
कांग्रेस के अध्यक्ष पद चुनाव को लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे के पार्टी के साथ 55 साल के जुड़ाव हो पर काफी कुछ कहा गया लेकिन एक तथ्य जिस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया वह यह है कि पार्टी के 137 साल के इतिहास में खड़गे उस पद को संभालने वाले केवल तीसरे दलित हैं. खड़गे कभी इस पहचान के साथ आगे आने के लिए उत्सुक नहीं रहे हैं कि अपने लंबे राजनीतिक जीवन में उन्होंने जो हासिल किया वह योग्यता के आधार पर किया, न कि जातिगत पहचान के आधार पर उन्होंने कहा की इंदिरा गांधी ने मुझे ब्लॉक अध्यक्ष बनाया था.
हालांकि इस सब के बावजूद इस तथ्य से इंनकार नहीं किया जा सकता कि जिस पार्टी को कभी गरीबों और पिछड़ों के लिए स्वाभाविक पसंद के रूप में देखा जाता था. उसके संगठनात्मक शीर्ष पर उनके अलावा अनुसूचित जातियों के सिर्फ दो अन्य पुरुष इस पद पर रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाले पहले दलित आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दामोदरम संजीवय्या थे, उन्होंने दो बार पद संभाला था. 1969 कांग्रेस के बंटवारे के बाद जगजीवन राम इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले गुट कांग्रेस के अध्यक्ष बने. थेपूर्व राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष पीएल पुनिया ने कहा यह खड़गे का चुनाव पार्टी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. यह ऐसे समय में आया जब राहुल गांधी अपनी एकता के संदेश के साथ अपनी भारत जोड़ो यात्रा पर देश की यात्रा कर रहे हैं और दूसरी ओर हमें एक ऐसा कांग्रेस अध्यक्ष मिल रहा है जो खुद एक वंचित जाति से है इससे दलित पिछड़े और गरीब एक बार फिर पार्टी से जुड़ेंगे.
खड़गे 1996 और 2008 में कर्नाटक विधानसभा में दो बार विपक्ष के नेता रहे वह दो बार मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में भी थे. पहली बार 1999 में जब उनकी बजाए एस.एम.कृष्णा को यह जिम्मेदारी सौंप दी गई और दूसरी बार 2004 में जब पार्टी ने धर्म सिंह के साथ जाने का फैसला किया. उनके सहयोगियों ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव प्रचार के दौरान कई बार खड़गे ने मजाक में कहा था मैं तो मुख्यमंत्री बनना चाहता था. लेकिन मुझे कांग्रेस अध्यक्ष बना रहे हैं. खड़गे कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री देवराज के सानिध्य में आगे बढ़े थे. उनके मंत्रिमंडल में वे 1976 में पहली बार जूनियर मंत्री बने बाद में वे राज्य मंत्री और कैबिनेट मंत्री बने लेकिन कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाए.
यह राजनीति इतिहास का एक पहलू है जिसके बारे में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नवनिर्वाचित महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद डी राजा भी दलितों के साथ कांग्रेस पार्टी के संबंधों के बारे में जिक्र करते हुए कहते हैं. लेकिन दूसरा तथ्य यह भी है कि जगजीवन राम कभी भी प्रधानमंत्री नहीं बने भले ही उन्होंने उपप्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया हो. भारतीय समाज में तीन मुद्दे हैं- वर्ग, जाति और पितृसत्ता जैसा कि अंबेडकर ने कहा था आप जहां भी जाते हैं जाति एक ऐसा राक्षस है जो आपके रास्ते में आड़े आ जाता है. ऐसे में खड़गे का चुनाव निश्चित तौर पर एक संदेश देगा कांग्रेस पार्टी द्वारा इसका इस्तेमाल करने के लिए एक सचेत प्रयास किया जा सकता है.
कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल करने के तुरंत बाद खड़गे ने ‘एक व्यक्ति, एक पद’ नियम के अनुरूप राज्यसभा में विपक्ष के नेता के पद से अपना इस्तीफा दे दिया था.
पिछले 8 सालों में उसके बाद से जब से भाजपा सरकार सत्ता में आई है दलित अलग-थलग और लक्षित महसूस कर रहे हैं. यह उन्हें नैतिक शक्ति एक आवाज देगा और कांग्रेस को वोट वापिस हासिल करने में कुछ मदद भी दिला सकता है. जब पार्टी देश भर में क्षेत्रीय दलों से हार रही है.
राजनीति में दलितों के लिए जगह
बहुजन समाज पार्टी की राजनीति शक्ति क्षीण होने मौजूदा लोकसभा में इसके सिर्फ 10 सांसद हैं और सुप्रीमो मायावती की कम होती पहुंच के साथ कई लोगों को लगता है कि दलित राजनीति में मुख्यधारा की पार्टी के लिए जगह बनी है और खड़गे का आगे लाना कांग्रेस को सही प्रोफाइल दे सकता है.
लेकिन यह सब इस बात पर निर्भर करता है की अध्यक्ष बनने के बाद खड़गे इसके साथ कैसा खेलना चाहते हैं अभी हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा.