
आदिवासी मातृशक्ति संगठन ने मरोदा सेक्टर के बंगाली दुर्गा मैदान में खरसावां गोली कांड में शहीद हुए आदिवासियों की शहादत को याद किया. इसमें एमआईसी मेंबर चंद्रभान सिंह ठाकुर, अश्लेष मरावी, चंद्रकला तारम, उमा सिंह, शीला सिंह, चंद्रिका रावटे, पल्लवी ठाकुर, राजेंद्र परगनिया, हरेंद्र नेताम, कलादास, सुरेंद्र मोहंती, अभिषेक आदि उपस्थित हुए.
खरसावां गोलीकांड
देश के आजाद होने के ठीक साढे़ चार माह बाद आजाद भारत का सबसे बडा़ नरसंहार 1 जनवरी 1948 को खरसावां गोलीकाण्ड हुआ जो जालियां वाला बाग से भी विभस्त एवं क्रूर था. जिसमें असंख्य निर्दोष आदिवासी पुलिस फायरिंग में मारे गये थे. इस भयानक गोलीकांड का मकसद यह था कि ‘खरसावां रियासत’ को ओडिसा राज्य मे विलय करते हुए स्थानीय आंदोलन कारियों को रोका जाए.
उस समय के बिहार राज्य के आदिवासी नहीं चाहते थे कि ‘खरसावां रियासत’ ओड़िसा का हिस्सा बने, उन दिनो तीनों रियासतों (मयूरभंज रियासत ‘सरायकेला’ और ‘खरसावां रियासत’) के आदिवासी एक अलग आदिवासी राज्य की मांग कर रहे थे. इसी को लेकर एक सभा होने वाली थी, इस सभा में हिस्सा लेने के लिए जमशेदपुर, रांची, सिमडेगा, खूंटी, तमाड़, चाईबासा और दूरदराज के इलाके से आदिवासी आंदोलनकारी खरसावां पहुंच चुके थे.
इस आंदोलन को लेकर ओडिसा सरकार काफी चौकस थी, खरसावां हाट उस दिन ‘ओडिसा मिलिट्री पुलिस’ का छावनी बन गया था. खरसावां विलय के विरोध में आदिवासी जमा हो चुके थे.
खरसावां हाट में भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी और जयपाल सिंह मुंडा के नहीं आने पर भीड़ का धैर्य जवाब दे चुका था. यहां तक कि कुछ आंदोलनकारी आक्रोशित भी थे. पुलिस किसी भी तरीके से भीड़ को रोकना चाहती थी लेकिन अचानक से ओड़िसा मिलिट्री पुलिस ने भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग करना शुरू कर दिया, निहत्थे आदिवासियों पर फायरिंग का आदेश किसने दिया, क्यों दिया यह जांच का विषय है.