
छत्तीसगढ़ देगा नया फार्मूला, गुजरात में लाखों मामले, कई मौतें
बिहार में लाखों लोग सलाखों के पीछे, मिजोरम निकला सुबह का भूला
छत्तीसगढ़ आजतक
देश के जिन भी राज्यों में शराब बंदी लागू की गई, वहां के अनुभव बहुत अच्छे नहीं हैं. अधिकांश राज्यों में शराब बंदी पूरी तरह फेल है. अवैध शराब की बिक्री शबाब पर है, लोग मर रहे हैं. शराब बंदी का अपराध के ग्राफ पर भी कोई खास असर नहीं देखा गया है. दबाव के बावजूद छत्तीसगढ़ इस मामले में हड़बड़ी के मूड में नहीं है. भूपेश सरकार ने अधिकारियों की एक टीम को बिहार और मिजोरम में लागू शराबबंदी और उसके अनुभवों का अध्ययन करने के लिए भेजा है. छत्तीसगढ़ जल्द ही देश को शराबबंदी का एक बहुस्तरीय नायाब फार्मूला दे सकता है.
भारतीय जनता पार्टी भूपेश बघेल सरकार को शराबबंदी के मुद्दे पर लगातार घेरती रही है. यहां तक माना जाता है कि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा के चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा हो सकता है. इसे नशेड़ियों द्वारा किये जा रहे अपराध के साथ भी जोड़ कर देखा जाता है. सरकार का अब तक मानना है कि शराब एक सामाजिक बुराई है जिस पर प्रभावी नियंत्रण तभी लगाया जा सकता है जब पंचायत स्तर से इसकी पहल हो, पीड़ित पक्षों की इसमें सक्रिय भूमिका हो. कुछ गांवों में महिला संगठनों ने नशाखोरी पर प्रभावी नियंत्रण कर इसे साबित भी किया है.
शराबबंदी को लेकर विभिन्न राज्यों ने हड़बड़ी में ही कानून बनाए तथा इसके नफा-नुकसान का कभी हिसाब नहीं किया. शराबबंदी सबसे पहले गुजरात में लागू हुआ. फिर मिजोरम और नागालैंड में भी शराब बंदी लागू की गई. नीतीश सरकार ने बिहार में शराबबंदी को लागू किया. केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में भी शराब बंदी लागू है. यहां के अनुभव बताते हैं कि शराबबंदी के बाद नकली शराब और तस्करी से हासिल शराब की जमकर खरीद फरोख्त हुई. नकली शराब के चलते दर्जनों लोगों ने समूह में अपने प्राण गंवाए. अदालतों पर मामलों का बोझ बढ़ा और जेलों में शराब तस्करों की भीड़ बढ़ती चली गई.
गुजरात में शराबबंदी
1960 में महाराष्ट्र से अलग होकर गुजरात नया प्रदेश बना. गुजरात में शराब का कारोबार करने वाले आरोपी को 7-10 साल की जेल और पीड़ित की मौत होने पर मौत की सजा का प्रावधान है. शराब पीने और रखने वालों को 10 साल तक की कैद हो सकती है. हालांकि, सिविल अस्पताल से हेल्थ परमिट लेकर 40 से 50 साल की उम्र वाले मरीजों को महीने में 3 यूनिट तथा 50 से 65 साल वाले मरीजों को महीने में चार यूनिट शराब की अनुमति मिलती है.
पर सच्चाई यह है कि वहां शराब का अवैध धंधा खूब फलफूल रहा है. पिछले साल जुलाई में वहां जहरीली शराब पीने के कारण 37 लोगों की जान चली गई. गुजरात में पिछले दो सालों में 300 करोड़ रुपए से अधिक की विदेशी शराब पकड़ी गई है. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की एक रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात की 4.3 प्रतिशत आबादी एल्कोहल डिपेंडेंट है. इसका मतलब है कि इन लोगों का काम बिना शराब के नहीं चल सकता. 1999 से 2009 के बीच पकड़े गए शराब तस्करी के मामलों में केवल 9 प्रतिशत लोगों को ही सजा दिलाई जा सकी.
