पूर्वजों की स्मृति को चिरस्थाई बनाने और सम्मान देने के लिए उनकी याद में गाड़ी जाते हैं स्तंभ
हेंमत कश्यम, जगदलपुर- बस्तर के माड़िया आदिवासियों में अनूठी परंपरा सदियों से चली आ रही है. इसमें समाज के किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी स्मृति को चिरस्थाई रखने के लिए पत्थर का स्तंभ गाड़ते हैं. इस स्तंभ पर मृतक के जीवन से जुड़ी प्रमुख बातों को विशेष प्रकार की चित्रकारी से उकेरा जाता है. यह एक तरीके से मृतक की बायोग्राफी होती है. इन स्तंभों से न सिर्फ तत्कालीन सामाजिक स्थितियों को समझने में मदद मिलती है बल्कि यह आदिम संस्कृति की असल दुनिया का कलात्मक प्रदर्शन भी करते हैं. इसमें प्रकृति, सूर्य,चंद्रमा, जंगल, शिकार, नृत्य आदि का चित्रण होता है.
बस्तर की माड़िया जनजाति में पूर्वजों की स्मृति में खंब गाड़ने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. ब्रिटिश मानव वैज्ञानिक डॉ. वेरियन एल्विन ने लिखा है कि विश्व में 20वीं के आरंभ तक यह माड़िया आदिवासी समुदाय शिलाखंड से स्तंभ बनाने लगा था. इससे पहले लकड़ी पर उत्कृष्ट चित्रकारी के माध्यम से इस कला का दर्शन होता है. लकड़ी पर बने मृतक स्तंभ जगदलपुर के मानव संग्रहालय से लेकर भोपाल के इंदिरा गांधी मानव विकास संग्रहालय तक में देखे जा सकते हैं. वर्ष 1970 के आसपास शिलाखंडों पर तैल चित्रों से चित्रकारी शुरू की गई, जो अब भी जारी है. माड़िया आदिवासियों के मृतक स्तंभों पर लोहार, बढ़ई या अन्य गैर आदिवासी समुदाय के लोग चित्रकारी करते हैं. इन मृतक स्तंभों की सिर्फ सांसारिक स्मृति में ही नहीं अपितु परालौकिक जीवन में भी बड़ी भूमिका मानी जाती है. माड़िया जनजाति अपने पूर्वजों के प्रति अति संवेदनशील होती है. उनका मानना है कि मृतक स्तंभ मानव काया का घोंसला है. उसके ऊपर बैठी चिड़िया मानव जीव का रूप है. स्तंभों में बने त्रिशूल के चित्र महादेव का प्रतीक है. लोक मान्यता है कि स्तंभ को अगर दीमक चट कर ले तो मृतक को मुक्ति मिल जाती है, अगर स्तंभ पूरी तरह खत्म हो जाए तो माना जाता है कि उसे जीवन- मरण के चक्र से मुक्ति मिल गई है.
हैसियत के अनुसार स्तंभ प्रत्येक मृतक की याद में नहीं गाड़े जाते. जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक होती है. वह अपने पूर्वज की स्मृति में स्तंभ लगाते हैं. अक्सर मृतक खुद बताकर जाते हैं कि उनका स्तंभ कैसा होगा. स्तंभ बनवाने वाला परिवार पूरे गांव को भोज देता है. स्तंभ ऐसे रास्तों पर बनाए जाते हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग गुजरते हों. स्तंभ के चार प्रकार होते हैं. जिन्हें बीत, उरुसकाल, खम्भ और मठ कहा जाता है. बीत में पत्थर की एक शिला ही होती है जबकि मठ में मंदिर के आकार का स्तंभ बनाया जाता है, यानी हैसियत के अनुसार उनका निर्माण होता है.
स्तंभों में जीवन दर्शन
मृतक स्तंभों में मृत व्यक्ति के जीवन की झांकी प्रदर्शित की जाती है. उसे कुल्हाड़ी व छतरी लिए हाथी या घोड़े पर सवार दिखाया जाता है. आजकल इसमें मोटर, कार, साइकिल नाव आदि भी चित्रित किए जा रहे हैं. बस्तर के राजा सूर्यवंशी थे व रानियां चंद्रवंशी. स्तंभों पर सूर्य व चंद्रमा के चित्र इन्ही के प्रतीक होते हैं. अस्त्र-शस्त्र, शिकार व हाट- बाजार जाने, सामूहिक नृत्य- गान के चित्र, बैल, त्रिशूल, पशु- पक्षी, कीट- पतंग आदि चित्रित किए जाते हैं. चित्रों के माध्यम से मृतक की सामाजिक स्थिति को दिखाने की कोशिश की जाती है.