
तिलकेश्वरी पठारे, रायपुर
प्राचीन मंदिरों से छत्तीसगढ़ की धरा सदा से ही जानी जाती रही है. मंदिरों के वैभवशाली इतिहास से छत्तीसगढ़ हमेशा उच्च शिखर पर रहा है. प्राचीन समय में रैयपुर नाम से प्रचलित राजधानी में आज ढेरों मंदिर अपनी ऐतिहासिकता का बखान करते हैं. यहां कई जाति एवं वर्ग के लोगो ने कई भव्य एवं उत्कृष्ठ मंदिरों का निर्माण करवाया है. भव्य एवं धार्मिक श्रद्धा के केंद्र रहें यह मंदिर हमेशा से ही आस्था का केंद्र रहें है, इस कारण से ही इन मंदिरों की प्रसिद्धि दूर तक फैली है. उमदा नक्काशी एवं उत्कृष्ठ शिल्पकला से ओतप्रोत ये मंदिर संस्कृति एवं वैभव का सर्वोत्कृष्ठ नमूना हैं. कई वर्षों पहले बने ये मंदिर आज भी राजधानी में संरक्षित अवस्था में हैं.
राजधानी से करीबन 10 कि.मी. दूर बिलासपुर मार्ग पर रांवाभाठा में स्थित है माँ बंजारी माई का दरबार. शहर की भीड़-भाड़ से दूर एकांत में माता का दरबार बसा है. यहां भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए उनके आगे माथा टेकते हैं. नवरात्रि सहित कई पारंपरिक पर्वों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. माता अपने भक्तों पर हमेशा कृपा बरसाती है.
अलौकिक मंदिर का इतिहास
रावांभाठा में स्थित है माँ बंजारी मांई का अनोखा एवं उत्कृष्ठ प्राचीन मंदिर. कहतें हैं कि करीबन 500 वर्ष पहले यहां बीहड़ बंजर भूमि थी. यहीं से ही माता स्वयंभू स्वरूप में प्रकट हुई हैं. एक बार घूमते-फिरते बंजारे उस स्थान से गुजरे जहां माता की सूक्ष्म प्रतिमा विद्यमान थी. जो उनकी कुलदेवी थी. कुछ दिनों तक वे माता के छोटे रूप की पूजा करते रहे. बहुत समय बाद इन्हीं बंजारों ने माता को बंजारी के नाम से संबोधित किया. तभी से कालांतर में माता बंजारी माई के नाम से प्रसिद्ध हो गई. जहां माता की प्रतिमा निकली थी, वह स्थान पगडंडी था. काफी समय बाद एक हरिजन व्यक्ति ने माता की प्रतिमा को देखा तो उन्होंने उसे छोटे से गर्भगृह में विराजित किया था तब हरिजनों का गर्भगृह में प्रवेश निषेध था. तभी से सुदामा सतनामी नाम के व्यक्ति ने गर्भगृह बनवाकर वहां पर चौरा जैसा बनाकर माता की प्रतिमा विधिवत् विराजित की. माता का स्वरूप बगुलामुखी है, माता का मंदिर कांच से बने भव्य भवन की छत्रछाया में विराजित है. सन् 1987 में मंदिर का नवनिर्माण बंजारी माता ट्रस्ट द्वारा करवाया गया. माता की प्रारंभिक पत्थर की प्रतिमा आज भी उसी स्वरूप में विद्यमान है.
गर्भगृह में है इच्छाधारी नाग का वास
कहतें है कि जहां माता की प्रतिमा विद्यमान है ठीक वहीं उसके भीतर इच्छाधारी नाग देवता का वास है. नागिन का वास मंदिर के बाहर झाडू के पास है. ऐसा कई बार हुआ है कि इस नाग के जोड़े ने कई सौभाग्यशाली भक्तों को दर्शन दिया है. ऐसा कहा जाता है कि हमेशा ये नाग किसी भी रूप में प्रकट होते हैं, इस कारण ही उसे लोग इच्छाधारी नाग कहते हैं. यह नाग इस स्थान पर करीबन 100 सालों से हैं. आश्चर्य की बात यह है कि नाग के साथ ही उस बिल में एक चूहा भी उसके साथ ही रहता है. जो मंदिर के प्रांगण में बिल्ली एवं कुत्ते के साथ घूमता रहता हैं. चूहा, बिल्ली एवं कुत्ते को एक साथ मित्रवत घूमते देखना किसी कौतुहल से कम नहीं है.
क्षीरसागर का दुर्लभ दृश्य
मुख्य मार्ग से 3 फीट नीचे बसा माता के दरबार में हनुमान जी एवं गणेश की प्रतिमा विद्यमान हैं. मंदिर में ही भगवान विष्णु की क्षीरसागर जैसे स्थल में भगवान विष्णु पंचायत ले रहें हैं, जिसमें समस्त देवी-देवताओं की प्रतिमाएं विराजमान हैं. हनुमान, शंकर, माता सरस्वती, सामने ब्रह्मा जी, गणेश, उग्रतारा, देवी लक्ष्मी, पार्वती समेत इस सभा में समस्त देवी देवतागण उपस्थित हैं. क्षीरसागर के बगल में प्रभु सांई बाबा का दरबार है एवं आगे शंकर भगवान की भव्य प्रतिमा सहित हनुमानजी की भी भव्य प्रतिमा विद्यमान हैं. मंदिर में युग के अनुसार देवताओं की प्रतिमाएं विद्यमान हैं, जिनमें त्रेता युग में श्रीराम, भक्ति युग में हनुमान एवं कलियुग में तुलसीदास जी हैं.
पांच एकड में फैले मंदिर में व्यायाम शाला, भोजन शाला सहित बैंक ऑफ बडौदा का एटीएम एवं कलश के रूप में पानी की टंकी बनाई गई है. पांच एकड क्षेत्र में फैले इस मंदिर में चैत्र एवं कुवांर नवरात्रि में भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है. दोनों ही नवरात्रि में देश-विदेश से एवं मुस्लिम भक्तों के भी बड़ी संख्या में ज्योति कलश जलतें हैं. यहां एक जनवरी, पूर्णिमा, महाशिवरात्रि, पुन्नी मेला एवं छेरछेरा आदि पारंपरिक पर्वों पर मेले जैसा माहौल रहता है.