बिहार में शराबबंदी
बिहार में 1 अप्रैल 2016 से शराब बंदी लागू है. तब वहां महागठबंधन की सरकार थी. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे. इसके बाद कुछ समय तक उन्होंने भाजपा के सहयोग से सरकार चलाया. अब वे तेजस्वी यादव के साथ सरकार चला रहे हैं. शराब बंदी के बाद से ही यहां नकली शराब की अवैध बिक्री, उससे लोगों के बीमार होने यहां तक कि मृत्यु को प्राप्त होने जैसी घटनाएं उफान पर हैं. 1 अप्रैल 2016 से अब तक इस शराबबंदी क़ानून के तहत साढ़े छह लाख़ से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. अदालतों में शराब से जुड़े लाखों मामले लंबित हैं. पुलिस से लेकर उत्पाद विभाग तक में भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है और शराब का अवैध धंधा पूरे प्रदेश में फलफूल रहा है. पिछले साल जहरीली शराब पीकर 80 लोगों की मौत हुई तो खूब हंगामा हुआ पर लोगों ने जल्द ही उसे भुला दिया. यहां शराब से मरने वालों को कोई मुआवजा नहीं मिलता क्योंकि यह गैरकानूनी है.
मिजोरम-नागालैड में शराबबंदी
1972 में केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद चर्चों और समुदाय-आधारित संगठनों के दबाव में, मिज़ोरम ने आंशिक शराबबंदी की नीति अपनाई. 1984 में शराब की दुकानें खोलने की अनुमति दी जिसे 1987 में मिजोरम के राज्य बनने के बाद बंद कर दिया गया. मिजोरम शराब पूर्ण निषेध अधिनियम 1995 को 20 फरवरी, 1997 से 15 जनवरी, 2015 तक लागू किया गया. मिज़ो नेशनल फ्रंट सरकार की ज़ोरमथांगा सरकार ने चुनावी वायदा को निभाते हुए मिज़ोरम शराब (निषेध) अधिनियम, 2019 को लागू किया. पर सरकार को इसके तीन साल बाद ही 2022 में स्थानीय रूप से उगाए गए अंगूरों से बनी शराब की बिक्री की अनुमति देने का फैसला करना पड़ा. शराबबंदी से सरकार को प्रतिवर्ष 60 से 70 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा था.
नागालैंड में पूर्ण शराब निषेध (एनएलटीपी) अधिनियम, 1989, शराब के कब्जे, बिक्री, खपत, निर्माण, आयात और निर्यात पर प्रतिबंध लगाता है. पर इसे कभी प्रभावी रूप से लागू नहीं किया जा सका. नागालैंड में आबादी के आकार को देखते हुए आबकारी विभाग का कहना है कि शराबबंदी कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कम से कम 1,020 कर्मियों की जरूरत है. नागालैंड आबकारी विभाग का अनुमानित राजस्व सृजन लगभग 250 करोड़ रुपये से 300 करोड़ रुपये था जिसकी हानि हो रही है. आबकारी विभाग का मानना है कि बिना किसी एनजीओ के समर्थन और सक्रियता के शराब प्रतिबंध कानून को प्रभावी रूप से लागू नहीं किया जा सकता.
क्या कहते हैं आधिकारिक आंकड़े
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का मानना है कि भारत में 50 प्रतिशत शराब की खपत गैरकानूनी ढंग से होती है जिससे सरकार को कोई राजस्व नहीं मिलता. शराब बंदी वाले राज्यों में स्थिति और भी गंभीर है. पिछले साल जुलाई में गुजरात के बड़ौदा में 125, अहमदाबाद में 150 और बोटाड में 42 लोगों की मौत नकली शराब के सेवन के कारण हो गई. राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण की 2005-06 की रिपोर्ट को ही लें तो बिहार में 51 प्रतिशत पुरुषों ने पत्नी को पीटे जाने को जायज बताया. तब यहां शराबबंदी नहीं थी. वहीं गुजरात, जहां शराब बंदी लागू है वहां ऐसे पुरुषों की संख्या 74 प्रतिशत थी.
छत्तीसगढ़ देगा नया फार्मूला!
