
संतोष कुमार सोनकर
आज से 50 वर्ष पूर्व जानकारी के अभाव में यह स्थल बिल्कुल निर्जन एवं वीरान था, जिसे श्री श्री 108 संत सिया भुनेश्वरी शरण व्यास जी ने आश्रम का आकार देकर खुशहाल कर दिया है. साधु-सन्यासियों का हमेशा डेरा लगा रहता है. समय-समय पर यज्ञ पूर्णाहूति व धार्मिक प्रवचन का कार्यक्रम होता है, जिसका लाभ अर्जित करने के लिए साल भर श्रद्धालुओं की चहल-पहल रहती है.
पेड़ पौधों की झरझर एवं यमुना नदी के समान पैरी के कलकल निनाद से गुंजित मंदिरों के झुंड के मध्य पंचवटी में विशाल पीपल वृक्ष के नीचे चबूतरे में गोलाकार प्राचीन कालिन सिर कटी हुई खंडित मूर्तियां स्थापित है, जिसमें चतुर्भुजी भगवान विष्णु का विग्रह चार फीट ऊंचाई का है तथा एक शिवलिंग है. इसके संबंध में जनश्रुति है कि गाय चराने वाला चरवाहा जंगल में एकाएक पत्थर से टकराकर गिर गया, रुककर देखा तो महादेव का शिवलिंग लगा. घर ले जाने के उद्देश्य से मिट्टी खोदना शुरु किया किन्तु अधिक गहराई के कारण निकालने में असमर्थ रहा. दूसरे दिन आकर देखा तो शिवलिंग काफी उभर आया था. उस दिन से लोगों की श्रद्धा भक्ति बढ़ गई. बिखरी हुई मूर्तियों की संख्या नौ है इसमें अंकित कला कौशल व चित्रकारी से संकेत मिलते है कि ये 11वीं शताब्दी के हैं, मूर्तियों के सिर कटने के कारण इस स्थल का नाम सिरकट्टी पड़ा.
आश्रम परिसर के प्रवेश द्वार को बहुत ही आकर्षक बनाया गया है. आश्रम स्थल में अनेक नवीन मंदिरों का निर्माण किया गया है, जिसमें लक्ष्मीनारायण मंदिर, दुर्गा देवी मंदिर, राम-जानकी मंदिर, हनुमान मंदिर, विश्वकर्मा मंदिर, कृष्ण-गोपाल मंदिर, गायत्री मंदिर, यज्ञ शाला, माँ कौशिल्या प्रसाद भंडार गृह, धर्मशाला आदि शमिल हैं. गुफा में सर्वधर्म चित्रित है, इसमें मोहक चित्रकारी का नमूना पेश किया गया है, यहां सुरंग मार्ग होने की भी जानकारी मिलती है जो छत्तीसगढ के प्रयाग तीर्थ नगरी राजिम तक जाती है.
लोथल की तरह आश्रम से 200 गज के अंतराल में नदी तट से लगा हआ छत्तीसगढ़ के एकमात्र प्राचीन बंदरगाह के अवशेष मौजूद है. डॉकयार्ड अर्थात व्यापारिक नाव खड़े होने की गोदी है, जो चट्टानों को काटकर बनाई गई है और 5 से 6.5 मीटर तक चौड़ी है. ऐसा अनुमान है कि बंदरगाह के साथ यह वस्तु विपणन केन्द्र भी था. यहां से देश-विदेश में नदी मार्ग द्वारा व्यापार होता था, इसे लोथल से प्राप्त बंदरगाह के बाद के किसी काल का माना जाता है.
महर्षि महेश योगी का गुरुकुल आश्रम पाण्डुका की शान है. महेश योगी का जन्म पाण्डुका में ही हुआ था, प्राथमिक शिक्षा उन्होंने यहीं से प्राप्त की थी. आज देश-विदेश में इनके हजारों अनुयायी हैं, करीब 12 एकड़ भूमि पर फैला गुरुकुल आश्रम अत्यंत रमणीय है. वर्तमान में एक सौ 110 विद्यार्थी पूरे छत्तीसगढ़ से विद्या अध्ययन कर रहें हैं जो दस से सत्रह वर्ष आयु वर्ग के हैं. यहां मुख्य रूप से वेद, विज्ञान, ध्यान एवं योग की शिक्षा दी जाती है.
सिरकट्टी आश्रम में प्रतिवर्ष पौष पूर्णिमा छेरछेरा के बाद पड़ने वाले गुरूवार से लेकर तीन दिनों तक विराट यज्ञ, हवन का अनुष्ठान तथा आषाढ़ माह के पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, इस दिन संत श्री भुनेश्वरी शरण व्यास जी के अनुयायी अपने गुरू के प्रात श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के लिए एकत्रित होते हैं तथा लोगों की भारी भीड़ ने मेले का स्वरूप ले लिया है.