
डॉ. पुखराज बाफना-
शाकाहार अब एक स्थापित और सत्यापित जीवनशैली है. अतः उससे होने वाले फायदों को अलग से सिद्ध करना आवश्यक नहीं है. शाकाहार सिर्फ आहार ही नहीं वस्तुतः एक परिपूर्ण जीवन शैली है, जीने की एक शांतिप्रिय और सहअस्तित्वप्रधान पद्धति है, एक ऐसी जीवन पद्धति जो प्रकृति के संतुलन को बरक़रार रखते हुए आदमी को आदमी बनाने के लिए प्रतिबद्ध है. अब यह सिद्ध हो चुका है कि शाकाहार और अहिंसा दो अलग शब्द नहीं हैं, पर्यायवाची हैं.
शाकाहार एक ऐसी जीवनशैली है जो किसी भी व्यक्ति या समुदाय को शांत, संयत, संतुलित और समन्वित रख सकती है. इक्कीसवीं शताब्दी का सबसे बड़ा योगदान यह है कि इसने शाकाहार की विशेषताओं को विज्ञानसम्मत ढंग से प्रस्तुत किया है. शाकाहार आज अपनी खूबियों के कारण पूरे विश्व में लोकप्रिय हुआ है. इसकी सार्थकता और गुणवत्ता को अब अलग से निरूपित करने की आवश्यकता नहीं रही.
हम चाहे जिस नजरिये से देखें शाकाहार एक चमत्कारिक आहार है जिसमें जहाँ एक ओर भीषण असाध्य रोगों से जूझने की अपूर्व क्षमता है, वहीं दूसरी ओर मनुष्य को एक बेहतर सेहतमंद ज़िन्दगी देने का माद्दा भी है.
विश्व के शक्तिशाली जीवधारी जैसे हाथी, घोड़ा, उंट, बैल, गाय, गधा, जिराफ, हिरन आदि शाकाहारी हैं. मनुष्य के दांतों की बनावट से यह सिद्ध हो चुका है कि वह बारह लाख वर्ष ईसा पूर्व तक फलाहारी था. सामाजिक दृष्टि से शाकाहार मनुष्य में एक विशिष्ट रचनात्मक वृत्ति की सृष्टि करता है. सौन्दर्य शास्त्र की दृष्टि से भी शाकाहार उपादेय है. शाकाहार मितव्यता का अर्थशास्त्र है, इसमें फिजूलखर्ची के लिए कोई गुंजाइश नहीं है. जहाँ तक नैतिकता का सन्दर्भ हैं, शाकाहार अहिंसा और शांति का प्रतीक और प्रतिपादक है. इसके विपरीत मांसाहार स्पष्टतः कत्ल, क्रूरता, हिंसा और अशांति का सूचक है.
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, जैन बौद्ध आदि विश्व के सभी प्रमुख धर्मों के प्रणेता एवं महापुरुषों ने हिंसा, क्रूरता तथा अन्य जीवों को अकारण कष्ट एवं पीड़ा पहुँचाने को गुनाह बताया है. प्रकृति ने भी मानव के आहार के लिए अनेकों वनस्पति एवं स्वादिष्ट पदार्थ उत्पन्न किये, वहीं मानव की शरीर रचना भी प्रकृति ने मांसाहारी प्राणियों जैसी न बनाकर शाकाहार प्राणियों जैसी बनाई.
भोजन से मनुष्य का उद्देश्य मात्र उदरपूर्ति, स्वास्थय प्राप्ति अथवा स्वाद की पूर्ति नहीं है अपितु मानसिक एवं चारित्रिक विकास करना भी है. आहार का हमारे आचार विचार व व्यवहार से गहरा सम्बन्ध है. प्राचीन कहावत है “जैसे खाए अन्न वैसा बने मन” आज भी उतनी ही सत्य हैं. हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम जीने के लिए खाते हैं, खाने के लिए नहीं जीते.
आधुनिकता की होड़ में अपनी संस्कृति, आचार विचार सबको दकियानूसी कहने वाले इस झूठी धारणा के शिकार हो रहे है कि शाकाहारी भोजन से उचित मात्रा में प्रोटीन अथवा शक्तिवर्धक उचित आहार प्राप्त नहीं होता- यह एक बहुत बड़ी भ्रान्ति है. आधुनिक शोधकर्ताओं द्वारा वैज्ञानिक खोजों से यह स्पष्ट हो गया है कि शाकाहारी भोजन से न केवल उच्च कोटि के प्रोटीन प्राप्त होते हैं। बल्कि अन्य आवश्यक पोषक तत्व विटामिन्स, खनिज, कैलोरी आदि भी अधिक प्राप्त होते हैं. ज्वार, बाजरा, मक्का आदि मिलेट्स ने पूरी दुनिया में एक नई शाकाहार क्रांति को जन्म दिया है. विश्व के अनेक विद्वान, क्रीड़ावेत्ता, एवरेस्ट विजेता शुद्ध शाकाहारी रहे हैं.
मांसाहार अनेक घातक और असाध्य रोगों का जन्मदाता और निमंत्रक है. हृदयरोग, गुर्दे के रोग, पथरी, कोलेस्ट्रोल की अधिकता, लीवर रोग, कैंसर, ब्लडप्रेशर, मोटापा, कृमिरोग तथा अनेकों संक्रमण मांसाहार के कारण हो सकते हैं. वहीँ शाकाहार अधिक पौष्टिक, गुणकारी, स्वास्थ्यवर्धक और संक्रमणरहित होकर अनेक रोगों का उपचार भी है. आर्थिक दृष्टि से भी शाकाहार ही श्रेष्ठ है. विभिन्न धर्मों द्वारा मांसाहार का निषेध प्रतिपादित है और मनुष्य की शरीर रचना शाकाहारी जीवों जैसी ही प्रकृति ने बनाई है तो अन्य जीवों का मांस खाकर अपना मांस बढ़ाने और अपने पेट को उन जीवों की कब्रगाह बनाने का क्या औचित्य ?
आज आवश्यकता है पूरे विश्व में एक शाकाहार क्रांति की और आहार क्रांति की दिशा में अहिंसक जीवनशैली के विकास की. आइये शाकाहार को अपनी जीवनशैली बनायें। क्योंकि सेहतमंद ज़िन्दगी के लिए मात्र शाकाहार ही सटीक, सही, समुन्नत, समन्वित, सशक्त, सुविधाजनक, सुफल, सफल और सुदीर्घ उपाय है.