छत्तीसगढ़ के अफसरों का दल शराब बंदी के गुण-दोष परखने बिहार और मिजोरम का अध्ययन करेगा. यह अध्ययन दल शराब बंदी का अपना फार्मूला पेश करने से पहले इन राज्यों की शराब बंदी की पोल तो खोल ही देगा. वैसे भी छत्तीसगढ़ में आदिवासी अंचलों के लिए अलग कानून बनाने होंगे. नित नई और विस्मयकारी योजना बनाने वाला छत्तीसगढ़, शराबबंदी का भी कोई नया फार्मूला लेकर आए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
राज्य के कवर्धा जनपद अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत भागूटोला,जेवड़न व मैनपुरी के सरपंचों ने पूर्ण शराबबंदी, जुआ सट्टा पर रोक लगाई है. शराब पीने वालों पर कड़ा अर्थदण्ड लगाया जाएगा साथ ही सूचना देने वालों को पांच हजार का इनाम भी दिया जाएगा. वहीं बेमेतरा जिले के बेंदरची में महिलाओं ने युवाओं के सहयोग से शराब बंदी की घोषणा की है. यहां शराब बेचने पर 51 हजार रुपए, खरीदने वाले को 21 हजार रुपए, और सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीने वालों से 5 हजार रुपए का अर्थदण्ड वसूला जाएगा. शराब की सूचना देने वाले को एक हजार रुपए का इनाम भी दिया जाएगा. गांव के इस निर्णय में चिल्फी- वासियों का भी सहयोग मिल रहा है. इसकी शुरुआत लगभग दो दशक पहले बालोद के गुरूर तहसील से हुई थी. यहां शमशाद बेगम की अगुवाई में हजारों की संख्या में महिलाओं ने कमांडो बनने का प्रशिक्षण लिया. महिला कमांडो की सीटी सुनते ही शराबी के साथ ही जुआड़ी और आवारागर्दी करने वालों की भी सिट्टी- पिट्टी गुम हो जाती थी. शमशाद को 2012 में पद्मश्री दिया गया. इसके बाद उन्हें वर्ल्ड पीस कमेटी का सदस्य बना गया.
बिना सोचे समझे कोई फैसला नहीं
शराबबंदी को लेकर अभी काेई फैसला नहीं लिया गया है. जब तक नई नीति तैयार नहीं हो जाती है, पुरानी बहाल रहेगी. गुजरात और बिहार में शराबबंदी है, दोनों राज्यों में खुलेआम शराब बिक रहा है. दोनों जगह करोड़ों रुपए के अवैध शराब पकड़े गए. रमन सरकार भी शराबबंदी की बात कही, लेकिन नहीं हुआ. हम सभी बातों को ध्यान में रखकर निर्णय लेंगे.
-भूपेश बघेल, मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़ शासन
जहां हुई शराबबंदी वे तस्करी और जहरीली शराब से परेशान
छत्तीसगढ़ से अन्य राज्यों में शराब बंदी का अध्ययन करने वाले दल ने पाया कि पूरे देश में शराबबंदी किए बिना किसी एक राज्य में शराबबंदी नहीं की जा सकती. इससे दूसरे राज्यों से शराब तस्करी शुरू हो जाती है. नकली और जहरीली शराब बननी शुरू हो जाती है. बिहार और गुजरात में शराब बंदी के बाद भी शराब पानी की तरह बह रहा है. गुजरात से प्रतिदिन 300 बसें शराब बनाने वाले कर्मचारियों को लेकर दमन-दीव जाते हैं जहां शराब के बड़े-बड़े कारखाने हैं. ये वहां से प्रतिदिन टुन्न होकर लौटते हैं. शराब की तस्करी भी करते हैं. इसके अलावा राज्य में शासन की 37 मदिरा दुकानें हैं जो स्पेशल पर्मिट पर शराब उपलब्ध कराती हैं. बिहार और मिजोरम का दौरा करने वाले इस टीम की अगुवाई पूर्व मंत्री सत्य नारायण शर्मा कर रह रहे हैं. इस टीम में द्वारिकाधीश यादव, रश्मी आशीष सिंह, शिशुपाल सोरी, कुंवर सिंह निषाद, दलेश्वर साहू और पुरुषोत्तम कंवर, केशव चंद्रा एवं संगीता सिन्हा भी शामिल थे.
– कुंवर सिंह निषाद
5वीं अनुसूची और पेसा एक्ट को मानना होगा
शराब आदिवासियों की संस्कृति का हिस्सा है. यहां पूजा पाठ से लेकर शादी ब्याह में शराब परोसने की परम्परा है. इन इलाकों में शराब बंदी तभी हो सकती है जब यहां की पंचायतें ऐसा कोई फैसला लें. 1996 में लागू किया गया पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्र का विस्तार) अधिनियम 1996 यानी पेसा एक्ट उन्हें यह अधिकार देता है. छत्तीसगढ़ कैबिनेट ने पेसा कानून पर मुहर लगा दी है. इसका असर सरगुजा, रायगढ़, बस्तर और कांकेर लोकसभा क्षेत्र समेत 29 विधानसभा क्षेत्रों पर होगा जहां की 32 फीसदी आबादी यानी 80 लाख जनसंख्या वाले 85 जनपद पंचायतों में आदिवासियों का दबदबा होगा. पेसा 5वीं अनुसूची में शामिल अनुसूचित क्षेत्रों के लिए है.