
लखन लाल
देश के आठ बड़े राज्य दहशत में है. बच्चा चोरों का गिरोह घूम रहा है. साधु, भिखारी और पागल बनकर गिरोह के सदस्य गांव-मोहल्लों में घूम रहे हैं. मौका मिलते ही ये लोग बच्चों को उठा लेते हैं और उन्हें मारकर कलेजा और किडनी निकाल लेते हैं. इसके वीडियो वायरल हो रहे हैं. टीचर, डाक्टर, इंजीनियर, बिजनेसमेन, सभी दहशत में हैं. वे बच्चों को खुद स्कूल छोड़ने जा रहे हैं और फिर वापस लाने का भी पुख्ता इंतजाम कर रहे हैं. बच्चा चोरी की अफवाह फैलाने वाले शायद चाहते भी यही थे. फेक वीडियो और फर्जी पोस्टरों का असर वो खूब जानते हैं. खाली दिमाग के निरुद्देश्य लोग, भीड़ की शक्ल में बड़े-बड़े कामों को अंजाम दे जाते हैं. अफवाहों पर सरकारें बनती, बिगड़ती हैं. एक से बढ़कर एक फर्जी वीडियो और फर्जी पोस्ट तैयार किये जा रहे हैं. जिसे मिल रहा है वह कम से कम दो चार ग्रुप में भेज रहे हैं. वायरल हो रहे ये वीभत्स वीडियो क्लिप लोगों में दहशत पैदा कर रहे हैं. पुलिस का काम बढ़ गया है. सब काम छोड़कर वह निर्दोषों को मॉबलिंचिंग से बचाने की जद्दोजहद कर रही है. हर हाथ में कैमरा और सस्ता इंटरनेट अपना कमाल दिखा रहे हैं.
पर इस बार मामला थोड़ा अलग है. फेक वीडियो और पोस्ट में पुलिस खुद लोगों को सावधान करती दिखाई दे रही है. छत्तीसगढ़ में तो मुख्यमंत्री की फोटो लगाकर पुलिस की अपील जारी की गई है. इसका एक पैटर्न भी सामने आया है. वायरल की जा रही अधिकांश सामग्री का उपयोग इससे पहले 2017 में भी किया गया था. अब ठीक पांच साल बाद इनका दोबारा उपयोग किया जा रहा है. इन सामग्रियों में एक वीडियो क्लिप भी शामिल है जिसमें कुछ लोग बीच जंगल में एक व्यक्ति को बेरहमी से काट रहे हैं. पीड़ित जिन्दा है और उसके मुंह पर टेप चिपका हुआ है. धारदार हथियारों से उसकी खाल उधेड़ी जा रही है. पेट काटा जा रहा है, पसलियों को रेता जा रहा है. आसपास बच्चों के शव बिखरे हुए हैं. इनमें से कुछ की सांसें चल रही हैं. पीछे कुछ लोगों को बांधकर रखा गया है. जाहिर है ये लोग किडनी या लिवर चोर नहीं हैं. इस तरह निकाले गए अंग किसी काम के नहीं हो सकते. यह वीडियो किसी आतंकी गुट की है जो पूरी नृशंसता से किसी परिवार को सजा दे रहा है.
पर जब लोग दहशत में हों तो दिमाग काम करना बंद कर देता है. आम आदमी से लेकर खूब पढ़े लिखे डॉक्टर, इंजीनियर भी बच्चा चोरी और किडनी लिवर निकालने की इन अफवाहों पर यकीन कर रहे हैं. खाली बैठे युवाओं को नया काम मिल गया है. उनकी आंखें भीड़ में ऐसे लोगों को ढूंढ रही हैं जो या तो अजनबी हैं या जिनकी हरकतें संदिग्ध प्रतीत होती हैं. साधु, भिखारी, मंदबुद्धि के लोग, पर्यटक, सभी इनके हत्थे चढ़ रहे हैं. यह उपद्रव उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ. सर्वाधिक मामले वहीं दर्ज किये गये. इसके बाद उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश होता हुआ महाराष्ट्र तक पहुंच गया. फिर दिल्ली, एनसीआर और नोएडा इसकी चपेट में आ गए. इसके बाद छत्तीसगढ़ का नाम भी इसमें जुड़ गया.
आखिर कौन हैं, जो फेक विडियो से समाज में दहशत फैला रहे हैं? उनका उद्देश्य क्या है? क्या यह देश को अस्थिर करने की साजिश का हिस्सा है? जानकारों ने इन घटनाओं में आईएसआई और देश विरोधी आईटी सेल का हाथ होने की आशंका से इनकार नहीं किया है. वैसे इसका पैटर्न कुछ और भी इशारे करता है. आईटी और ईडी रेड की तरह ये अफवाह भी पांच-पांच साल के अंतराल में आते हैं. दहशत बुद्धि को हर लेती है, फैसले प्रभावित होने लगते हैं. शासन-प्रशासन का ध्यान भटकता है. लोगों में असुरक्षा की भावना पनपने लगती है, जो असंतोष को जन्म देती है. सब कुछ उलट-पुलट हो जाता है. वैसे इन घटनाओं का एक सकारात्मक पहलू भी सामने आया है. लोग पहले से ज्यादा जागरूक हो गए हैं. वे अपने आसपास की घटनाओं पर नज़र रख रहे हैं. बच्चा चोर पकड़ने के बहाने ही सही पर लोगों ने संदिग्ध अपराधियों की धरपकड़ कर पुलिस पर उपकार भी किया है. बच्चा चोरी के बहाने उन्होंने सिद्धू मूसेवाला पर गोली चलाने वाले शूटर दीपक मुंडी, कपिल पंडित और राजेंदर को पकड़कर पुलिस के हवाले किया है. इसी तरह बिहार के हाजीपुर में गैंग रेप के मोस्ट वांटेड अपराधी बच्चा चोरी के संदेह में भीड़ के हत्थे चढ़ गए. पुलिस ने उन्हें अपने कब्जे में ले लिया. पर छिटपुट फायदों को छोड़ दें तो अधिकांश मामलों में महिलाएं, गरीब, बेसहारा, मंदबुद्धि, भिखारी और साधु प्रताड़ना और मारपीट का शिकार हो रहे हैं. इससे पहले कि पूरा देश दहशत की जद में आ जाए, आक्रामक तरीकों से इन घटनाओं को रोकना होगा. इसमें केन्द्र सरकार और उसके द्वारा नियंत्रित संस्थाओं की बड़ी भूमिका अपेक्षित है.