षा के लिए यह अधिकार हमें हमारा संविधान भी देता है. भगवान के हाथ में जिन संतों को केवल अस्त्र-शस्त्र दिखता है, काश उन्होंने यह भी देखा होता. कि भगवान का एक हाथ हमेशा अभय मुद्रा में होता है. यह अभयदान उनके लिए है, जो नेक कार्य करते हुए अपना जीवन यापन करना चाहते हैं, पृथ्वी पर जब-जब धर्म की हानि हुई है भगवान श्रीविष्णु ने स्वयं अवतार लिया है. तब मुसलमान और ईसाई नहीं थे. फिर कौन सा धर्म था, जिसकी रक्षा ईश्वर करना चाहते थे. इसे समझना होगा. ईश्वर ने उन लोगों का ही सहार किया, जो स्वयं को भाग्यविधाता समझ बैठे थे. समझदारों को इशारा काफी होता है. श्रीविष्णु सृष्टि के पालनहार हैं. उनका चक्र काल का परिचायक है. काल का चक्र घूमता है, तो जो आदि है, जो सनातन है, वह लौट कर आ जाता है.
सनातन में मनुष्य को यह अधिकार था, कि वह जो चाहे खा सके, जिसकी चाहे, जैसे चाहे उपासना कर सके. एक और बात धर्मसभा में कही गई. वह यह थी कि बच्चों को संस्कार देने पर लव-जिहाद रुकेगा. साध्वी प्राची ने यह बात कही. साध्वी ने संस्कारों से लव जिहाद रोकने की बात कह तो दी, पर अनुभव बताता है, कि धर्म के ठेकेदारों ने जिहाद पर नहीं बल्कि हमेशा प्यार पर ही प्रहार किया है. सभ्य समाज इसे पागलपन कहता है, इससे घृणा करता है. हमें समझना होगा कि प्रेम और जिहाद एक दूसरे के विपरीत अर्थ वाले शब्द हैं. ये कभी एक नहीं हो सकते. लव जिहाद कपटी दिमाग की उपज है. प्रेम कोई भी, किसी से भी कर सकता है. कृष्ण भक्तों में एक बड़ी संख्या विदेशी नागरिकों की है. उनके भाव देखने हों तो इस्कॉन के मंदिर जाकर देख सकते हैं. जब अमेरिकी राष्ट्रपति हनुमान जी की मूर्ति उठाते हैं, हनुमान चालीसा पढ़ते हैं, तो हमारा हृदय गदगद हो जाता है. पर जब कोई भारतीय चर्च में प्रार्थना करता है, तो हमें तकलीफ होती है. कष्ट तब ज्यादा होता है, जब समाज को राह दिखाने वाले साधु और साध्वी उलटी-पुल्टी भाषा बोलने लगते हैं. अब आधुनिक भारत को यह फैसला करना है, कि वे अपने बच्चों के हाथों में क्या देना चाहते हैं.
समाज को समझना होगा कि क्या यह गली-मोहल्लों में रक्तपात की तैयारी है? क्या संघ की शाखाओं में सिखाई जाने वाली लाठी चलाने की विद्या की यह पराकाष्ठा है? दरअसल, हिन्दुओं को खतरे में दिखाए जाने के पीछे एक सोची-समझी साजिश हैं. उन्हें बार-बार बताया जा रहा है, कि मुसलमान इस पूरे देश का इस्लामीकरण कर देंगे. उन्हें बताया जा रहा है, कि यदि इसी तरह धर्मांतरण होता रहा, तो एक दिन हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे. कभी आदिवासियों को हिन्दू बताने या नहीं बताने पर बहस हो रही है, तो कभी सुन्दर कांड की एक चौपाई- ‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी’ की नए सिरे से व्याख्या की जा रही है. हिन्दुवादी राजनीति करने वाले पिछले कई सालों से सोशल मीडिया के जरिए सैकड़ों साल पुरानी ज्ञात, अल्पज्ञात और अज्ञात इतिहास को नए ढंग से परोस रहे हैं. इसके साथ ही संघ परिवार से जुड़े हिन्दुवादी नेता, जिसे संघ फायरब्रांड कहता है घूम-घूम कर युवाओं में नफरत के चिंगारियों को भड़का रहे हैं. इसका एकमात्र उद्देश्य युवाओं को क्रोधित कर, उन्हें भ्रमित कर उनसे मनचाहा काम करवाना है. यह भी एक तरह की मिलिटेंसी है. मतलब साफ है, कि हिन्दू-मुसलमान दंगे की तैयारी करने वाले स्वयं इसमें अपना हाथ नहीं जलाना चाहेंगे. इस आग में वे एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों की झोंकेंगे. सदियों से यही होता आया है और यदि ये अपने मकसद में कामयाब रहे, तो आगे भी ऐसा ही होगा. देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी ने गुजरात हिंसा के समय कहा था कि राज्य शासन को राजधर्म का पालन करना चाहिए, उन दिनों नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. अटलजी ने राजनीति को कभी मानवता पर हावी नहीं होने दिया. वक्त आ गया है कि प्रधानमंत्री मोदी इन घटनाओं और तेवरों पर अपना रुख स्पष्ट करें.