बच्चे जो देखते सुनते हैं उसका प्रभाव मन-मस्तिष्क, विचार और व्यवहार पर पड़ता है. यह बात सौ फीसदी सत्य साबित हो रही है कि स्कूली बच्चों में मोबाईल फोन के कारण पढ़ाई मे मन नहीं लगना, गलत आचरण यह स्थिति समाज के लिए अत्यंत चिन्तनीय साबित हो रही है. माता-पिता बच्चों के जिद पर उन्हें मोबाईल फोन उपलब्ध कराते है. पालकों के लिए यह गंभीर विचार विमर्श का विषय बना है.
मोबाईल फोन के कारण स्कूली बच्चों का ध्यान पढ़ाई से हट रहा है उनका पूरा ध्यान मोबाईल मे गेम खेलने और गलत चीजें देखने से दिग्भ्रमित हो रहें है. स्कूलों मे मोबाईल फोन को प्रतिबंधित कर देना चाहिए. पहले बच्चे नैतिक कहानियों की प्रेरक पुस्तकें होती थी. लेकिन अब उनका स्थान मोबाईल फोन ने ले लिया है. इसके दुष्प्रभाव के कारण बचपन खत्म हो रहा है. अब बच्चे मैदान में खेलते हुए नहीं दिखाई देते है. एक बच्चा जब दुनिया में जन्म लेकर आता है तो उसे अच्छे बुरे का ज्ञान मां देती है. उसके बाद उसे गुरू उसे विद्या देती है. लेकिन जो आज हो रहा है वह माता पिता अपने बच्चे को समय देने के बजाय मोबाईल फोन पकड़ा रहें है. ऐसे में फोन दो धारी तलवार साबीत हो रही है. इसके दुरउपयोग की घटनाएं बढ़ती जा रही है. आज अखबारों की ऑनलाइन ठगी, धोखाधड़ी, ब्लैकमेलिंग की खबरें सुर्खियों में बनी रहती है.
मोबाईल ज्ञान का भंडार हैं तो वहीं अपराधियों के हजारों रास्ते भी खुल गये है. कोरोना काल में पढ़ाई के लिए मोबाईल फोन पकड़ा दिया गया लेकिन वे क्या देख-सुन रहें हैं इसकी निगरानी के ले कोई तंत्र विकसित नहीं किया गया. ऐसे में बच्चों में अब संस्कृति का आना घर-परिवार, देश-समाज के लिए अहितकार है. मोबाईल फोन की वजह से ही अब संस्कृति अश्लीलता व अपराध बढ़ रहें है. बच्चे के लिए स्मार्ट नहीं सिर्फ ज्ञान वाला फोन होना चाहिए ताकि पढ़ाई में मन लगा रहें.